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जरूरी है भारतीय ग्रामों का योजनाबद्ध विकास - आत्मनिर्भर बुंदेलखंड के लिए एक प्रस्तावित योजना
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By Gunjan Mishra {{descmodel.currdesc.readstats }}
वर्तमान के परिवेश को देखते हुए एक सहज और सटीक तथ्य जो सामने आता है वह ये है कि इंसान के लिए प्रकृति के साथ अनुकूलता बेहद जरुरी है. प्रकृति, प्राकृतिक संसाधनों और व्यक्ति के बीच का सामीप्य वाकई विकास का एक नया अध्याय लिख सकता है. कोरोना के कारण तितर-बितर हुयी अर्थव्यवस्था को संभालने और करोड़ों देशवासियों को एक बार फिर उनके पांव पर खड़ा करने के लिए केंद्र सरकार करोड़ों की योजनायें सामने ला रही है, यह सब अपनी जगह सही हो सकता है लेकिन भारत जैसे कृषि और ग्राम प्रधान देश में वास्तविक प्रगति का सबसे बड़ा पहलू तो हमारे गांवों में ही छिपा है. यानि हमें हमारे गांवों को आत्मनिर्भर बनाना होगा.
वर्षों से सूखे और जटिल जलवायु की मार झेल रहे बुंदेलखंड को आत्मनिर्भर बनाना है, तो श्री पुष्पेंद्र भाई द्वारा मात्र 20,000 करोड़ की योजना का प्रस्ताव दिया गया है, जो कि केन बेतवा नदियों के गठजोड़ पर हो रहे खर्च से लगभग आधी धनराशि में ही बुंदेलखंड के लोगो का जीवन खुशहाल बना देगी. गुंजन मिश्रा पर्यावरणविद ने प्रस्तावित परियोजना का आर्थिक व पर्यावरणीय मूल्यांकन किया एवं बताया कि इस योजना में केन बेतवा नदियों के गठजोड़ की तरह न कोई विस्थापन और ना ही जगंल एवं जैवविविधता का नुकसान होगा बल्कि इस योजना से किसान आत्महत्या, पलायन, कुपोषण, अन्ना जानवरों की समस्या, उपजाऊ मिटटी का क्षरण, बाढ़ और सूखे जैसी समस्याओं से निजात मिलेगी. यह योजना पूरी तरह से प्रधानमंत्री जी के आत्मनिर्भर उद्देश्य को लेकर तैयार की गयी है.
स्थाई आत्मनिर्भर बुंदेलखंड के लिए 20,000 (बीस हजार) करोड़ रूपये की प्रस्तावित योजना का सुझाव निम्न प्रकार से है:
1. 5000 करोड़ की लागत से पांच लाख खेत तालाबों में 150-200 करोड़ घनमीटर बारिश के पानी का संरक्षण. यदि दस-बीस तालाबों के निर्माण की योजना एक ही गांव में बनाकर मशीन का चयन करें तो एल & टी/पोकलैंड 1800-2000 रूपए प्रति घंटे काम पर उपलब्ध होगी और ये मशीने एक घंटे में 80 घनमीटर मिट्टी आसानी से निकाल लेती है. अतएव 40-45 घंटे में 3000-3500 घनमीटर क्षमता के तालाब का निर्माण किसान आपसी सहमति से कर सकते हैं.
2. 1250 करोड़ की लागत से 5 लाख गोबर गैस निर्माण.
3. 250 करोड़ से 5 लाख नाडेप खाद के गड्ढों का निर्माण.
4. 7500 करोड़ की लागत से 5 लाख सौर्य ऊर्जा पम्प.
5. 3,250 करोड़ लागत से 5 लाख किसानों के खेतों की सुरक्षा के लिए बाड़ का इंतजाम.
6. 5 हजार करोड़ की लागत से किसानों के खेतों पर भवन/गौशाला निर्माण के लिए ब्याज रहित बैंक लोन के माध्यम से आर्थिक सहयोग.
इस योजना से जो लाभ और परिणाम किसानों को मिलेंगे, उनकी फेहरिस्त भी अच्छी खासी है..
1. 10 लाख हेक्टेयर कृषि भूमि की सिंचाई के लिए पानी की जरूरत पूरी होगी.
2. 5 लाख किसान परिवारों की आजीविका सुनिश्चित हो जायेगी, इसके अलावा परोक्ष व अपरोक्ष रूप से मछली, सिंघाड़ा, सब्जी आदि के उत्पादन से अन्य लोगों को भी रोज़गार मिल सकेगा.
3. 10 लाख हेक्टेयर भूमि में जैविक व पोषक अनाजों (कोदो, कुटकी आदि) का उत्पादन होगा, जिनकी विदेशों में बहुत मांग है, इससे देश का विदेशी मुद्रा भण्डार भी बढ़ सकेगा.
