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नवम्बर स्वस्थ्य विशेषांक – सर्दियों की शुरुआत में रखें अपना ख्याल, रूबरू हों कार्तिक पर्वों के वैज्ञानिक महत्त्व से

भारतीय त्यौहार एवं संस्कृति.

भारतीय त्यौहार एवं संस्कृति. Opinions & Updates

ByDeepika Chaudhary Deepika Chaudhary   Contributors Kavita Chaudhary Kavita Chaudhary {{descmodel.currdesc.readstats }}

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चंद्रमा की शीतल किरणों एवं द्वीपों की उज्ज्वलता का प्रतीक
कार्तिक माह, सनातन धर्म में सर्वाधिक महत्व

चंद्रमा की शीतल किरणों एवं द्वीपों की उज्ज्वलता का प्रतीक कार्तिक माह, सनातन धर्म में सर्वाधिक महत्वपूर्ण माह माना जाता है. कार्तिक माह को हिंदू पंचांगानुसार नवां स्थान प्राप्त है. वैभव व सुख-सम्पति के प्रतीक इस माह में देवी महालक्ष्मी की पूजा- अर्चना का महोत्सव ज्योति पर्व दीपावली भी मनाई जाती है तथा इसके अतिरिक्त भैया दूज, गोवर्धन पूजा, छठ पर्व आदि त्यौहारों की झड़ियों के साथ यह माह चंद्रमा की किरणों के समान ही जीवन को प्रकाशित करता है.

सुबह शाम की गुलाबी सी सर्दी, धुप का तीखापन कम लगना, यह सब मौसम में आ रहे परिवर्तन के लक्षण हैं. वैसे तो लम्बे गर्म मौसम के बाद आने वाली सर्दियों का इंतजार सभी को रहता है और हो भी क्यों न, बेहद अनुकूल लगने वाला यह मौसम हमारी रचनात्मकता और क्रियाशीलता को भी एकाएक बढ़ा देता है...लेकिन इस मौसम में सेहत का भी खासा ध्यान रखना पड़ता है वरना सर्दियां लगते देर नहीं लगती. तो चलिए बैलटबॉक्सइंडिया की स्वास्थ्य सीरीज के जरिये जानते हैं कि नवम्बर के इस सुहाने से मौसम में कैसे हम बेहतर खानपान और उचित ऋतुचर्या का पालन करते हुए अच्छे स्वस्थ्य की ओर एक कदम बढ़ा सकते हैं.

1. नवम्बर माह में मौसमी परिवर्तन

चंद्रमा की शीतल किरणों एवं द्वीपों की उज्ज्वलता का प्रतीक
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शरद ऋतु के प्रारंभिक माह के रूप में वैज्ञानिक रूप से देखा जाए तो ऋतू चक्र में काफी परिवर्तन आ जाता है, पूरे उत्तर भारत में सर्दी की शुरुआत हो जाती है. खासतौर से सुबह और शाम का तापमान लगातार कम होता चला जाता है, इस समय उत्तर भारत में पश्चिमी विक्षोभ के चलते होने वाली बारिश भी तापमान में कमी लाती है. मौसम में आने वाला यह बदलाव बुजुर्गों, छोटे बच्चों, क्रोनिक बीमारियों से पीड़ित लोगों के लिए हानिकारक माना जाता है, क्योंकि इन सभी की इम्युनिटी पॉवर (प्रतिरक्षा प्रणाली) मजबूत नहीं होती है, जिससे ठंड के मौसम में बढ़ते प्रदूषक तत्त्वों से ये आसानी से विभिन्न रोगों की चपेट में आ जाते हैं.  

2. मौसम के अनुसार अपनी आहारशैली को बदलें

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सबसे पहले बात आती है नवम्बर माह में खानपान कैसा हो, तो आयुर्वेद के अनुसार इस माह में कफ दोष की अधिकता देखी जाती है, यानि हमें ठंडे खाद्य पदार्थों से दूरी बना लेनी चाहिए और मौसमी, ताज़े और साफ़ फलों-सब्जियों को अपनी दिनचर्या में स्थान देना चाहिए.

नवम्बर माह के फलों में आप सिंघाड़ा, सेब, केला, कस्टर्ड एपल, मौसमी जैसे फलों को अपनी डाइट में जगह दे सकते हैं. सर्दियों की शुरुआत होते ही हमारी भूख प्राकृतिक रूप से बढ़ने लगती हैं और साथ ही हमारी स्वाद ग्रंथियां भी सक्रियता से कार्य करती हैं. जिससे अक्सर हम भूख से अधिक और तला-भुना खा लेते हैं.

नतीजा शुगर लेवल, उच्च रक्तचाप का बढ़ना, किन्तु यदि आप सिंघाड़े को सलाद के तौर पर इस मौसम में खाते हैं तो पोटेशियम, बी6, कॉपर, जीरो कोलेस्ट्रोल, रिबोफ्लेविन, मैग्नीशियम, लो कैलोरी जैसे गुणों के चलते सिंघाड़ा आपकी भूख को भी संतुलित रखेगा और डायबिटीज, हाई बीपी जैसे रोगों को भी.

