Designation - Activits & Founder, R.D Memorial Public School, Ghaziabad
Badge number - 71182931
समाज में आज भी ऐसे लोग मौजूद हैं जिन्हें लोग उनके नाम के साथ साथ उनके काम से भी पहचानते हैं. अशोक श्रीवास्तव एक ऐसा ही नाम है जो अपने नाम के साथ साथ अपने कामों के द्वारा भी पहचाने जाते हैं.
अशोक श्रीवास्तव समाजसेवी तो हैं ही मगर सामाजिक जिम्मेदारियों को निभाने के साथ साथ वह
राजनीति में भी सक्रिय हैं.

अशोक श्रीवास्तव मूल रुप से बिहार के निवासी हैं. यह गोपालगंज जिले के बरौली थाना के अंतर्गत बेलसंड गांव के रहने वाले हैं. इनकी शुरुआती पढ़ाई अपने गांव में ही रहकर हुई. मगर पढ़ने का शौक ही कहिए कि इन्होंने छपरा आकर राजेंद्र कॉलेज से अपने स्नातक की पढ़ाई बीएससी से की. स्नातक होने के तुरंत बाद नौकरी की तलाश में वह वर्ष 1974 में अकेले ही गाजियाबाद आ गए. गाजियाबाद आने का उनका उद्देश्य था कि उस समय यह शहर औद्योगिक तौर पर उभर कर सामने आया था और बिहार में पर्याप्त नौकरी की उपलब्धता कम थी. ऐसे में गाजियाबाद में अच्छी नौकरी की संभावना उन्हें दिखी और अकेले ही वह
गाजियाबाद कूच कर गए.
अशोक श्रीवास्तव जब
गाजियाबाद आए तो उनकी जेब में महज 5 रुपये ही थे मगर विडम्बना देखिए कि जिस इकलौते शर्ट पैंट को उन्होंने नौकरी की तलाश के लिए धोकर सूखने को रखा था उसे बंदरों ने फाड़ दिया. फिर किसी तरह उन्होंने अपने किसी पड़ोसी से 35 रुपये का जुगाड़ कर कुर्ता पजामा खरीदा.
बिहार को छोड़ इतनी दूर और जिस नौकरी की तलाश और उम्मीद में वह आए थे उसकी भी एक दिलचस्प कहानी है. नौकरी की खोज करते-करते उनकी नौकरी मैस्कॉट इंडिया जोकि प्लायर की कंपनी थी उसमें हो गई. मगर उस दौरान एक स्नातक को जो नौकरी मिलनी चाहिए थी वह उनकी पढ़ाई के मुताबिक बिल्कुल नहीं था. मैस्कॉट इंडिया में उन्हें एक हेल्पर के तौर पर रखा गया था. वहां उनका काम था थेली पर लोहे का सामान लादकर एक अड्डे से दूसरे अड्डे तक पहुंचाना. अपने जीवन यापन के लिए उन्होंने यह नौकरी तो कर ली मगर चार-पांच दिन नौकरी करते हुए ही उन्हें या लगने लगा कि उनकी पढ़ाई के मुताबिक वह काम नहीं कर रहे हैं. ऐसे में वहां के इंजीनियर से मिले और और बड़े ही निर्भीक होकर उन्होंने उनसे कहा कि मैंने बैचलर साइंस से किया है और यहां जो इंस्पेक्शन इंस्पेक्टर है मैं उसका काम बखूबी कर सकता हूं. इंजीनियर ने उनकी योग्यता देखकर उन्हें तुरंत इस पोस्ट पर रख लिया. कुछ दिन काम करने के बाद फिर उन्होंने दूसरी फैक्ट्रियों में भी काम किया और उन्हें एचआर का भी पद मिल गया. कुल दो वर्ष काम करने के बाद उन्होंने नौकरी छोड़ दी और खुद का काम शुरू किया.
उन्होंने प्रोफेशनल तौर पर अपनी
अशोक श्रीवास्तव एसोसिएट प्राइवेट लिमिटेड कंपनी बनाई और श्रम कानून सलाहकार के तौर पर उन्होंने काम करना शुरू किया. अशोक श्रीवास्तव बताते हैं कि इस प्रोफेशन में पूरे दिल्ली-एनसीआर में उनका नाम सबसे ऊपर है.
अशोक श्रीवास्तव बेहद ही सामान्य और सरल परिवार से आते हैं. इनके पिता बिरला शुगर केन फैक्ट्री में लेबर इंचार्ज ऑफिसर थे और मां गृहणी.
गाजियाबाद आने के 8 वर्षों तक अशोक श्रीवास्तव बैचलर जीवन में रहे. तब वह छोटे से किराए के मकान में रहते थे. 1980 में उनकी शादी हुई और उसके 2 वर्ष बाद जब उन्होंने खुद का घर खरीदा तब उन्होंने अपने परिवार को भी गाजियाबाद बुला लिया.
अशोक श्रीवास्तव वाकई में हमारे सामने एक मिसाल है. आज से लगभग 43 वर्ष पूर्व बिहार से
गाजियाबाद यह काम की तलाश में आए थे मगर आज अपने बिजनेस के सहारे 73 लोगों को खुद नौकरी दे रहे हैं.
समाज के प्रति यह बेहद संवेदनशील हैं. अपने शुरुआती समय में इन्हें गाजियाबाद में जिन जिन तकलीफों का सामना करना पड़ा उसको समझते हुए और उसका दर्द दूसरे को कम से कम हो इसके लिए उन्होंने पूर्वांचल भोजपुरी महासभा बनाया. अशोक जी बताते हैं कि जब वह यहां आए उस दौरान जो पूर्वांचल और बिहार के लोगों की स्थिति थी वह बेहद दयनीय थी. उनका जमकर शोषण हो रहा था. उनके दर्द को देख कर उनको लगा कि सभी को एकत्रित कर ही हम एक पहचान बना सकते हैं. तब जाकर अशोक जी ने पूर्वांचल भोजपुरी महासभा समिति की स्थापना की. शुरुआत के 6 वर्ष वह खुद इसके अध्यक्ष रहे बाद में 14 वर्ष दूसरे ने इस पद को संभाला और अब फिर से 2 वर्ष से अशोक श्रीवास्तव पूर्वांचल भोजपुरी महासभा के अध्यक्ष हैं. यही नहीं अशोक जी भोजपुरी को आठवीं सूची में दर्ज करवाने के लिए बेहद संघर्ष कर रहे हैं. इसके लिए वह खुद आंदोलन चला रहे हैं और कई आंदोलनों में शरीक भी होते रहे हैं. इसके साथ अशोक जी लगातार भोजपुरी के लिए राष्ट्रीय स्तर पर कवि सम्मेलन का आयोजन भी करवाते रहते हैं. भोजपुरी के लिए उनके प्रयासों को देखते हुए ही विश्व भोजपुरी सम्मेलन के गाजियाबाद इकाई का भी उन्हें अध्यक्ष बनाया गया है.

