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सितम्बर स्वास्थ्य विशेषांक – बदलते मौसम के साथ बनाए तारतम्य, आरोग्य के मन्त्रों से संवारें सेहत

भारतीय त्यौहार एवं संस्कृति.

भारतीय त्यौहार एवं संस्कृति. Opinions & Updates

ByDeepika Chaudhary Deepika Chaudhary   Contributors Kavita Chaudhary Kavita Chaudhary {{descmodel.currdesc.readstats }}

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सितम्बर यानि वर्षा ऋतू का अंतिम पड़ाव, इसे भारत में “राष्ट्रीय पोषण माह” के
रूप में जाना जाता है तो व

सितम्बर यानि वर्षा ऋतू का अंतिम पड़ाव, इसे भारत में “राष्ट्रीय पोषण माह” के रूप में जाना जाता है तो वहीँ विश्व भर में इसे “हेल्थी एजिंग मंथ” के रूप में विभिन्न स्थानों पर सेलिब्रेट किया जाता है. यानि देखा जाये तो स्वास्थ्य के लिहाज से यह महीना बेहद खास है. तभी तो एक ओर भारत में बाल स्वास्थ्य के रूप में तो दूसरी ओर अन्य स्थानों पर ढलती उम्र में स्वास्थ्य के प्रति सजगता के रूप में इसे देखा जाता है. यदि वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी इसे समझा जाये तो उम्र के ये दोनों की पड़ाव बेहद नाजुक होते हैं और बदलते मौसम के अनुसार ढलने में बुजुर्गों व बच्चों को अक्सर समस्या होती ही है.

किंतु हर पल बदलते मौसम के साथ भी तारतम्य बैठाया जा सकता है, यदि हमारा खान-पान और दिनचर्या प्रकृति के अनुरूप हो. साथ ही कुछ आयुर्वेदिक नियमों और मौसमी सावधानियों के साथ सितम्बर के महीने में भी रोगों से बचते हुए एक निरोगी जीवन का आनंद लिया जा सकता है. इसके लिए जरूरी है कि हम इस माह में हो रहे मौसमी परिवर्तनों को समझे, हमारी खाद्य शैली ऋतुनुसार हो और मौसमी बीमारियों से बचाव के लिए हमारे प्रयास भी प्रकृति से जुड़े हों, तो आइये सितम्बर माह इस विशेष स्वास्थ्य कड़ी के जरिये जाने सेहतमंद रहने के कुदरती तौर-तरीके.  

1. सितम्बर माह में जलवायु

सितम्बर यानि वर्षा ऋतू का अंतिम पड़ाव, इसे भारत में “राष्ट्रीय पोषण माह” के
रूप में जाना जाता है तो व

उत्तर भारत के लिहाज से सितम्बर ढलती वर्षा ऋतू का सूचक है, मतलब जितनी वर्षा जून, जुलाई और अगस्त में उत्तर भारत के अंतर्गत होती है..इस महीने में उसकी गति मंद पड़ जाती है. विशेष तौर पर दिल्ली, पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, बिहार जैसे राज्यों में बरसात धीमी होने लगती है और तापमान में परिवर्तन भी महसूस होता है. जैसे दिन और रात के तापमान में हल्का सा फर्क आ ही जाता है.

लेकिन यहां भी आप ग्लोबल वार्मिंग का कहर देख सकते हैं, जो वर्ष दर वर्ष सितम्बर माह का तापमान भी 40 डिग्री सेल्सियस तक पहुंचता दिख रहा है. जिससे उमस भी लगातार बढ़ रही है और महानगरों में तो बारिश की दशा भी ज्यादा अच्छी नहीं दिखाई दे रही है. उदाहरण के लिए राजधानी दिल्ली में इस बार 31 प्रतिशत कम वर्षा हुई, जिसके चलते ताप और उमस दोनों ही जमकर कहर बरपा रहे हैं.

मौसम में हो रहे इस अनचाहे परिवर्तन से बढ़ रहा है बीमारियों का प्रकोप भी...इस माह में बारिश और मच्छरों से होने वाली बीमारियों जैसे डेंगू, चिकनगुनिया, मलेरिया आदि का प्रकोप तो बढ़ ही रहा है, किन्तु बढती गर्मी और उमस भी हमारी प्रतिरोधक क्षमता को कम करने में कोई कसर नहीं छोडती है.

