नाम : प्रोफ़ेसर दिनेश वार्ष्णेय
पद : असिस्टेंट सेक्रेटरी, सीपीआई दिल्ली
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प्रोफ़ेसर दिनेश वार्ष्णेय पेशे से शिक्षक हैं मगर साथ साथ राजनीति में भी बेहद सक्रिय हैं. प्रोफ़ेसर दिनेश वार्ष्णेय वामपंथ के बड़े विचारक हैं और इन विचारों को अपनाते भी हैं.
भारत की सबसे पुरानी वामपंथी पार्टी यानी भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी से जुड़े हुए हैं. प्रोफ़ेसर दिनेश जी सीपीआई दिल्ली के असिस्टेंट सेक्रेटरी हैं और साथ ही साथ राष्ट्रीय परिषद के सदस्य भी. एक साथ यह कई जिम्मेदारियों का निर्वाह कर रहे हैं और वह भी बड़ी बखूबी से. दिल्ली में रहने वाले दिनेश जी लगातार मीडिया के माध्यम से अपने विचार देश ही नहीं दुनिया भर तक पहुंचाते रहे हैं.

मिलनसार स्वभाव के दिनेश जी मूल तौर पर उत्तर प्रदेश के रहने वाले हैं मगर काफी लंबे अरसे से वह दिल्ली में ही रह रहे हैं. इनका बचपन दिल्ली में ही बीता है. अपनी शुरुआती पढ़ाई इन्होंने दिल्ली के ही सरोजिनी नगर के सरकारी स्कूल में पूरी की. आगे चलकर दिल्ली विश्वविद्यालय के हिंदू कॉलेज से उन्होंने शिक्षा अर्जित की. इन्होंने हिंदू कॉलेज से समाज विज्ञान से स्नातक किया. परास्नातक इन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय से ही बुद्धिस्ट स्टडीज में पूर्ण की. उस दौरान उन्होंने कई भाषा का ज्ञान अर्जित किया जिसमें पाली, संस्कृत, चाइनीज तिब्बतियन आदि शामिल था. साथ ही साथ उन्होंने फिलॉस्फी और इतिहास की भी पढ़ाई की उनकी रुचि इतिहास में इतनी जागी कि उन्होंने एमफिल इतिहास से ही किया. उसके बाद उन्होंने बतौर शिक्षक नौकरी करनी शुरू कर दी.

पढ़ाई के दौरान उन्होंने वामपंथी विचारधारा का पालन करना शुरू कर दिया था. छात्र जीवन से ही वह राजनीति में सक्रिय हो गए. भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की छात्र इकाई ऑल इंडिया स्टूडेंट्स फेडरेशन दिल्ली के सचिव पद पर तकरीबन नौ साल तक रहे. यही नहीं दिनेश जी तीन वर्षों तक राष्ट्रीय सचिव मंडल के सदस्य भी रहे. छात्र राजनीति करते हुए उन्होंने यह सोचा था कि वह नौकरी करते हुए भी राजनीति में सक्रिय तौर पर अपनी भागीदारी सुनिश्चित करेंगे. वैसे में जब दिनेश जी ने शिक्षक के तौर पर नौकरी शुरू की तब भी उन्होंने राजनीति जारी रखी क्योंकि उनका मानना है कि राजनीति देश चलाती है. जनता की भलाई, गरीबों, मजदूरों, किसानों के लिए आवाज उठाना, पूंजीपतियों के खिलाफ आवाज उठाना यह सब तभी संभव है जब आप राजनीति में हो. यही वजह रही कि छात्र जीवन के समय ही दिनेश जी ने भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी कि सदस्यता ले ली, वह दिल्ली राज्य परिषद के सदस्य भी रहे हैं. दिल्ली विश्वविद्यालय में शिक्षक बनने के बाद भी आपने शिक्षक संघ ने अपनी सक्रिय भूमिका निभाई. दिनेश जी अधिकतम अवधि तक यानी दो बार दिल्ली विश्वविद्यालय के अकादमिक परिषद के सदस्य के तौर पर भी चुने गए.

