Ad
Search by Term. Or Use the code. Met a coordinator today? Confirm the Identity by badge# number here, look for Navpravartak Verified Badge tag on profile.
 Search
 Code
Searching...loading

Search Results, page of (About Results)

मानवीय भावनाओं को नियंत्रित करता सोशल मीडिया

Fake Information on Facebook – Broken democracies and Criminal Culpability on Facebook Owners, a Research

Fake Information on Facebook – Broken democracies and Criminal Culpability on Facebook Owners, a Research समाज को जोड़ने का नहीं तोड़ने का काम कर रहा है आज का सोशल मीडिया

ByManoj Thakur Manoj Thakur   Contributors Deepika Chaudhary Deepika Chaudhary 74

Ad
  अपने जन्मदिन पर एक कानून प्रोफेसर ने अपने ई-मेल इनबॉक्स को फेसबुक के नोटिफिकेशन से भरा हुआ पाया।
Ad
  
अपने जन्मदिन पर एक कानून प्रोफेसर ने अपने ई-मेल इनबॉक्स को फेसबुक के नोटिफिकेशन से भरा हुआ पाया। उन्हें उनके रिश्तेदारों, जानने वालों और सोशल मीडिया के दोस्तों ने जन्मदिन की बधाई दे रखी थी। इससे प्रोफेसर खासा निराश हुए। उन्हें यह सब अच्छा नहीं लग रहा था, इससे बचने लिए उन्होंने एक तरकीब सोची। अगली बार जन्मदिन के बधाई संदेश से बचने के लिए प्रोफेसर ने फेसबुक प्रोफाइल पर अपनी डेट आफ बर्थ  बदल दी, लेकिन कानून के प्रोफेसर यह देख कर हैरान थे कि जैसे ही उनकी नकली डेट आॅफ बर्थ सार्वजनिक हुई तो सोशल मीडिया यूजर जो उस प्राफेसर से जुड़े थे, उन्होंने बदली हुई तारीख को ही प्रोफेसर की जन्मदिन तिथि मान कर बधाई देना शुरू कर दिया। किसी ने यह जानने की कोशिश ही नहीं की, कि अभी कुछ दिन पहले तो उन्होंने उन्हें जन्मदिन की बधाई दी थी। 
  
सोशल मीडिया ने हमें यूं कंट्रोल कर लिया कि हमने सोचने की ताकत को खो दिया है : 
  
वह कानून प्रोफेसर शायद हम में से एक था। उनके झूठे जन्मदिन पर बधाई देने वाला एक भी व्यक्ति यह सोच ही नहीं रहा था कि क्या यह तारीख सही है? बस उनके सामने जैसे ही प्रोफेसर के जन्मदिन का नोटिफिकेशन आया उन्होंने तुरंत बधाई संदेश डाल दिया। यानि सोशल मीडिया हमें सोचने का वक्त भी नहीं दे रहा है। ऐसा लग रहा है कि सोशल मीडिया ने हमारे दिमाग को काबू में कर लिया है, अब वह जैसा चाहता है उसी तरह का व्यवहार हम से कराए जा रहा है। कम से कम प्रोफेसर के मामले में तो ऐसा ही होता नजर आ रहा है। 
  
  अपने जन्मदिन पर एक कानून प्रोफेसर ने अपने ई-मेल इनबॉक्स को फेसबुक के नोटिफिकेशन से भरा हुआ पाया।
 
  यह आखिर हुआ कैसे होगा? 
  
सोशल मीडिया हमें इस तरह से अपने काबू में कर लेता है कि हम तर्क-वितर्क करना या सोचना बंद कर देते हैं। हम वैसा ही व्यवहार करना शुरू कर देते हैं, जैसा कि हमसे कराया जाता है। मसलन प्रोफेसर का जन्मदिन आया, उसके दोस्तों ने बधाई संदेश देना शुरू कर दिया, वह भी बिना यह सोचे कि क्या यह उनका सही जन्मदिन है? सोशल प्लेटफार्म पर हम सभी ऐसा ही व्यवहार कर रहे हैं। यह बेहद चिंता की बात है कि सोशल प्लेटफार्म पर हम आॅटोमेटिक मशीन की तरह व्यवहार करते हैं या जैसा सोशल मीडिया हमसे जो व्यवहार कराना चाह रहा है हम वही करते जाते हैं। इसके लिए न हम सोचते हैं और न ही कोई तर्क करते हैं और क्रिया- प्रतिक्रिया के इस डिजिटल दौर का बेहतरीन वर्णन इवान सेलिंगर द्वारा रचित पुस्तक री-इंजीनियरिंग ह्यूमैनिटी में किया गया है, जो सोशल मीडिया समेत विभिन्न मानव-कंप्यूटर इंटरफेस की एक विस्तृत श्रृंखला की जांच करती है।  
  
सोशल मीडिया: यानि जुबान की बजाय बटन क्लिक कर हो रही बातचीत :
  