2. पोषक तत्वों से भरपूर भोजन शैली

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विभिन्न रोगों से लड़ने के लिए हमारी प्रतिरोधक क्षमता मजबूत होनी चाहिए..जिसके लिए हमारा आहार-विहार पुष्टिवर्धक होना जरूरी है. तो आइये जानते हैं कि सितम्बर माह में हमारी आहारचर्या कैसी हो?  

मौसमी फलों से संवारे सेहत

अंगूर - इस माह में बाजार में अंगूर आने शुरू हो जाते हैं. अंगूर में पाया जाने वाला हेरोस्टिलवेन नामक एण्टीआक्सीडेंट पदार्थ शरीर को बहुत से रोगों से बचाता है, साथ ही अंगूर खून में से शूगर की मात्रा को भी कम करता है.  

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सेब - सेब भी इस महीने में मिलने वाले प्रमुख फलों में से है, जिसमें डाइटरी फाइबर की अधिकता के चलते रोग प्रतिरोधक क्षमता में सुधार देखा गया है. साथ ही इसमें मौजूद पॉलिफेलोल एंटीऑक्सीडेंट के रूप में काम करता है और विभिन्न मौसमी रोगों से शरीर का बचाव करता है.

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नाशपाती - सितम्बर में आने वाली नाशपाती फाइबर का बेहतरीन स्त्रोत है, साथ ही इसमें पर्याप्त मात्र में विटामिन सी, विटामिन बी12, कॉपर इत्यादि मिनरल्स का खजाना मौजूद है. यह मौसमी बुखार के निवारण के लिए बेहद असरदायक है, क्योंकि यह अपनी एंटीपायरेटिक तकनीक के चलते शरीर के तापमान को संतुलित करती है.

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आलूबुखारा/प्लम बहुत से पोषक तत्वों से भरपूर है. आलूबुखारा में मौजूद पोटैशियम, डाइटरी फाइबर, एंथोसाईनिन जैसे तत्त्व तो पाए जाते ही हैं, साथ ही आलूबुखारा में कार्बोहाइड्रेट की अधिक तथा कैलोरी और फैट की मात्रा बहुत कम होती है . फ्लोरिडा एवं ओक्लाहोमा यूनिवर्सिटी में हुई रिसर्च के अनुसार इसमें मौजूद कैल्शियम इसे हड्डियों के स्वास्थ्य के लिए खास बनाता है.

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अमरुद - विटामिन सी की प्रचुरता लिए अमरुद भी हमारी प्रतिरोधक क्षमता को बहुत प्रभावशाली रूप से बढ़ाता है, साथ ही इसकी ठंडी तासीर के चलते पेट के बहुत से रोगों के लिए यह रामबाण ईलाज है.  

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मौसमी सब्जियों से पाएं सेहत का खजाना

तोरई - विटामिन ए, जिंक, आयरन, फाइबर का स्त्रोत तोरई आयुर्वेद के अनुसार यह पित्त व कफ़ दोष को समाप्त करती है. एंटी-वायरल एवं एंटी फंगल गुणों से युक्त तोरई शरीर को डिहाइड्रेट नहीं होने देते और लीवर एवं पेट के रोगों में बेहद लाभप्रद है.

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चिचिंडा - चाइनीज डाइट में अधिकतर देखा जाने वाला चिचिंडा अपने एंटीओबेसिटी और एंटीडायबिटिक गुणों के कारण जाना जाता है, इसमें विटामिन और खनिजों की भरपूर मात्रा के चलते यह मलेरिया बुखार में बेहद उपयोगी सिद्ध होता है.

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पत्तागोभी - पत्तागोभी अपनी विशेष मेडिसिनल प्रॉपर्टीज के कारण जानी जाती है, इसमें मौजूद बीटा केरोटिन, विटामिन बी1, बी6, सी, के इत्यादि इसे स्वास्थ्य के लिहाज से बेहद पोषक बनाते हैं. यदि आप इसे अच्छे से साफ़ करके सलाद के तौर पर या हल्का उबालकर सेवन करें तो उमस के वातावरण में होने वाली एलर्जी में यह खास उपयोगी है.

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कुंदरू - कद्दू के परिवार से आने वाला कुंदरू एक उष्‍णकटिबंधीय पौधा है, जो अपने एंटीऑक्सीडेंट तत्वों के कारण बेहद लाभप्रद है. यह पाचन तंत्र, उच्च रक्तचाप और कोलेस्ट्रोल से जुड़े बहुत से रोगों में लाभ पहुंचाता है.   

