चंद्रवीर सिंह जी भारतीय भाषाओं के प्रेमी हैं. यह ऐसे भाषाविद है जिन्हें किसी भी भाषा से कोई आपत्ति नहीं मगर अपनी भारतीय भाषाओं के लिए इनका प्रेम कुछ खास है. यह अंग्रेजी सहित 20 भारतीय भाषाओं का ज्ञान रखते हैं.
चंद्रवीर सिंह भारतीय भाषा आंदोलन से जुड़े हुए हैं. भारतीय भाषाओं को हक दिलाने और इसे अंग्रेजी की गुलामी से मुक्त कराने के लिए यह निरंतर प्रयासरत हैं. इस कोशिश का पता इसी से चलता है कि वह वर्षों से भारतीय भाषा आंदोलन से सक्रिय रूप से जुड़े हैं. यही नहीं इन्हें 30 साल पत्रकारिता का अनुभव भी है यह विभिन्न जगह छपते भी रहे हैं और अपनी बात पहुंचाते रहे हैं.

चंद्रवीर सिंह जी उत्तर प्रदेश के
बुलंदशहर जिला के मूल निवासी हैं. घर परिवार से बेहद संपन्न चंद्रवीर सिंह बेहद सरल व्यक्तित्व के इंसान हैं. इनकी सादगी, सरल जीवन और मिलनसार स्वभाव अपने आप में इनका परिचय है. बनी बनाई पत्रकारिता का कैरियर छोड़ संकल्पित मनसे इन्होंने भारतीय भाषा आंदोलन से जुड़ने का फैसला किया था. यह उनके और उनके ही जैसे कितनों के संघर्षों का नतीजा है कि भारतीय भाषा आंदोलन को लेकर चलाई जा रही मुहिम के कारण भारतीय भाषाओं को कई जगह प्राथमिकता दी जाने लगी है मगर अभी भी इस में बहुत बदलाव आना बाकी है.
भारतीय भाषा आंदोलन से
चंद्रवीर सिंह जिस निष्ठा से जुड़े हैं वह अपने आप में अद्भुत है. वह 1990 यानी कि 27 साल से भारतीय भाषा आंदोलन से जुड़े हुए हैं. इस आंदोलन को प्रभावशाली बनाने के लिए और साथ ही साथ और भी लोगों को भारतीय भाषाओं के हक में खड़ा करने के लिए यह दिन रात लगे रहते हैं. यहां तक कि काम में मशगूल रहते हुए इन्हें ना तो अपने खाने का पता होता है ना ही रहने का कोई ठिकाना. आज के डिजिटल दुनिया में जहां हर किसी के पास आपको एक एंड्राइड फोन दिख जाता है वैसे में इनके पास एक फोन भी नहीं. आपको यह बात स्वीकार करने में आश्चर्य हो रहा होगा मगर यह सच है. भारतीय भाषाओं के लिए समर्पित इस इंसान का अपनी भाषाओं के लिए ऐसा प्रेम शायद ही कहीं देखने को मिले.

आजादी के तुरंत बाद ही पुरुषोत्तम दास टंडन द्वारा भारतीय भाषा आंदोलन शुरू किया गया था. चंद्रवीर जी का मानना है कि आजादी के इतने वर्षों बाद भी भारतीय भाषाओं को जो सम्मान मिलना चाहिए था वह नहीं मिल सका है. चंद्रवीर सिंह जी का मानना है कि वह भारतीय भाषा आंदोलन से जुड़े उसके पीछे बहुत बड़ा कारण था. उनके अनुसार इंडिया और भारत के बीच बहुत बड़ा अंतर है. भारतीय भाषा
आंदोलन इंडिया के लिए काम ना करके भारत के लिए,
भारत को बनाने के लिए कार्य कर रहा है. गांधीजी के सपने को आगे बढ़ा रहा है. भारत हजारों साल पुरानी संस्कृति में समाहित है. इस संस्कृति को बचाना, उनके लिए काम करने वाला, भारत की अस्मिता को अपने ध्यान में रखने वाला कार्य भारतीय भाषा आंदोलन कर रहा है. भारतीय भाषा आंदोलन का मानना है कि किसी भी राष्ट्र का निर्माण उसकी संस्कृति, उसकी भाषा और उसकी परंपरा से होती है. कभी भी किसी राष्ट्र का निर्माण, किसी राष्ट्र का पुनरुद्धार तब तक नहीं हो सकता जब तक उसकी भाषा, उसकी संस्कृति को बचाया ना जा सके, उसके परंपरा को सहेजा न जा सके. विदेशी भाषा कभी भी किसी राष्ट्र का निर्माण और पुनरुद्धार नहीं कर सकती क्योंकि देखें तो पहले राष्ट्र में फारसी चलती थी बाद में अंग्रेजी आ गई लेकिन भारतीय भाषाएं जो संस्कृत से निकली हुई है वह अपने में कहीं ज्यादा समृद्ध या दुनिया की किसी भी दूसरी भाषाओं से कहीं ज्यादा शक्तिशाली और समृद्धि है. इसीलिए उनका और उनके भारतीय भाषा आंदोलन का मानना है कि सारा कामकाज, सारी शिक्षा दीक्षा भारतीय भाषाओं में होनी चाहिए.
भारतीय भाषा आंदोलन की वजह से ही संघ लोक सेवा आयोग ने भारतीय भाषाओं में भी परीक्षा लेनी शुरू की. भारतीय भाषा आंदोलन का यह भी मानना है भारतीय नयाय तंत्र यानी भारतीय अदालतों में भी और भारतीय संसद में भी सभी कार्य भारतीय भाषा में ही किया जाना चाहिए. चंद्रवीर सिंह जी कहते हैं हमारा आंदोलन तब तक जारी रहेगा जबतक हम अपने प्रयास में सफल नहीं हो जाते.
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