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Dr. V. N. Pal

नाम - डॉ वी एन 'पाल' 

पद - प्रोफ़ेसर (छत्रपति शाहू जी महाराज विश्वविद्यालय कानपुर), समाज सेवक (कानपुर)  

नवप्रवर्तक कोड : 71183123

वेबसाइट : http://vnpal.in/

जीवन- परिचय :

समाज में क्रांतिकारी परिवर्तन की विचारधारा को मुखर करने वाले डॉ विजय नारायण 'पाल' मूलत: इटावा जिले के दूरस्थ ग्रामीण अंचल में जन्में देहात क्षेत्र के निवासी रहे हैं. उनके पिता खेतिहर मजदूर के रूप में कार्य किया करते थे, जिस कारण उनका जीवनयापन बेहद गरीबी में व्यतीत हुआ. डॉ विजय ने अपने जीवन में बेहद संघर्ष किया है, इसी कारण वे देश के शोषित, प्रताड़ित, दलित, मजदूर एवं किसान वर्ग के प्रति अधिकतर कार्यरत रहते है. समाज के पिछड़े तबकों को उनके अधिकार दिलाने की दिशा में वे निरंतर क्रियाशील हैं.

डॉ विजय स्वयं को एक फ़कीर के रूप में परिभाषित करते हैं, उन्होंने सशरीर अपनी चल-अचल संपति राष्ट्र के नाम भी दान करने के संकल्प को अमली जामा पहनाने के लिए राष्ट्रपति को एक लंबे समय से सतत पत्राचार कर हैं जिस पर प्रभावी कदम उठाए जाने के संकेत हैं. उच्च शिक्षित एवं 21 वर्षों से छत्रपति शाहू जी महाराज विश्वविद्यालय कानपुर में गणित के प्रोफेसर के रूप में वरिष्ठ व सम्मानीय फैकल्टी सदस्यों में अग्रणी हैं, समतापूर्ण वक्तव्यों को अपने जीवन का सिद्धांत मानने वाले डॉ विजय राष्ट्र को अव्यवस्थित करने वाली प्रत्येक समस्या के खिलाफ आवाज़ उठाते हैं. 01 अप्रेल 2010 को राष्ट्र की ज्वलंत समस्याओं रोटी, कपड़ा, मकान, सड़क, बिजली, पानी, शिक्षा, स्वास्थ्य, सुरक्षा, जिनका एक नाम "आतंकवाद" है के,  सामाजिक एवं वैज्ञानिक सोच पर आधारित सरल, बौद्धिक, व्यावहारिक, आर्थिक, अल्पकालिक विकल्प/समाधान लेकर तत्कालीन राष्ट्रपति से राष्ट्र भवन में मिले थे. राष्ट्रपति महोदया ने उन्हे गंभीरता से लिया और डॉ पाल को समझने के लिए अपने संयुक्त सचिव श्री वरुण मित्रा की प्रतिनियुक्ति कर दी, जिनसे डॉ पाल ने प्रतिनिधि मण्डल के साथियों सर्व श्री डॉ श्याम लाल सागर, देश राज विद्यार्थी, प्रदीप वर्मा के साथ राष्ट्र भवन में एक लंबी वार्ता की. डॉ पाल के विचारों को सुनकर संयुक्त सचिव श्री वरुण मित्रा ने सहमति भी जताई तथा राष्ट्रपति के संज्ञान मे लाने के लिए लिखित सुझाव की बात कहकर वार्ता सम्पन्न हुई.  

नाम - डॉ वी एन 'पाल' पद - प्रोफ़ेसर (छत्रपति शाहू जी महाराज विश्वविद्यालय कानपुर), समाज सेवक (कानपुर)

अपना संपर्क सूत्र भी दिया परन्तु कानपुर आने पर उनकी उदासीनता से कभी दूरभाष पर संपर्क नहीं हो पाया - और उनके सुझाव राष्ट्रपति के संज्ञान में नहीं पहुँच पाये. यदि उन्हें सफलता मिली होती- तो निसंदेह अबतक राष्ट्र की दशा और दिशा ही कुछ और होती. 

