नाम : शराफत अल्वी
पद : नेता, इंडियन मुस्लिम लीग, गाज़ियाबाद, उत्तर प्रदेश
नवप्रवर्तक कोड : 71182971
शराफत अल्वी बतौर राजनीतिज्ञ अपनी पहचान बनाने में जुटे हुए हैं. यह उनकी समाज के प्रति निष्ठा या राजनीति के मैदान में अपने आप को साबित करने की ललक ही कह लीजिए कि रोजी रोटी के लिए वेल्डिंग के व्यवसाय में जुटे शराफत अल्वी रोज मौका निकाल कर अपने क्षेत्र की समस्याओं को सुलझाने में लगे रहते हैं. यह उस क्षेत्र के लोगों का प्यार ही है कि शराफत अल्वी को वहां के लोगों का भरपूर समर्थन प्राप्त होता है और साथ ही साथ लोग उनके कार्यों में भी उनका सहयोग करते हैं.
ढाई दशक के लंबे अरसे से यह गाजियाबाद में रह रहे हैं. अपने काम के सिलसिले में यह 1993 में गाजियाबाद आ गए और तभी से यहां के होकर रह गए. मूल तौर पर यह मेरठ के मसूरी गांव के रहने वाले हैं. भले ही यह लंबे वक्त से गाजियाबाद में रह रहे हैं मगर अपने गांव से वह अब भी जुड़े हुए हैं. इनका बचपन बेहद अभाव में गुजरा. इनके अब्बा एक साइकिल मैकेनिक थे. अब्बा की ही कमाई पर पूरा घर निर्भर था. यही वजह रही कि उन्होंने सिर्फ आठवीं तक की ही पढ़ाई की. आगे नहीं पढ़ पाने की कसक आज तक उनके मन में है और इसीलिए यह अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा मुहैया करवा रहे हैं.
परिवारिक हालात सही नहीं होने और आर्थिक तंगी ने इन्हें कमजोर नहीं बल्कि इनके विश्वास को दृढ़ ही किया है. इन्होंने अपने बचपन के संघर्ष को अपने जीवन की चुनौतियों के साथ जोड़कर खुद को और भी मजबूत किया है. एक ऐसा दौर भी उन्होंने देखा है जब काम के लिए वह अपने गांव से लंबी दूरी साइकल पर तय करके गाजियाबाद आते थे और और प्रतिदिन का यही सिलसिला होता था. ऐसे में इन्हें एक दिन लगा कि रोजाना साइकिल से इतनी दूरी तय करना सही नहीं और फिर इन्होंने अपने जीवन का एक मजबूत फैसला किया. उन्होंने यह निर्णय लिया कि अब वह रोजाना गांव से गाजियाबाद आना जाना नहीं कर पाएंगे और इसके लिए वह गाजियाबाद में ही जाकर रहेंगे. तब से अब तक शराफत अल्वी ने पीछे मुड़कर नहीं देखा.
शुरुआती दिनों में किराए के एक छोटे से मकान में रह कर रोजाना यह काम की तलाश करते थे. इन्होंने मेरठ में ही एक कारखाने में रहकर वेल्डिंग का काम सीखा और फिर गाजियाबाद में काम किया. धीरे धीरे हुनर और अपनी कुशलता से उन्होंने खुद का व्यवसाय शुरू किया. जिसकी वजह से यह अपने परिवार को एक अच्छी जिंदगी दे पा रहे हैं.
आज उनके पास चरण सिंह कॉलोनी, गाजियाबाद में खुद का अपना मकान है मगर बावजूद इसके वह खुश नहीं हैं, उन्हें लगता है सभी को शिक्षा का समान अधिकार मिलना चाहिए. सभी को रोजगार मिल सके जिससे लोग अपना जीवन यापन अच्छे से कर पाए और इसीलिए वह राजनीतिक तौर पर भी अपनी भूमिका निभा रहे हैं.
उन्होंने राजनीति की शुरुआत निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर सभासद का चुनाव लड़कर किया था. उन्हें महज 200 कुछ वोट मिले थे बावजूद उसके यह निराश नहीं हुए. उनका मानना है कि जीवन में कभी हार माननी ही नहीं चाहिए. अपनी लड़ाई तो हर किसी को लड़नी ही चाहिए तभी तो जाकर कोई हल निकलेगा.
अपने राजनीतिक संघर्ष को दिशा देने के लिए वह हाल ही में इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग से जुड़े हैं. हाल ही में संपन्न हुए मेयर चुनाव में उनकी पत्नी ने गाजियाबाद से मेयर का चुनाव लड़ा था. भले ही उसमें उन्हें हार मिली मगर उनका प्रदर्शन सराहनीय रहा. शराफत अल्वी का मानना है दलित बस्तियों और मुसलमान बस्तियों में काफी पिछड़ापन है. यहां समस्याओं का अंबार है. बड़ी समस्या तो छोड़ दीजिए छोटी छोटी समस्याओं को भी अभी तक हम ठीक नहीं कर पाए हैं. ऐसे में खास तौर पर इन बस्तियों पर ध्यान दिए जाने की जरूरत है. शिक्षा भारत के कल को बेहतर बना सकती है इसीलिए आज सभी को शिक्षित होना जरूरी है और ऐसे में जो गरीब बच्चे हैं उनको भी अच्छी शिक्षा मुहैया करवाई जानी चाहिए.
शराफत अल्वी राजनीति रोजी रोटी के लिए नहीं बल्कि क्षेत्र की समस्याओं को ऊपर तक पहुंचा पायें और उस दिशा में काम कर पायें इसलिए कर रहे हैं. उनका मानना है कि यह समस्या दूसरे लोगों की ही नहीं बल्कि उनके लिए भी है और ऐसे में किसी को तो प्रयास करना ही होगा.
कभी ना हार मानने वाला जज्बा और राजनीति में कुछ अलग करने की सोच ही उन्हें आज दूसरे मुकाम पर खड़ा करती है.
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