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उत्तराखंड के पहाड़ी जिलों की शान काफल – जानिए महत्व एवं काफल की मार्मिक कहानी

Lokendra Singh Bisht

Lokendra Singh Bisht Opinions & Updates

ByLokendra Singh Bisht Lokendra Singh Bisht   9

एक गांव में एक गरीब महिला अपनी बेटी के साथ रहती थी. आमदनी
के लिए उस महिला के पास थोड़ी-सी जमीन के अल

एक गांव में एक गरीब महिला अपनी बेटी के साथ रहती थी. आमदनी के लिए उस महिला के पास थोड़ी-सी जमीन के अलावा ज्यादा कुछ था नहीं था। गर्मियों में जैसे ही काफल पक जाते, महिला को अतिरिक्त आमदनी का जरिया मिल जाता था. वह जंगल से काफल तोड़कर उन्हें बाजार में बेचती, और अपने लिए और अपनी बेटी के लिए सामान ले आती.

एक बार महिला जंगल से सुबह-2 एक टोकरी भरकर काफल तोड़ कर लाई. उसने शाम को काफल बाजार में बेचने का मन बनाया और अपनी मासूम बेटी को बुलाकर कहा, ‘मैं जंगल से चारा काट कर आ रही हूं. तब तक तू इन काफलों की पहरेदारी करना. मैं जंगल से आकर तुझे भी काफल खाने को दूंगी, पर तब तक इन्हें मत खाना.’ इतना कह कर व पशुओं को चराने ले गयी.

मां की बात मानकर उसकी बेटी उन काफलों की पहरेदारी करती रही. कई बार उन रसीले काफलों को देख कर उसके मन में लालच आया, पर मां की बात मानकर वह खुद पर काबू कर बैठे रही. इसके बाद दोपहर में जब उसकी मां घर आई तो उसने देखा कि सुबह तो काफल की टोकरी लबालब भरी थी पर अभी कुछ कुछ काफल कम थे. मां ने देखा कि पास में ही उसकी बेटी गहरी नींद में सो रही है.

माँ को लगा कि मना करने के बावजूद उसकी बेटी ने काफल खा लिए हैं. उसने गुस्से में घास का गट्ठर एक ओर फेंका और सोती हुई बेटी की पीठ पर मुट्ठी से प्रहार किया. नींद में होने के कारण छोटी बच्ची अचेत अवस्था में थी और मां का प्रहार उस पर इतना तेज लगा कि वह बेसुध हो गई.

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बेटी की हालत बिगड़ते देख मां ने उसे खूब हिलाया, लेकिन उसकी मौत हो चुकी थी। मां अपनी प्यारी बेटी की इस तरह मौत पर वहीं बैठकर रोती रही। उधर, शाम होते-होते काफल की टोकरी फिर से पूरी भर गई. जब महिला की नजर टोकरी पर पड़ी तो उसे समझ में आया कि दिन की चटक धूप और गर्मी के कारण काफल मुरझा गये थे इसलिए कम दिखे जबकि शाम को ठंडी हवा लगते ही वह फिर ताजे हो गए और टोकरी फिर से भर गयी। मां को अपनी गलती पर बेहद पछतावा हुआ और उसने भी ख़ुदकुशी कर ली।

आज भी वो मां-बेटी पंछियों के रूप में गर्मियों में एक पेड़ से दूसरे पेड़ पर फुदकती हैं और अपना पक्ष रखती हैं। बेटी कहती है- काफल पाक्यो, मैं नी चाख्यो,,,,, यानि मैंने काफल नहीं चखे हैं। फिर प्रत्युतर में चिड़िया बनी माँ भी करुणामय तरीके से गाते हए कहती है पुर पुताई पूर पूर,,,,यानी ‘पूरे हैं बेटी, पूरे हैं‘।।

ये कहानी प्रचलित है।।

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एक गांव में एक गरीब महिला अपनी बेटी के साथ रहती थी. आमदनी
के लिए उस महिला के पास थोड़ी-सी जमीन के अल

आजकल उत्तराखंड के पहाड़ी जिलों के काफल के जंगल काफल के फलों से लकदक हैं। प्राकृतिक और आयुर्वेदिक गुणों से भरपूर काफल के ताज़े फलों को खाने का मजा ही अलग है। समुद्रतल से 1500 मीटर से लेकर 2500 मीटर तक की ऊँचाई में उगने व पाए जाने वाला काफल वृक्ष पर्यावरण व पानी के प्राकृतिक जलश्रोतों को निरंतर बनाये रखने के लिए अति महत्वपूर्ण होता है। पहाड़ों के अधिकतर गाँव मे प्राकृतिक जलश्रोतों के जल का मूल स्रोत ये ही काफल, बाँझ, बुराँश और भमोर के ये मिश्रित जंगल होते हैं।

काफल, बाँझ, बुराँश और भमोर के मिश्रित जंगलों के जड़ियों का जल बहुत उपयोगी व लाभप्रद भी होता है। सौभाग्यशाली होते हैं वे ग्रामीण जिनके गाँव के आसपास इन जंगलों के जड़ियों के पानी का स्रोत होता है। काफल के पेड़ की छाल का प्रयोग चर्मशोधन (टैंनिंग) के लिए भी किया जाता है। काफल का फल गर्मी में शरीर को ठंडक प्रदान करता है। साथ ही इसके फल खाने से शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढती है एवं हृदय रोग, मधुमय रोग उच्च एंव निम्न रक्त चाप नियान्त्रित होता है।

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काफल का वानस्पतिक नाम माईरिका इस्क्यूलेटा है। यह मुख्यत: हिमालय के तलहटी में होता है. दुनिया में वैज्ञानिकों से लेकर आयुर्वेदिक विशेषज्ञों ने इसे दवाई के लिए हमेशा इस्तेमाल किया है.

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