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Tushar Gandhi

Name- Tushar Arun Gandhi
Designation- Chairman of Mahatma Gandhi Foundation,  Chairman of Australian
Indian Rural Development Foundation (AIRDF).
Badge number- 71182823
Program associated-To bring transparency in Indian system 
 मुंबई के सांताक्रूज मे जन्मे तुषार गांधी जी महात्मा गांधी फाउंडेशन के चेयरमैन हैं । तुषार गांधी जी महात्मा गांधी जी के परपोते और मणिलाल गांधी जी के पुत्र हैं । तुषार जी के पिता जी का नाम अरुण मणिलाल गांधी है । तुषार जी 2007- 2012 तक इंटरगोवेर्मेंटल इंस्टिट्यूशन जो कि स्पिरुलिना के सूक्ष्म शैवालों द्वारा कुपोषण के खिलाफ कार्य करती है , के दूत रहे हैं । इन्होंने वर्ष 2005 में डांडी यात्रा की 75वीं वर्षगांठ मनाई जो कि गांधी जी द्वारा नमक कानून को हटाने के लिए की गई थी । तुषार गांधी जी महात्मा गाँधी फाउंडेशन के चेयरमैन पद पर हैं ।

     तुषार जी के अनुसार भारत के आज़ाद होने के बाद भी देश को पूर्ण आज़ादी प्राप्त नहीं हुई । आज़ादी के बाद आज तक किसी भी मुद्दे या सरकार को लेकर किसी भी प्रकार का जनमत नहीं करवाया गया । भारत प्रजातंत्रीय राज्य है , आज भी यहां के मतदाताओं को अपने द्वारा चुने जा रहे प्रतिनिधियों पर शक रहता है । लोकतंत्र में आज़ादी के बाद से ही मतदान की आयुसीमा को रखा गया कि कोई भी बालक / बालिका बालिग होते ही अपने वोट का प्रयोग कर सकते हैं । जिससे हमें प्रतिनिधि चुनने में सहभागिता एवं हक़ मिलता है ।

          तुषार गाँधी जी के अनुसार  भारत के आज़ाद होने के बाद ये एक परिवर्तनकारी कदम था , लेकिन तब भी विरोधियों के पास हमें नुकसान पहुँचाने का पूरा अवसर था । हमारी आर्थिक तंगी का फायदा उठा कर वे हमें दबा सकते थे । हमारे क्रन्तिकारियों ने देश को प्रजातंत्र बनाया , हमें वोट की शक्ति देते हुए अपने प्रतिनिधि को चुनने का हक़ दिलाया लेकिन वर्तमान में हमारे मताधिकार का मतलब केवल चुनाव में वोट देकर किसी एक प्रतिनिधि को सत्ता में लाना है ।इसके अलावा हमारा कोई कहीं हक़ नहीं है ।

        

Name- Tushar Arun GandhiDesignation- Chairman of Mahatma Gandhi Foundation,  Chair

भारत में आज़ादी के 65 वर्ष बाद देश मे नोटा का कानून आया जिससे व्यक्ति किसी प्रतिनिधि को उपयुक्त न समझते हुए नोटा दबा कर अपने मताधिकार का प्रयोग अलग तरह से कर सकता है । लेकिन क्या वाकई इस नोटा का देश को कोई फायदा हो रहा है । हमारे यहां अगर किसी को 1% वोट भी मिल जाये और वो पार्टी जीत रही हो तो उसे सत्त्ता में ले आया जाता है लेकिन अगर वहीं 99 % वोट नोटा में जाएं तो इसका कोई हल नही निकाला जाएगा । अगर वाकई कोई भी प्रतिनिधि अच्छा न लगे तो आज कल चुनाव वाले दिन घर मे रहकर ही छुट्टियां मना लेना ज्यादा बेहतर मन जाएगा ।

       देश को नोट की शक्ति तो मिली लेकिन वो शक्ति नपुंसक ही साबित होती है क्योंकि इसका सकारात्मक तरीके से कोई प्रयोग नहीं किया रहा है । हमारे यहां मनाही की कोई प्रतिक्रिया सामने नही आती है । देश को इससे कोई फर्क नही पड़ता कि देश की कितनी जनता सत्ता में उतरे प्रतिनिधियों को सक्षम नहीं मानती । हमारे देश में पुनः चुनाव कराने का कोई प्रावधान नही है अगर पुनः चुनाव होते भी हैं तो वो टॉस के माध्यम से पूर्ण कर दिए जाते हैं ।

     भारत के लोकतंत्र में जनता को वास्तव में कोई खास अधिकार नहीं है । जो लोग नोटा का प्रयोग कर रहे हैं वो वास्तव में अपने वोट को बर्बाद कर रहे हैं । किसी भी प्रकार की नई नीति का आगमन नही बल्कि नोटा के नाम पर ढोंग रचाया गया था ।

     चुनाव प्रक्रिया के बारे में तुषार जी कहते हैं , कि अगर कोई प्रतिनिधि जीत कर सत्ता में आ गया है और अब उसका कार्य जनता को पसंद नही आ रहा है तो जनता उसे हटा नहीं सकती । पुनः चुनाव नही कर सकती । इसका एक अहम कारण यह भी है , कि देश के पास इतने वोट कराने के लिए धन राशि , जगह व जनता के विश्वासमत की कमी है । इसी लिए हमारे यहां कभी जनमत भी नही कराया गया । राष्ट्रपति जी ने कहा था कि पार्लियामेंट आज कल किसी भी प्रकार के बहस को बढ़ावा नही देता क्योंकि जारी किए जस्तावेज़ों को पढ़ कर ही आसानी से सभा निष्कर्ष तक पहुँच जाती है ।