शैक्षणिक उपलब्धियां :

डॉ विजय एक उच्च शिक्षित सामाजिक नवप्रवर्तक हैं, जिन्होंने शिक्षा के क्षेत्र में बहुत सी उपलब्धियां हासिल की हैं. जनता कॉलेज बकेबर, इटावा से बीएससी एवं एमएससी सम्पन्न करने के उपरांत उन्होंने आईएएस मेरठ यूनिवर्सिटी से एमफिल की, जिसमें वे टॉपर भी रहे. वर्ष 1982-90 में उन्होंने आईआईटी कानपुर से पीएचडी की उपाधि भी प्राप्त की. 1984 में उच्चतर शिक्षा सेवा आयोग इलाहाबाद द्वारा प्रवक्ता गणित के लिए प्रथम स्थान पर चयनित हो कर पीपीएन कालेज कानपुर में 13 वर्षों तक रहे उपाचार्य होकर विवि आ गए.    

डॉ विजय बहुत से शैक्षणिक संस्थानों में गणित प्रवक्ता के पद पर भी रहे हैं. जिनमें एसडी पीजी कॉलेज (मुजफ्फरनगर), मिहिरभोज डिग्री कॉलेज (दादरी, गाजियाबाद), डीबीएस कॉलेज (देहरादून), जनता कॉलेज, बकेबर (इटावा), दिल्ली पब्लिक स्कूल (रानीपुर, हरिद्वार), नारायण पीआईआईजी कॉलेज, शिकोहावाद, पीपीएन कॉलेज, कानपुर आदि प्रमुख संस्थानों में रहे. आज भी वे शिक्षक के पद पर ही कार्य करना पसंद करते हैं, उनके अनुसार शिक्षक राष्ट्र निर्माता है नयी पीढ़ी के भविष्य की नींव रखता है, इसीलिए यह पद बेहद सम्मानीय है. वे विद्यार्थियों को बिना किसी भेद भाव के निशुल्क शिक्षा उपलब्ध कराने में  विश्वास रखते  हैं.

विभिन्न सामाजिक आंदोलन :

समाज में पूर्ण रूप से सुव्यवस्था की लहर लाने की विचारधारा डॉ विजय के मन में सदैव रहती है, इसी के चलते उन्होंने वर्तमान में "सम्पूर्ण अव्यवस्था परिवर्तन अभियान " की मुहिम चलाई हुई है. इस अभियान  के अंतर्गत ज़मीन घोटालों, जंगल घोटालों आदि पर सरकार से आरटीआई डाल कर जवाब तलब किया जाता है, साथ ही धरना प्रदर्शन को भी साधन बनाया जाता है.

कानपुर में ट्रांस गंगा सिटी के निर्माण कार्य में किसानों की ज़मीन हड़पे जाने को लेकर डॉ विजय अपने सहयोगियों के साथ किसानों के हक़ की आवाज़ उठाते रहते हैं. वे राष्ट्रपति के चुनाव के लिए भी उम्मीदवार रहने का प्रयास कर चुके हैं, उनका मंतव्य देश के हर क्षेत्र में फैली अव्यवस्था को दूर करके एक स्वस्थ एवं समतापूर्ण समाज का निर्माण होते देखना है. 

"आर्थिक आन्दोलन" के नाम से भी समाज को एक नई दिशा देने का कार्य डॉ विजय कर रहे हैं, जिसके द्वारा उनके विद्यार्थी देश की वित्तीय व्यवस्था में पारदर्शिता लाने का प्रयास करते हुए आरटीआई के माध्यम से सरकार तक अपनी बात पहुंचा रहे हैं. डॉ विजय स्वयं भी मानते हैं कि देश की संपत्ति पर हर नागरिक का समान अधिकार होता है, इसलिए वित्त योजनाएं सर्वहित के लिए बनाई जानी चाहिए. 

