उत्तर प्रदेश में नई सरकार बनने के बाद प्रशासनिक स्तर पर चौथी बार हुए फेरबदल में 147 अफसरों का तबादला हुआ. उन्हीं में से एक नाम है अनुराग आर्य का. अनुराग आर्य को कानपुर पूर्व का एसपी बनाया गया है. अनुराग आर्य को चुस्त-दुरुस्त और हमेशा ही अनुशासन का पालन करने वाला माना जाता रहा है. अप्रैल महीने में कानपुर के एसपी के तौर पर नियुक्त हुए अनुराग आर्य ने आते ही कानपुर में कई कार्य किए हैं. अपने जिम्मेदारियों को उन्हें बखूबी निभाना आता है. अपने कार्यों के प्रति वह बेहद गंभीर हैं और साथ ही अपने सहयोगियों से भी वह इसी की अपेक्षा रखते हैं. काम की सजगता देखिए कि एक बार वह अकेले साइकिल पर ही सिविल ड्रेस में कानपुर के चेकरी थाने पर निरीक्षण करने आ गए, फाइलों की पड़ताल की और काम पूरा ना होने के कारण उसे जल्द से जल्द पूरा करने का निर्देश दिया.
अनुराग आर्य 2013 बैच के आईपीएस हैं. अनुराग बागपत जिले के छितरौली गांव के रहने वाले हैं. पिता रमेशचंद्र आर्य और मां पूनम दोनों ही पेशे से डॉक्टर हैं. अनुराग की शुरुआती पढ़ाई बागपत के ही शिशु मंदिर में हुई. उन्हें खेलकूद का बेहद ही शौक था इसीलिए जिले के ही स्पोर्ट्स कॉलेज में उन्होंने दाखिला ले लिया. आगे जाकर उन्होंने मिलिट्री स्कूल, देहरादून में अपनी पढ़ाई की. वर्ष 2009 में बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से स्नातक किया. बचपन में उन्हें जो माहौल मिला उसने उन्हें सिविल सर्विसेस के लिए रुचि उत्पन्न की. स्नातक करने के बाद वर्ष 2010 से उन्होंने सिविल सर्विसेज की तैयारी शुरु कर दी. साल 2012 में आरबीआई ग्रेड बी के मैनेजर की उन्होंने परीक्षा दी जिसमें उनका सिलेक्शन हो गया. उनके जीवन की यह पहली नौकरी थी. उनकी पोस्टिंग आरबीआई, कानपुर में हुई. मगर यहां का काम उन्हें रास नहीं आ रहा था. यहां इनडोर वर्किंग करना पड़ता था जबकि उन्हें आउटडोर करना पसंद था इसलिए उन्होंने नौकरी छोड़ दी और फिर से एक बार सिविल सर्विस की तैयारी शुरू कर दी. साल 2012 में उन्होंने सिविल सर्विस का पहली बार एग्जाम दिया और पहली बार में ही उन्होंने इसे क्वालीफाई कर लिया. 2013 में यह आईपीएस के लिए सिलेक्ट हुए.
पूर्व में अनुराग आर्य वाराणसी में सीओ ट्रैफिक और सीओ क्राइम ब्रांच का कार्यभार भी संभाला है वहां भी उन्होंने सराहनीय कार्य किया. अपने कार्य के प्रति बेहद गंभीर और ड्यूटी के दौरान काफी सजग रहने वाले इस शख्स को कार्य में किसी भी प्रकार की कोताही पसंद नहीं.
बचपन से ही इन्हें आर्मी की वर्दी अच्छी लगती थी इसी वजह से उन्होंने आर्मी स्कूल में भी पढ़ाई की. उन्हें जो माहौल मिला उसने उन्हें सिविल सर्विसेस के लिए उत्साहित तो किया ही मगर उनकी पढ़ाई गांव में हुई और उन्होंने देखा कि गांव वालों को सरकार से छोटी-छोटी उम्मीदें होती हैं और उसे पूरा करना सिविल सर्विस से ही संभव है और यहीं से सिविल सर्विसेज में जाने की ख्वाहिश उनकी बुलंद होती गई. ग्रामीण भारत की समस्या पर उनकी समझ यह बताती है कि गांव में काफी कमियां हैं खासकर अवसर की और इसी वजह से लोग गांव को छोड़ शहर की ओर जाते हैं. अगर गांव में ही शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार जैसी सुविधाएं मुहैया करवा दी जाए तो पलायन रुकेगा.
अनुराग आर्य की खेलों में बेहद ही दिलचस्पी रही है. यह बास्केटबॉल के नेशनल प्लेयर भी हैं. इनका मानना है कि भारत में स्पोर्ट्स को बेहतर बनाने के लिए फिटनेस को प्राथमिकता देने की आवश्यकता है अगर हम इस पर फोकस शुरू कर दें तो यहां भी स्पोर्ट्स कल्चर डेवलप हो जाएगा. साथ ही उनका यह भी मानना है कि गांवों में स्पोर्ट्स का विकास होना चाहिए इससे नई पीढ़ी को दिशा मिलेगी साथ ही स्पोर्ट्स कोटे से उन्हें रोजगार भी मिल सकता है. अनुराग आर्य को साथ ही पढ़ने का भी शौक है, खाली समय में यह किताबें पढ़ते हैं.
अनुराग आर्य सिविल सर्विसेज की तैयारी करने वालों के लिए बताते हैं कि जब भी इंटरव्यू में उनसे कुछ पूछा जाए तो वह घबराएं नहीं उन्हें खुद पर विश्वास होना चाहिए कि वह जो बोल रहे हैं वह सही है. जिस किसी को भी लगता है कि वह बोलते समय हिचकते हैं उन्हें इसके लिए पहले से ही प्रैक्टिस करनी नहीं चाहिए. साथ में एक बात का विशेष ध्यान रखना जरूरी है कि अगर आपअंग्रेजी में सही से बात नहीं कर पाते हैं तो इंटरव्यू में बिल्कुल भी अंग्रेजी में जवाब ना दें कॉन्फिडेंस के साथ हिंदी में जवाब देना जरूरी है.