सोशल मीडिया आज के दौर में जबरदस्त भूमिका निभा रहा है। फेसबुक, लिंक्डइन और ट्विटर से हम दोस्तों, सहपाठियों और सहयोगियों के संपर्क में आसानी से रह सकते हैं। सोशल मीडिया पर आने वाली जानकारी हमें रिएक्ट करने के लिए प्रेरित करती है। यह किसी भी व्यक्ति की यह अवस्था है कि उससे वह काम कराया जा रहा है जो वह अभी करने नहीं जा रहा था। यानि आॅटोमेटिक तरीके से सोशल मीडिया पर आई जानकारी ने उस यूजर को रिएक्ट करने के लिए प्रेरित किया। उदाहरण के लिए फेसबुक पर हमारे दोस्तों के जन्मदिन की जानकारी आती है, जो हमें प्रेरित करती है कि हमें उन्हें बधाई देनी है। लिंक्डइन हमें उनकी काम की सालगिरह पर बधाई देने के लिए प्रेरित करता है। ट्विटर हमें ट्वीट्स कर खुद को उस क्रम में जोड़ने की कोशिश करता हैं जो चल रहा होता है। यह कहना गलत नहीं होगा कि हम जुबान से बातचीत करने की बजाय बटन पर क्लिक कर बातचीत कर रहे हैं। इससे वर्चुअल मीडिया में तो हम सामाजिक हो जाते हैं, परन्तु हकीकत में हम अपनी जान पहचान, दोस्तों और अपने दायरे के लोगों से बातचीत के मौके कम कर रहे होते हैं। 
  
  अपने जन्मदिन पर एक कानून प्रोफेसर ने अपने ई-मेल इनबॉक्स को फेसबुक के नोटिफिकेशन से भरा हुआ पाया।
 
  एक प्रयोग : यह समझने के लिए कि सोशल मीडिया किस प्रकार हमारी भावनाओं को कंट्रोल कर रहा है?
  
फेसबुक प्लेटफार्म पर लोगों के व्यवहार का आकलन करने के लिए एक प्रयोग किया गया। जन्मतिथि बदलने से जुड़ा विचार कुछ यूजर्स से साझा किया गया। उन्हें यह विचार खास पसंद आया, फिर 2017 की गर्मियों में आपसी सहमति से इस पर काम करना शुरू किया गया। फेसबुक पर दोबारा से जन्मदिन की बधाई देने के लिए जन्मतिथी को बदला गया। इस प्रयोग में 11 दोस्तों को शामिल किया गया। उनकी फर्जी जन्मदिन तारीख पर यह देखा गया कि उनके सोशल मीडिया फ्रैंड्स कैसे रिएक्ट करते हैं? इस शोध में कुल मिलाकर उनके 10,042 मित्रों में से 10.7 प्रतिशत ने उन्हें उनकी नकली तारीख पर जन्मदिन की बधाईयाँ दी। इसमें बहुत से ऐसे भी थे, जिन्होंने फोन पर संदेश भेजे या फोन कॉल कर शुभकामनाएं दीं। इसमें से बहुत ही कम ऐसे लोग थे, जो यह पता कर पाए कि जन्म तिथि नकली थी। जब 2015 और 2016 में आए जन्मदिन संदेशों की तुलना नकली जन्मदिन की शुभकामनाओं से की तो पाया कि यह लगभग बराबर ही थे। ऐसे में साफ है कि कैसे फेसबुक हमें अपने एजेंडे के अनुसार चला रहा है। दूसरे शब्दों में, इसे इस तरह से भी कह सकते हैं कि फेसबुक एक ऐसे रिमोट की तरह काम कर रहा है जो हमारे दिगाग को काबू में किए हुए हैं। यही वजह है कि फेसबुक पर एक जानकारी आती है और हर कोई इस पर रिस्पांस करना शुरू कर देता है। हैरानी की बात है कि 27 प्रतिशत संदेश "एचबीडी" या "जन्मदिन मुबारक" से ज्यादा कुछ नहीं थे और उन्होंने व्यक्ति के नाम का भी उल्लेख नहीं किया। 
  
फेसबुक हमें जन्म दिन पर बधाई देने वालों की संख्या बढ़ा सकता है। लेकिन क्या ऐसे लोगों की शुभकमानाएं ज्यादा मायने रखती हैं जो हमें बस इसलिए जन्मदिन की बधाई दे रहे हैं, क्योंकि वें सोशल प्लेटफार्म पर हैं और एक क्लिक से वें ऐसा करते हैं। इसकी बजाय वह जो सोशल मीडिया पर नहीं है या जो जन्मदिन याद रख कर शुभकामनाएं देते हैं, उन्हें बहुत कम शुभकामनाएं मिलती है। लेकिन क्या ऐसे लोगों की शुभकमानाएं ज्यादा मायने रखती है जो इसलिए शुभकामनाएं नहीं दे रहे कि उन्हें पता है आज जन्मदिन है, बल्कि इसलिए दे रहे हैं क्योंकि जन्मदिन की तारीख फेसबुक पर आ रही है। निश्चित ही यह एक ऐसी क्रिया है जो हम अपने मन से नहीं बल्कि फेसबुक से प्रेरित होकर कर रहे हैं। हालांकि यह अच्छा लगता है कि जन्मदिन पर ढेर सारी बधाई मिले, आखिर यह साल में एक ही बार आता है। ऐसे में जो लोग इस प्लेटफार्म पर नहीं हैं, निश्चित ही उन्हें कम बधाई मिलती है।
  