समाज निर्माण के कार्य :

डॉ विजय देश के जागरूक व सम्प्रभु नागरिक होने की अपनी जिम्मेदारी को बेहतर ढंग से वहन करते हैं, समाज में हाशिये पर खड़े वर्ग को बिना किसी भेदभाव के समान रूप से आगे बढ़ने के अवसर देने के लिए वे उनके विकास की दिशा की ओर उन्मुख रहते हैं. उन्होंने राष्ट्रीय किन्नर मोर्चा का गठन कर देश में पहली बार किन्नरों को राजनीति में प्रवेश कराया और इसी कारण मीडिया उन्हें किन्नर सम्राट की उपाधि भी दे चुका है.

डॉ विजय द्वारा गणिकाओं  को भी समाज की मुख्यधारा में जोड़ने का प्रयास किया गया, क्योंकि उनका मानना रहा कि गणिकाएं भारतीय समाज का वह प्रतिबिंब है, जो कभी अपने दुःख दर्द प्रकट नहीं करती, अंदर से रोतीं है बाहर से मुस्कुराती रहती हैं. इनका उद्धार कैसे हो? किन्नर , विधवा ,गणिका राष्ट्र की मुख्य धारा मे लाने के लिए विधान परिषद / राज्य सभाओं में प्रतिनिधित्व हेतु नामित करने के लिए जिलाधिकारी कानपुर के माध्यम से राष्ट्रपति को लिख चुके हैं. 

इसके अतिरिक्त किसानों की समस्याओं के लिए डॉ विजय ने बहुत से अभियान चलाए, उनकी समस्याओं को केवल जाना ही नहीं, अपितु उनके निदान हेतु तकनीकी निवारण भी खोजे. इसी कड़ी में उन्होंने अबतक लगभग 1152 एकड़ ज़मीन किसानों को वापस दिलवाई. केवल यही नहीं वे विकलांगों की समस्या, पर्यावरण की समस्या, आत्महत्या समाधान हेतु गोष्ठियां, उचित स्वास्थ्य व्यवस्था के अंतर्गत कैंसर से लड़ने के समाधान आदि विषयों से जुड़कर समाज को विकसित दिशा देने का प्रयास लगातार कर रहे हैं. डॉ विजय समाज हित के लिए अब तक 42 बार रक्तदान भी कर चुके हैं, जिससे जरुरतमंद मरीजों को समय पर सहायता मिल सकें. 

सामाजिक परिवर्तन एवं समाज कार्य में बाधाएं :

समाज में बरसों से चली आ रही रुढ़िवादी मान्यताओं का डॉ विजय खंडन करते हैं, जो केवल दकियानूसी विचारों पर आधारित है और व्यक्ति के समग्र विकास की राह को बाधित करती है. उनका मानना है कि आज समाज उचित दिशा- निर्देश के अभाव में भटक गया है, व्यवस्था उल्ट पुलट कर रह गयी है, जिसके लिए एक सकारात्मक परिवर्तन लाना अति आवश्यक है. उनके अनुसार-जैसे नेत्र की रेटिना पर उल्टे चित्र बनते हैं वैसे यहाँ सब उल्टा पुलटा है. 

साथ ही वे यह भी मानते हैं कि वर्तमान में अपनी बातों को समाज के हर भाग तक पहुंचा पाना एक बड़ी चुनौती है. आज व्यक्ति के पास अच्छे विचारों की कमी नहीं है, परन्तु उन्हें लोगों तक पहुंचा पाना और उनका लागू होना एक जटिल प्रक्रिया है. उनके अनुसार आज समाज में कुछ भी बेहतर करने का विचार रखने वालों के समक्ष सबसे बड़ी बाधा यही है कि आप जिनके लिए लड़ रहे होते हैं, अथक प्रयास कर रहे होते हैं, वही आपकी बातों को नहीं समझ पाते हैं. 

नीति परिवर्तन के संबंध में विचार :

डॉ विजय नीतियों के निर्माण एवं नव परिवर्तन के संबंध में बेहद स्पष्ट विचार रखते हैं, उनके अनुसार आज देश को राजनीति, धर्मनीति, लूटनीति के स्थान पर केवल जीवन नीति की दरकार है. उनका कथन है कि आज देश में किसी भी चीज की कमी नहीं है केवल व्यवस्थापकों की कमी सर्वाधिक है, भ्रष्टाचार के चलते सभी नीतियां लागू होने से पहले ही दम तोड़ देती हैं, सरकार केवल नोटों और वोटों की भिखारी की भूमिका में है इन्हीं का प्रचार करते दिखती है. जनता की बेहतरी का दावा मात्र कागजों पर ही सिमट कर रह जाता है, व्यवहार में कभी आ ही नहीं पाता. यदि एक सुचारू जीवन नीति Rule of  Law की जगह Rule of Care नागरिक की जीवनचर्या का हिस्सा बन जाए, तो समाज चहचहा उठेगा. 