अशोक श्रीवास्तव जी एक साथ कई जिम्मेदारियों का भी निर्वाह कर रहे हैं. वह जहां अशोक श्रीवास्तव एसोसिएट प्राइवेट लिमिटेड के डायरेक्टर हैं तो वहीं पूर्वांचल भोजपुरी महासभा के अध्यक्ष भी. अखिल भारतीय कायस्थ महासभा के उपाध्यक्ष हैं, अशोक प्रहरी अखबार के मुख्य संरक्षक है तो वही आर डी मेमोरियल पब्लिक स्कूल के संस्थापक भी. इस स्कूल को बनाने की भी एक दिलचस्प कहानी है. हुआ यूं कि अशोक श्रीवास्तव को लगा कि यहां जो गरीब तबके के बच्चे हैं उनको उस तरह की शिक्षा नहीं मिल पा रही जो उनका अधिकार है. यानी एक समान शिक्षा मुहैया करवाने के लिए उनके मन में विद्यालय बनाने का ख्याल आया. मगर उस दौरान उनके पास इतना पैसा नहीं हुआ करता था. हर रोज जितना कमा कर लाते उतना रोज़ विद्यालय के निर्माण में लगाते और धीरे धीरे वर्षों की मेहनत के बाद यह विद्यालय बन पाया.

अशोक श्रीवास्तव जैसे लोग कम ही होते हैं. समाज के लिए जिस तरह की संवेदना वे रखते हैं वह वाकई अपने आप में एक बहुत बड़ी बात है. समाज के प्रति यह उनकी कोशिश का ही नतीजा है कि आज समाज में उन्हें बेहद सम्मान की नजरों से देखा जाता है. इनके कार्यों के लिए इन्हें कई सम्मान भी प्राप्त हो चुके हैं मगर यह सारे सम्मान उनके कार्य को देखते हुए कम ही प्रतीत होते हैं. आज हमारे समाज में अशोक श्रीवास्तव जैसे व्यक्तित्व की बेहद जरूरत है.
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