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अरबी - विटामिन ए, बी, सी के अलावा कैल्शियम और पोटेशियम, एंटी-ऑक्सीडेंट गुणों से भरपूर अरबी को सूप व सब्जी दोनों ही तरह से भोजन में शामिल किया जाता है. यह शरीर की इम्युनिटी को बूस्ट करने में अहम भूमिका निभाती हैं.

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अपने भोजन में इन मौसमी फलों एवं सब्जियों के अतिरिक्त कुछ मेडिसिनल हर्ब्स जैसे अदरक, तुलसी, करी पत्ता, काली मिर्च, गिलोय, आंवला चूर्ण, मुलहठी, हल्दी इत्यादि के प्रयोग भी अल्प किन्तु नियमित तौर पर करें. जैसे आप सब्जियों में हल्दी, करी पत्ता, अदरक, काली मिर्च का प्रयोग आसानी से कर सकते हैं, साथ ही अदरक-तुलसी की चाय का सेवन कर सकते हैं और गिलोय, आंवला, मुलहठी आदि को आप चूर्ण, वटी अथवा ताजे रूप में भी थोडा सेवन करके अपनी प्रतिरोधक क्षमता को सुदृढ़ कर सकते हैं.

3. योग से पाएं रोगमुक्त तन-मन

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योग एवं प्राणायाम हमारे भारत की प्राचीन धरोहर में से एक हैं, जिन्हें आज वैश्विक रूप से अपनाया जा रहा है. बहुत से आधुनिक अध्ययन ही स्पष्ट करते हैं कि योग और ध्यान क्रियाओं से मानसिक तनाव सहित विभिन्न बीमारियों सर राहत मिलती है. एक अध्ययन के अनुसार योग क्रियाओं से प्रमुख स्ट्रेस हॉर्मोन कोर्टिसोल की रिलीज़ में कमी आती है, जिससे तनाव नहीं होता. तो क्यों ना आप भी अपनी दिनचर्या में से कुछ समय अपने अनमोल स्वास्थ्य के लिए निकालें और कुछ सरल आसनों और प्राणायामों का अनुसरण करते हुए अपने आपको बनाये निरोगी..

1. भुजंगासन

पेट के बल लेटते हुए दोनों पैरों, एडिय़ों एवं पंजों को आपस में मिलाएं और पैर सीधे रखें. हाथों को कंधे के सामने जमीन पर रखें और हाथों के बल नाभि से ऊपर शरीर को जितना संभव हो, ऊपर की ओर उठाएं. सिर सीधा और ऊपर की ओर रहे, इस क्रिया को पांच से दस बार तक दोहराएं.

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2. नौकासन 

नौकासन यानि बोट पोज़ के अंतर्गत सर्वप्रथम मैट पर सीधा लेटें और श्वास अंदर भरें. अब दोनों पैरों को सीधा मिला कर और हाथों को पैरों की सीध में घुटने से मिला कर रखें. अब धीरे-धीरे अपने सिर और पैरों को एक साथ ऊपर की ओर उठाएं और प्रयास करें कि 45 डिग्री का कोण बने. अब धीरे-धीरे श्वास छोड़ते हुए पूर्व अवस्था में वापस आएं. शुरुआत में धीरे-धीरे इसका प्रयास करें.

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3. स्वान आसन

अधोमुख स्वान आसन में शरीर की पोज़ कुत्ते के समान रखी जाती है, यानि सर्वप्रथम हाथ और पैरों को जमीन के बल रख लीजिए और श्वास भरते हुए कमर को धीरे धीरे ऊपर की ओर ले जायें और कोहनियों व घुटनों को मजबूती प्रदान करते हुए शरीर को चित्र के अनुसार स्ट्रेच करें. इस अवस्था में कुछ सेकंड्स रुकते हुए पुन: विश्राम मुद्रा में आ जायें.

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4. हलासन 

मैट पर पीठ के बल लेटते हुए दोनों हाथों को पैरों की सीध में रखें. धीरे-धीरे फेफडों में सांस भरते हुए पैरों और हिप्स को ऊपर उठाएं और  सिर की ओर ऐसे ले जाने का प्रयास करें जैसे पंजे जमीन छु सकें. एक-दो मिनट तक इसी अवस्था में रहें और फिर धीरे-धीरे सांस छोडते हुए पूर्व स्थिति में वापस आएं. आरम्भ में दो से तीन बार इसका अभ्यास करें.