राष्ट्र हित के मुद्दों पर विचारधारा :

सर्वप्रथम मंडल कमीशन की सिफारिशों से देश के विघटित होने के खतरे को भांपते हुए डॉ विजय ने तत्कालीन प्रधानमंत्री स्म्रतिशेष श्री वीपी सिंह को खुले पत्र भेजे. 06 अक्टूवर 1990 को JNU के 10 छात्रों के साथ पूर्व राष्ट्रपति आर वेंकटरमन से मिलने गये थे, जो तलाशी के कारण हुये विलंब से संभव नहीं हो पाया, यहीं से उनके जीवन ने नया मोड़ लेना आरम्भ कर दिया था, सरकार की खामियों से देश को लगातार पिछड़ते हुए देख डॉ विजय को बेहद तकलीफ होती है.

उनका कहना है कि भारत में प्राकृतिक संसाधनों एवं मानवीय मूल्यों की कोई कमी नहीं हैं, परन्तु सरकारी पारम्परिक अव्यवस्थाओं के चलते आज विभिन्न समस्याएं सिर उठाए हुए हैं. शिक्षा का स्तर घटना, किसानों की दुर्दशा आदि के कारण मानवता कराह रही है, बच्चे जवानी से पहले बुढ़ापे मे प्रवेश कर रहे हैं देश में महिलाएं, बच्चियां सुरक्षित नहीं है. मूलभूत समस्याएं आज देश को विकास की धारा से पीछे धकेल रही हैं, जिसके लिए युवाओं को एकजुटता से आगे बढ़ना ही होगा. 

डॉ विजय के अनुसार आतंकवाद का मुद्दा भी आज बेहद गंभीर है, जिसने वैश्विक तौर पर हडकंप मचाया हुआ है. इन सभी समस्याओं के लिए वे वैज्ञानिक एवं तकनीकी सोच पर आधारित विकल्प सुझाते हैं. डॉ विजय द्वारा इन सभी समस्याओं के उचित समाधान की दिशा में अप्रैल 2010 में तत्कालीन राष्ट्रपति महोदया श्रीमती प्रतिभा पाटिल से भी मुलाकात की गयी, बहुत से बिन्दुओं पर डॉ विजय ने अपने विचार उनके सामने रखे, जिसमें उन्हें कुछ हद तक सफलता भी प्राप्त हुई. विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में सम्पादकीय TV पर लाइव प्रसारण, अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर उनकी सटीक प्रतिक्रियाएं, जन विहीन जानवर रैलियां, शमशान से शासन तक -रिक्शे पर जिन्दा लाश का शहर में भ्रमण, देखो एक प्रोफेसर रिक्शा चलाता है, गधों का जुलूस, चलती फिरती मादक द्रव्य भोज रैलियां, अनेकों बार 9-9 दिनीआमरण अनशन / कार्य करते हुए चलता फिरता ऐतिहासिक आमरण अनशन 37 दिनों का, राष्ट्रपति / कुलाधिपति /कुलपति के द्वारा 131313/13131 रूपये के बाल बच्चा पाल पुरस्कार की घोषणा, अब तक 13 पुरस्कार कुलाधिपति /कुलपति के हाथों वितरित, 42 बार रक्तदान, जनहित में कई बार जेल गमन, अनेकानेक गतिविधियां उनके निर्भय और निस्वार्थ क्रियाकलापों के संघर्ष से युक्त है. जीरो बजट पर टेलीपोर्टेशन, विश्व दर्शन, इसी शरीर में पुनर्जन्म, हजारों वर्षों तक निरोगी रहकर जीने की विधा की खोज में लिप्त हरफनमौला डॉ विजय पाल से जब आप मिलेंगे तो ऐसा लगेगा कि वे हर बात में करते हैं नया धमाल--उन्होंने बेहोशी में कम से कम चौरंगे राष्ट्रीय ध्वज को तिरंगा स्वीकारे / पुकारे जाने का, मातम का समय हो या फिर कभी भी हाल चाल पूछे जाने पर सब ठीक है, बढ़िया है जबकि होते नहीं हैं फिर भी - जैसे जबाव देने की प्रथा पर सवालिया निशान लगाते हुए पूरी कायनात को बीमार घोषित कर दिया है. दलतंत्र को लोकतंत्र , भारत सरकार को केंद्र सरकार, नोट को रुपया, तोते की चोंच को तोते की नाक समझना / मानना, बहुमत को बेहोशी का प्रमाण पत्र देने के लिए काफी है विकल्प के रूप में --जिस तरह से सब्जी में नमक दिखाई नहीं देता, उसके कम /ज्यादा या न होने पर सब्जी का स्वाद विगड़ जाता है, उसी तरह से एक सरकार जो न दिखाई देती है, न मान्यता है, विज्ञान तंत्र पर आधारित "वैज्ञानिक सरकार " को मान्यता देना समय की मांग है. अब पारम्परिक, काल्पनिक, तथाकथित धार्मिक, तथाकथित राजनैतिक से इतर वास्तविक संवैधानिक " वैज्ञानिक सरकार " एक मात्र विकल्प होगा, जो Rule of Law  से ज्यादा Rule of Care को महत्व देगा. 