4. 10 लाख हेक्टेयर कृषि भूमि में कार्बन संतुलन व 10 करोड़ 5 लाख किलो ग्राम कार्बन डाइ ऑक्साइड (अगर इतना ही पानी बोरवेल से लिया जाये) का उत्सर्जन रोका जा सकेगा.
5. 10 लाख गोवंश का संरक्षण/संवर्धन – बांदा के प्रगतिशील किसान श्री प्रेम सिंह के अनुसार बुंदेलखंड की कृषि भूमि से एक एकड़ से अधिकतम 80 कुंतल अनाज का उत्पादन लिया जा सकता है, जो कि एक गाय के गोबर की खाद से मिटटी से लिया गया कार्बन पूरा हो जायेगा. जो कि 150 किलोग्राम रासायनिक खाद के बराबर है. इस तरह लगभग 10 लाख एकड कृषि भूमि के लिए खाद की उपलब्धता हो जायेगी. जिससे रु 1665 लाख की बचत रासायनिक खाद के माध्यम से होगी एवं खेत की मिटटी का कार्बन भी संरक्षित रहेगा. इससे मृदा व जल प्रदूषण भी रुकेगा.
6. 5 करोड़ पौधों से सुसज्जित वन -बाग आच्छादन, मतलब ये पेड़ पौधें हमें प्रोफेसर दास के अनुसार रु 672 बिलियन की सेवा अपने जीवन के 50 साल में देंगे.
7. 10 लाख परिवारों के लिए जैविक सब्जियां (5 लाख किचन गार्डन) - नवीनतम राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्रोफ़ाइल (एनएचपी) 2018 के अनुसार, भारत सबसे कम सार्वजनिक स्वास्थ्य व्यय वाले देशों में शामिल है. भारत सरकार जीडीपी के 1.02 प्रतिशत के हिसाब से प्रति दिन सिर्फ 3 रुपये प्रति व्यक्ति के स्वास्थ्य व्यय के साथ 'सभी भारतीयों को स्वास्थ्य आश्वासन' के अपने वादे को पूरा करने की योजना पर कार्य कर रही है. यानि सिर्फ बुंदेलखंड से 438 करोड़ रूपये सरकार स्वास्थ्य के माध्यम से बचत कर सकती है.
8. 5 लाख लोगो को रोज़गार मिलेगा, जिससे पलायन तो रुकेगा ही इसके साथ साथ बाहर के लोगो को भी रोज़ी रोटी मिल सकेगी.
9. 20 लाख लीटर दूध का उत्पादन यानि 6 करोड़ रूपये का सिर्फ दूध का कारोबार प्रतिदिन होगा.
10. 15 लाख किलोवाट (सौर्य ऊर्जा) विद्युत उत्पादन अर्थात 1488 टन कार्बन डाइ ऑक्साइड, 11574 टन सल्फर डाइ ऑक्साइड और 6000 टन नाइट्रस ऑक्साइड का उत्सर्जन यानि प्रदूषण नहीं होगा.
11. बायोगैस व बागों से जलाऊ लकड़ी उपलब्ध होने के कारण 5 लाख परिवारों के लिए गैस/ ईंधन की उपलब्धता. यानि 700 टन गैस की बचत प्रत्येक महीने होगी व प्रकृति के संसाधनों का संरक्षण होगा.
मई के महीने में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कोरोनावायरस महामारी से उबरने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ओर से घोषित 20 लाख करोड़ रुपये के आत्मनिर्भर भारत आर्थिक पैकेज को किस्त में साझा किया. 5 चरणों में उन्होंने पूरे 20 लाख करोड़ रुपये का फुल बैकअप भी बताया. इसके अंतर्गत पहले चरण में 554550 करोड़, दूसरे चरण के तहत प्रवासी मजदूरों, छोटे किसानों, स्ट्रीट वेंडर्स, आदिवासियों, मध्य वर्गीय परिवारों के लिए राहत कदमों का ऐलान किया, जिसमें 310000 करोड़, आर्थिक पैकेज की तीसरी किस्त के तहत वित्त मंत्री ने कृषि और उससे जुड़े सेक्टर के लिए 11 अहम ऐलान किए. इसमें 150000 करोड़, चौथा चरण कोयला, डिफेंस, मिनरल, सिविल एविएशन, स्पेस, पावर सेक्टर के लिए रिफॉर्म में 8100 करोड़ का ऐलान हुआ एवं पांचवां चरण आर्थिक पैकेज की पांचवी और आखिरी किस्त के तहत मनरेगा के लिए 40000 करोड़ रुपये का अतिरिक्त आवंटन, हेल्थ इंफ्रा पर खर्च बढ़ाने, टेक्नोलॉजी ड्रिवन एजुकेशन के लिए ऐलान किया गया.
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