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5. सर्वांगासन 

सर्वांगासन के अंतर्गत पीठ के बल सीधे लेट कर हाथों को सीधे पैरों से स्पर्श करते हुए रखें और सांस भीतर भरें. अब हाथों की सहायता से अपने पैरों को धीरे-धीरे 90 डिग्री के कोण तक ले जाने का प्रयास करें और हाथों से कमर को पकड लें. अब धीरे-धीरे पैरों को वापस लेकर आएं और हाथों को कमर से हटा कर सीधा कर लें. इसके 2-3 प्रयास आरंभ में करें और धीरे धीरे इसकी आवृति बढ़ाने का प्रयास करें.

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6. वरुण मुद्रा 

पद्मासन में बैठते हुए दोनों घुटनों पर हथेलियाँ आकाश की ओर रखे और कनिष्ठा यानि सबसे छोटी ऊँगली की पोर को अंगूठे से छुए. बाकी तीनों उँगलियों को सीधा रखें और इसी मुद्रा में श्वास पर ध्यान केंद्रित करते हुए कुछ मिनट रुकने का प्रयास करें.

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7. शून्य मुद्रा 

सिद्धासन अथवा पद्मासन में बैठते हुए हथेलियाँ आकाश की ओर रखें तथा मध्यमा अँगुली (बीच की अंगुली) को हथेलियों की ओर मोड़ते हुए अँगूठे से उसके प्रथम पोर को दबाते हुए बाकी की अँगुलियों को सीधा रखें. इसी मुद्रा में कुछ मिनट ठहरे एवं सामान्य श्वास लेते हुए सारा ध्यान श्वास पर केन्द्रित करें.

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4. सितम्बर माह में होने वाले रोग एवं उनके आयुर्वेदिक उपचार

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वैसे तो मौसम में परिवर्तन हमेशा से ही रोगों का कारण बनता रहा है, किन्तु वर्तमान में ग्लोबल वार्मिंग के चलते जिस तरह कहीं वर्षा में अत्याधिक कमी, कहीं भयंकर तूफान तो कहीं बाढ़ जैसे हालत देखने को मिल रहे हैं, उससे बीमारियों का पैटर्न भी काफी बदला है. यानि नई और लम्बे समय तक टिकने वाली बीमारियों की आशंका तो बढ़ी है है, साथ ही पहले सामान्य सी महसूस होने वाली बीमारियां भी अब लम्बे समय तक बनी रहती हैं...जिसका सबसे बड़ा कारण बदलते मौसम के साथ कमजोर होती रोग प्रतिरक्षा प्रणाली है.

इस समय होने वाले प्रमुख रोगों में मच्छरों, गंदगी और उमस के कारण हुए रोगों की अधिकता देखी जाती है. जैसे...

1. डेंगू  

डेंगू एक विषाणु से होने वाली बीमारी है जो एडीज एजिप्‍टी नामक संक्रमित मादा मच्‍छर के काटने से फैलती है, यह एक तरह का वायरल बुखार है, जो उचित चिकित्सकीय परामर्श के अभाव में जानलेवा भी बन सकता है. इसके लक्षणों में अचानक तेज बुखार, तेज सरदर्द एवं आँखों में दर्द, जी घबराना, मितली होना, शरीर पर लाल चकते उभर आना आदि सम्मिलित हैं.

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2. चिकनगुनिया  

चिकनगुनिया विषाणु एक अर्बोविषाणु है, जिसे अल्फाविषाणु परिवार का माना जाता है. एडिस मच्छर के काटने से खून में प्रवेश करने वाले इस विषाणु के लक्षण भी डेंगू के ही समान है. हालांकि यह डेंगू के समान जानलेवा नहीं होता किन्तु इससे पीड़ित रोगी को अत्याधिक कमजोरी, जोड़ों में बेहद दर्द और महीनों तक थकान का अनुभव होता है.

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3. मलेरिया  

मलेरिया एनोफिलिस मादा मच्छर के काटने से होता है, प्लाज्मोडियम नामक जीवाणु को शरीर में पहुंचाती है और अलग-अलग रूप में शरीर पर आक्रमण कर मलेरिया बुखार फैलाती है. मलेरिया के प्रमुख लक्षणों में बुखार, कँपकँपी, पसीना आना, सिरदर्द, शरीर में दर्द, जी मचलना और उल्टी होना इत्यादि शामिल हैं.  

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4. वायरल फीवर

कहीं भी लम्बे समय तक पानी के जमाव से उसमें मच्छरों के पैदा होने का खतरा बढ़ जाता है, साथ ही विषैले जीव जंतुओं, कीटों, मच्छर एवं मक्ख‍ियों द्वारा भोज्य पदार्थों और पानी को संक्रमित कर दिया जाता है, जिससे मौसमी बुखार फैलता है. सर्दी-जुकाम से आरंभ हुए इस बुखार में शरीर में अत्याधिक कमजोरी आ जाती है.  