      डॉ विजय अपना चरित्र प्रमाण पत्र  " मैं दुनिया का सबसे ज्यादा गिरा हुआ प्राणी हूँ, कृपया मुझे उठाओ न !" स्वयं घोषित करते हुए कहते हैं कि यदि सभी स्वलिखित चरित्र प्रमाण पत्र ईमानदारी से अपने माता पिता भाई बहनों को दें तो बहुत कम समय में पूरी दुनिया बहुत खूबसूरत बन जायेगी. विश्व के प्रत्येक प्राणी का शरीर -- उसकी दृष्टि में दुनिया की संपूर्ण संपत्ति से भी ज्यादा बहुमूल्य है, उनकी दृष्टि में अब तक कोई भी प्राणी न उससे ज्यादा महान पैदा हुआ है, न है और न पैदा होगा, की जांच कर लें. उसकी रक्षा की स्वयं जिम्मेदारी लेने की वकालत करते हुए कहते हैं कि अपनी सारी ऊर्जा अपने पर लगाएं न कि झूठी आस्था और विश्वास के नाम पर मरे हुए लोगों पर, रोजाना अस्तित्वहीन की जगह अपना नाम ही लें --निश्चिन्त भाव से जीने के लिए -- सामने वाले को - विजय हो आपकी विजय हो कहकर आपके माता - पिता के, चरण स्पर्श, नमस्कार, प्रणाम या अन्य सम्बोधन के स्थान पर विवेक स्पर्श करें या बोले और अपना नाम लें, अपने को प्यार करें, अपने स्वयं संरक्षक बने, केवल अपना ही ख्याल रख लें तो यह पूरे विश्व के ऊपर बड़ा अहसान होगा खासकर मेरे ऊपर क्योंकि मुझे ऐसे लोगों का ख्याल नहीं रखना पड़ेगा. लोगों द्वारा विभिन्न सम्बोधित शब्दों (जानवर, गुंडा, सनकी, पागल, किन्नर सम्राट, बच्चा, आतंकवादी,---) को नोबेल पुरस्कार से बड़ा सम्मान मानकर संभाल कर अपने नाम में जोड़ लेते हैं, कोई कुछ भी कहे कहता रहे, कोई फर्क नहीं पड़ता और सामने वाले को चाहे मित्र हो या शत्रु --"तुम हो बड़े महान तुम्हारे मुहं में हलवाई की दुकान" कहकर उसे ठंडा कर अपना बना लेते हैं ऐसे हैं - नवप्रवर्तक  - डॉ वी एन 'पाल'

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