अब जबकि समाज में पहले से कहीं ज्यादा तकनीक है, ऐसे में अब हम रोजमर्रा के जीवन में भी सूचना तकनीक पर ही निर्भर हैं। जहां हमें हर रोज बहुत सी जानकरियां मिल रही है। यह जानकारी हमारे व्यवहार को प्रभावित भी कर रही है। कह सकते हैं कि डिजिटल प्लेटफॉर्म अब हमारे उदारवादी होने के मायने बदल रहे हैं। हम खुद की जानकारी या रिसर्च पर यकीन करने की बजाय सोशल मीडिया की ओर से दी जा रही जानकारी पर यकीन कर रहे हैं। कहना गलत नही होगा कि सोशल मीडिया ने हमारे जन्मदिन की दूसरों को जानकारी दी, उन्होंने शुभकामनाएं देना शुरू किया, यह जाने बिना कि इन शुभकामनाओं से ज्यादा महत्वपूर्ण और दूसरा काम भी हमारे पास हो सकता है, यह कहीं न कहीं साबित करता है कि हम वास्तविकता से दूर डिजिटल वर्ल्ड की कोरी काल्पनिकता में जी रहे हैं, जिसका प्रभाव जीवन के प्रत्येक पक्ष पर देखा जा सकता है।
  
  अपने जन्मदिन पर एक कानून प्रोफेसर ने अपने ई-मेल इनबॉक्स को फेसबुक के नोटिफिकेशन से भरा हुआ पाया।

Leave a comment for the team.
रिसर्च को सब्सक्राइब करें

इस रिसर्च पर अपडेट पाने के लिए और इससे जुड़ने के लिए अपना ईमेल आईडी नीचे भरें.

ये कैसे कार्य करता है ?

start a research
जुड़ें और फॉलो करें

ज्यादा से ज्यादा जुड़े लोग, प्रतिभाशाली समन्वयकों एवं विशेषज्ञों को आकर्षित करेंगे , इस मुद्दे को एक पकड़ मिलेगी और तेज़ी से आगे बढ़ने में मदद ।

start a research
संगठित हों

हमारे समन्वयक अपने साथ विशेषज्ञों को ले कर एक कार्य समूह का गठन करेंगे, और एक योज़नाबद्ध तरीके से काम करना सुरु करेंगे

start a research
समाधान पायें

कार्य समूह पारदर्शिता एवं कुशलता के साथ समाधान की ओर क़दम बढ़ाएगा, साथ में ही समाज में से ही कुछ भविष्य के अधिनायकों को उभरने में सहायता करेगा।

आप कैसे एक बेहतर समाज के निर्माण में अपना योगदान दे सकते हैं ?

क्या आप इस या इसी जैसे दूसरे मुद्दे से जुड़े हुए हैं, या प्रभावित हैं? क्या आपको लगता है इसपर कुछ कारगर कदम उठाने चाहिए ?तो नीचे फॉलो का बटन दबा कर समर्थन व्यक्त करें।इससे हम आपको समय पर अपडेट कर पाएंगे, और आपके विचार जान पाएंगे। ज्यादा से ज्यादा लोगों द्वारा फॉलो होने पर इस मुद्दे पर कार्यरत विशेषज्ञों एवं समन्वयकों का ना सिर्फ़ मनोबल बढ़ेगा, बल्कि हम आपको, अपने समय समय पर होने वाले शोध यात्राएं, सर्वे, सेमिनार्स, कार्यक्रम, तथा विषय एक्सपर्ट्स कोर्स इत्यादि में सम्मिलित कर पाएंगे।
समाज एवं राष्ट्र, जहाँ लोग कुछ समय अपनी संस्कृति, सभ्यता, अधिकारों और जिम्मेदारियों को समझने एवं सँवारने में लगाते हैं। एक सोची समझी, जानी बूझी आवाज़ और समझ रखते हैं। वही देश संसार में विशिष्टता और प्रभुत्व स्थापित कर पाते हैं।
अपने सोशल नेटवर्क पर शेयर करें

हर छोटा बड़ा कदम मायने रखता है, अपने दोस्तों और जानकारों से ये मुद्दा साझा करें , क्या पता उन्ही में से कोई इस विषय का विशेषज्ञ निकल जाए।

क्या आपके पास कुछ समय सामजिक कार्य के लिए होता है ?

इस एक्शन ग्रुप के सहभागी बनें, एक सदस्य, विशेषज्ञ या समन्वयक की तरह जुड़ें । अधिक जानकारी के लिए समन्वयक से संपर्क करें और अपने बारे में बताएं।

क्या आप किसी को जानते हैं, जो इस विषय पर कार्यरत हैं ?
ईमेल से आमंत्रित करें
The researches on ballotboxindia are available under restrictive Creative commons. If you have any comments or want to cite the work please drop a note to letters at ballotboxindia dot com.

Code# 52512

ज़ारी शोध जिनमे आप एक भूमिका निभा सकते है.