दिनेश जी का मानना है कि हर मानस को चाहे वह किसी भी विचारधारा को मानता हो उसे सामाजिक गतिविधियों में हमेशा सक्रिय रहना चाहिए. वह कहते हैं कोई भी सामाजिक गतिविधियों में शामिल होने वाला व्यक्ति अगर कह दे कि वह राजनीति में शामिल नहीं है तो यह उसकी राजनीति है. क्योंकि जीवन के हर पहलू में राजनीति असर डालती है. चाहे कपड़े पहनते हो, चाहे खाना खाते हो, चाहे हमारे समाज की स्वास्थ्य सुविधाएं हो, चाहे शिक्षा की सुविधाएं हो, चाहे हमारी परिवहन की व्यवस्था हो, यह सब राजनीति नीतियों पर ही निर्भर करता है. किसका शोषण हो रहा है, कौन शोषण कर रहा है, कौन शोषित है यह सब राजनीति ही निर्णय करती है, इसलिए दिनेश जी का मानना है कि सभी को राजनीति में दिलचस्पी लेनी चाहिए. वह कहते हैं कि हमें उस राजनीति में दिलचस्पी लेनी चाहिए जिसमें मेहनतकश मजदूरों का, किसानों का, मजदूरों की इज्जत और उनके सम्मान की लड़ाई को आगे बढ़ाया जाए, उनके हकों की लड़ाई को आगे बढ़ाया जाए. अपने विचार प्रकट करते हुए दिनेश जी बताते हैं कि इस देश में पितृसत्तात्मक समाज रहा है. आज भी पितृसत्तात्मक समाज महिलाओं पर बहुत भारी है इसलिए महिलाओं और बच्चों की लड़ाई लड़ना बहुत ही आवश्यक है. महिलाओं को अभी भी दोयम दर्जे का समझा जाता है उनके उत्थान की लड़ाई लड़ना उतना ही महत्वपूर्ण है जितनी मेहनतकश और गरीबों की लड़ाई है.

दिनेश जी का है कहना है कि शिक्षक समाज का सबसे जिम्मेदार व्यक्ति होता है. शिक्षक देश निर्माताओं को बनाता है, शिक्षक विश्व निर्माताओं को बनाता है. शिक्षक अगर समाज की लड़ाई नहीं लड़ेगा तो आज जो मुल्क में वातावरण है या पूरे विश्व में जो वातावरण है जिसमें पूंजीवादियों और साम्राज्यवादियों का शोषण जिस तेजी से आगे बढ़ रहा है और वह अपनी असफलताओं के कारण छटपटा रहा है, वह हमें आपस में लड़ने के लिए बहका रहा है. ऐसे में अगर शिक्षक राजनीति में नहीं रहेगा, वो वैज्ञानिक दृष्टिकोण का विकास नहीं करेगा, वो देश की जनता और आने वाली जनसंख्या, आने वाले जो नागरिक हैं जो देश के हैं या विश्व के उनका वैज्ञानिक दृष्टिकोण नहीं बनाएगा तो इस देश में कौन बनाएगा. शिक्षक का पेशा ही सुधार वाला पेशा होता है. शिक्षक सुधारक भी है, निर्णायक भी है, निर्माणकर्ता भी है इसलिए शिक्षकों को चाहे वह नर्सरी स्कूल का शिक्षक हो, चाहे वह प्राइमरी स्कूल का शिक्षक हो, चाहे वह विश्वविद्यालय स्तर का शिक्षक हो सभी शिक्षकों को अपनी जिम्मेदारी समाज में बहुत महत्वपूर्ण ढंग से निभानी चाहिए वह ना सिर्फ अच्छे से अच्छा पढ़ायें, बल्कि अच्छा रिसर्च कराए. वैज्ञानिक दृष्टिकोण को बनाने में शिक्षक व्यवसाय बहुत ही महत्वपूर्ण व्यवसाय है. इसीलिए दिनेश जी का मानना है इस क्षेत्र को राजनीती में जरूर से आना चाहिए.

प्रोफेसर दिनेश जी की वैचारिक लड़ाई काफी लंबी रही है. उन्होंने विचारों के आगे कभी झुकना नहीं सीखा. बतौर शिक्षक हो या राजनीतिज्ञ उन्होंने देश में एक मिसाल बनने की कोशिश की है. मजदूरों के लिए, गरीबों के लिए, हर दबे-कुचले वर्गों के लिए इन्होंने लंबी लड़ाई लड़ी है और उनका संघर्ष आज भी जारी है. भारतीय कमुनिस्ट पार्टी के लिए समर्पित दिनेश जी ने समाज में अपनी एक अलग पहचान बनाई है. स्वभाव से मिलनसार यह व्यक्ति समाज के लिए वाकई दिन रात लगा रहता है.
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