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5. एलर्जी

वातावरण में पनपी उमस स्थायी रूप से अपना डेरा जमा लेती है और विभिन्न जीवाणुओं एवं कीटाणुओं को घरों में पनपने का अवसर मिल जाता है. जिसके चलते जो लोग सेंसटिव होते हैं या थोड़े कमजोर होते हैं..खासकर बुजुर्ग अथवा छोटे बच्चे, उन्हें एलर्जी अपनी गिरफ्त में जल्दी लेती है.

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5. आयुर्वेदिक दिनचर्या से बने रहे निरोगी

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उत्तम स्वास्थ्य किसे अच्छा नही लगता. किन्तु स्वस्थ बने रहना भी किसी साधना से कम नहीं है. आज भी यदि हम भारतीय ग्रामों का रुख करें तो पाएंगे कि हमारे बुजुर्ग बिना किसी बीमारी के लंबी आयु तक जीते हैं. वहीं इसके ठीक उलट शहरों में अल्पायु में ही हम डाइबिटीज, थायोरोइड, अनियंत्रित रक्तचाप, किडनी रोग, हृदय रोगों आदि का शिकार हो रहे हैं.

इसका सबसे बड़ा कारण है हमारा बदलता लाइफस्टाइल, जो मौसम और ऋतु के बिल्कुल विपरीत होता है. हमें जानना और समझना होगा कि वो कौन सी सावधानियां और प्राकृतिक उपाय हैं, जिन्हें इस माह में अपनी दिनचर्या में शामिल कर आप भी पा सकते हैं रोगमुक्त शरीर का वरदान... 

  • सितम्बर में स्वच्छता पर विशेष ध्यान दें, साफ पानी पिएं, स्वच्छ जल से स्नान करें. अपने आस पास के माहौल को भी साफ बनाये रखे.
  • प्राकृतिक रूप से मच्छरों से बचाव के लिए आप नीम का तेल और नारियल का तेल समान मात्रा में मिलाकर शरीर पर लगा सकते हैं. साथ ही कपूर जलाकर उसका धुंआ अच्छे से कमरे में फैला ले और फिर खिड़की-दरवाजे खोल दें. यह प्राकृतिक रूप से मच्छरों से बचाएगा.
  • इस माह में उमस के चलते संक्रामक रोगों की अधिकता रहती है, इसके लिए नीम, तुलसी, पुदीने की पत्तियों का सेवन विशेष रूप से करें. आप इन्हें पानी में उबालकर छानकर यह पानी स्प्रे के रूप में एलर्जी जनित भागों पर उपयोग कर सकते हैं.
  • आपका पेट संपूर्ण स्वास्थ्य पर प्रभाव डालता है, इसलिए पेट साफ रहना इस ऋतु में सर्वाधिक आवश्यक है. नियमित रूप से त्रिफला का सेवन करना उपयोगी होता है अथवा आप सुबह खाली पेट आंवले का प्रयोग भी कर सकते हैं.
  • गेंदें अथवा तुलसी का पौधा दरवाजे-खिड़की के पास रखने से मच्छरों, मक्खियों और कीटों से बचाव होता है.
  • इसके साथ साथ आप गिलोय की पत्तियों या गिलोय वटी का सेवन भी नियमित रूप से अपने आयुर्वेदिक चिकित्सक की सलाह्नुसार कर सकते हैं, जिससे आपका प्रतिरक्षण तंत्र किसी भी बीमारी से लड़ने के लिए तैयार रहे.

स्वास्थ्यवर्धक आहार, आयुर्वेदिक जीवनशैली, योग और मैडिटेशन एवं मौसम के अनुसार थोड़ी सी सावधानी यह सब आपको स्वस्थ बनाये रखने की संजीवनी है. इसके साथ ही अच्छे विचारों से स्वयं को पोषित करते हुए खुश रहें, क्योंकि सकारात्मक विचारधारा से आपके मष्तिष्क की सेहत सुधरती है जिसका सीधा असर आपके सम्पूर्ण स्वास्थ्य पर पड़ता है. याद रखिये आपकी तंदरुस्ती आपके हाथों में है, अपनी व्यस्तम दिनचर्या से खुद के लिए कुछ पल निकाले और हर मौसम में बने रहें फिट और हेल्दी..!!

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