            चुनाव के दौरान कितने वादे कितनी योजनाओं का दस्तावेज हर पार्टी जारी करती है अगर इसकी सूची निकली जाए कि कितने वादे पूरे हुए तो शायद वादे ज्यादा ओर गंभीर कदम कम मालूम चलेंगे । इसी लिए राजतिनि से लोग जल्दी जनता के समीप आना नही चाहते क्योंकि कहीं न कहीं एक डर रहता है की जनता हरा न दे ।

      इटली में प्रत्येक 6 माह में चुनाव होते हैं इसी कारण उनकी लोकतांत्रिक शक्ति बढ़ती व मजबूत होती चली गयी । हमारे देश में इलेक्टोरल कॉलेज का प्रावधान क्यों नहीं आ सकता ।जहां ग्रेजुएट्स अपने नेतृत्व छमता को भी दिखा सके और जनमत संग्रह से वोट दें । हमारा देश 7 दशकों से ऐसे ही पृष्ठभूमि पर टिका है और इसे सशक्त व मजबूत देश कहा जाता है । जनता को देश के प्रतिनिधियों पर विश्वास नहीं है । किसी भी कानून नियम को हटाना आसान होता है ।

    इस देश में अगर मुख्यमंत्री की रजा हो तो विपक्ष के साथ ही सरकार बनाई जा सकती है । बिहार का उदाहरण देते हुए तुषार जी ने कहा कि लालू प्रसाद औऱ नीतीश कुमार आज गठबंधन की सरकार चला रहे हैं । गुजरात में भी उन्होंने ने राज्यसभा का उदाहरण दिया कि कैसे नेता जी ने अपनी पार्टी से स्तीफा दे दिया और अगले ही दिन दूसरी पार्टी से निर्वाचित होने की बात कही । हमारे यहाँ गठबंधन से सरकारें बन जाती हैं । भारत के लोकतंत्र को इसके लिए चिंतित होना पड़ेगा । ये वर्तमान का काफी ज्वलन्त मुद्दा बनता जा रहा है । एक की गलती से दूसरी पार्टियों को शय मिल जाती है । तब जनता का , जनता के लिए , जनता द्वारा शासन कहाँ चला जाता है । किसी भी बात को मुद्दा बनाकर पेश करना आसान होता है ।

                     उनके अनुसार नोटा जनता की शक्ति नहीं बल्कि दिखावे के प्रकार है । अभी तक चुनाव पर सवाल होते थे अब तो वोट पर भी सवाल कर दिए जाते हैं , एवीएम से वोट घपले की बात को भी तुषार जी ने सूक्ष्म में बताया । नेता काम नहीं करना चाहते पर तनख्वा की बात को जरूर समिति के सामने रखना जानते हैं । चुनाव आते ही धर्म , जाती के नाम पर चुनाव जीत कर राजा बन कर सामने आना आसान हो जाता है । ऐसे में 5 वर्ष के कार्यों की चिंता नहीं होकर के चुनाव जीतने का मुद्दा इनके लिए अहम होता है ।  किसी भी सामान्य बिल की डिबेट में साधारणतः सभा में कितने लोग मौजूद होते हैं ये ये सिस्टम की सक्रियता को बताता है ।

        किसी भी पार्टी के पक्ष में न होने की बात करते हुए तुषार जी ने बताया कि कांग्रेस ही प्रजातंत्र के मुद्दे को देश मे लेकर आई तो इससे जुड़ी अच्छाई और बुराई भी इसी पार्टी की कार्य शैली को दी जाएगी ।

             जनता को अपनी बात कहने का अधिकार केवल सोशल मीडिया पर मिलती है, लेकिन इसे भी कॉम्पनियपन द्वारा ट्रोल कर दिया जाता है । तुषार जी ने कहा कि बापू कहते थे कि , जब कोई अपनी शांति का ज्यादा फायदा उठाने लगे तो अपनी आवाज़ उठाना जरूरी हो जाती है । विद्रोह करना प्रजातन्त्र का अविभाज्य अवयव है । प्रजातंत्र को प्रश्न पूछने के पूरे अधिकार हैं , पर जब उनके जवाब आना बंद हो जाये तो ये चिंता की बात हो जाता है । तब तो यह और भी गंभीर मुद्दा हो जाता है । जब प्रश्नों की जवाबदेही नहीं होगी तब  प्रश्न को दबाने और बन्द करने की बात सामने आती है ।

       वक्त है जब प्रश्नों को चिल्लाना चाहिए । जिसके जवाब सरकार को देना ही होगा । ऐसा कोई प्रजातंत्र नही है , जो मतदाता या जनता पर अविश्वास करे । हमें किसी के भी पद और रुतबे से डरना नहीं चाहिए ।  किसी भी व्यक्ति के प्रति सम्मान होना अच्छी बात है, पर भक्ति नहीं होनी चाहिए क्योंकि वही भक्ति कब अंधभक्ति में बदल जाये पता नहीं चलता ।

        

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