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सर्दियों में तापमान घटने से नसों में सिकुडन आ जाती है, जिससे ब्लड सर्कुलेशन पर प्रभाव पड़ता है, नतीजा ह्रदय रोगियों के लिए बढती ठण्ड दुश्वार हो जाती है. ऐसे में यदि आप कस्टर्ड एपल, यानी शरीफा/सीताफल को अपने खानपान में स्थान देते हैं, तो अपने एंटी-ऑक्सीडेंट तत्वों के चलते यह न केवल आपको हृदय रोगों से सुरक्षित रखेगा बल्कि मैग्नीशियम की उच्च मात्रा के कारण यह आपको सर्दियों में बढ़ने वाले जोड़ों के दर्द से भी राहत देगा.

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वहीँ एनसीबीआई के न्यूट्रीशन जर्नल के अनुसार सेब में पाए जाने वाले विभिन्न फायटोकेमिकल्स जैसे बीटा कैरोटिन, विटामिन ई, रेटिनॉल, विटामिन सी हमें श्वसनतंत्र के विभिन्न रोगों जैसे दमा, अस्थमा, फेफड़ों के रोगों से बचाते हैं..श्वसनतंत्र से जुड़े रोग अक्सर सर्दियों की शुरुआत में प्रदूषक तत्वों के हवा में घुलने से अधिक बढ़ जाते हैं, तो रोज एक सेब खाएं और रखें खुद को सुरक्षित.

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इसके साथ ही खट्टे फलों में शुमार मौसमी या संतरा को अपनी रेगुलर डाइट का हिस्सा बनाकर आप मौसमी वायरल जैसे सर्दी, खांसी, जुकाम से बचे रह सकते हैं. फाइबर, कैल्शियम, विटामिन ए व बी-6, पोटेशियम का खजाना संतरा अपने एल्कलाइन मिनरल्स के गुणों के चलते पाचन तंत्र को सुरक्षित रखते हुए इम्युनिटी सिस्टम को मजबूती देता है.

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मौसमी सब्जियों की बात की जाये तो इस माह में गोभी, मूली, कद्दू, हरी पत्तेदार सब्जियों, शिमला मिर्च जैसी सब्जियों की अधिकता बाजार में देखी जा सकती है. पोटेशियम, एंटी-ऑक्सीडेंट व फाइबर की प्रचुर मात्रा से युक्त कद्दू, हमारी प्रतिरोधक क्षमता को बेहतर बनाए रखता है. भारत में लोग प्राय: कद्दू को सब्जी बनाने के साथ-साथ, सूप, खीर, पोरियल, सलाद आदि के रूप में भी सेवन करते हैं.

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शरीर के लिए प्राकृतिक क्लींजर का कार्य करने वाली मूली आयरन, कैल्शियम, मैग्नीशियम के साथ साथ विटामिन बी-6 की भी अच्छी स्त्रोत है. यह हृदय रोग, किडनी रोग, उच्च रक्तचाप, कॉमन कफ और कोल्ड में बेहद लाभकारी है.  

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सर्दियों का मौसम शुरू होते ही आ जाती हैं हरी पत्तेदार सब्जियां जैसे पालक, सरसों, मेथी, बथुआ, हरा धनिया आदि, इनसे न केवल शरीर को विटामिन ए, विटामिन सी, कैल्शियम, आयरन आदि प्राप्त होता है, बल्कि इनमें एंटीऑक्सीडेंट भी पर्याप्त मात्रा में होता है, जो शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाते हुए विभिन्न रोगों से हमारा बचाव करते हैं.

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बात करते हैं शिमला मिर्च की तो इसमें मौजूद विटामिन ए,सी,बी6, बीटा कैरोटिन, केप्सायसिन जैसे तत्त्वों की उच्च मात्रा हमारे श्वसन तंत्र के स्वस्थ्य को सुचारू बनाये रखती है.

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फूलगोभी में मौजूद कैल्शियम, फास्फोरस, प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, विटामिन ए-बी-सी, आयोडीन, आयरन, कॉपर आदि इसे बेहद पौष्टिक बना देते हैं, इसके सेवन से पेट से जुडी बीमारियाँ, जैसे कोलाईटिस, कब्ज इत्यादि में लाभ मिलता है.

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(नोट- गोभी को आयुर्वेद में वातवर्धक माना जाता है, जिसके उत्तम गुणों का लाभ लेने के लिए और वात को समाप्त करने के लिए हींग, सौंफ, अजवायन, अदरक, काली मिर्च, सौंठ जैसे हर्ब्स और मसालों के साथ इसे पकाना चाहिए.)

3. शारीरिक सक्रियता है स्वस्थ जीवन का आधार

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मौसम में बढ़ रही ठंड अक्सर हमें आलसी बना देती है, जिसका प्रभाव शारीरिक क्षमता पर पड़ता है. सक्रिय शरीर अच्छे स्वास्थ्य की प्रथम सीढ़ी होता है, इसलिए सर्दियों की शुरुआत में हमें शारीरिक गतिविधियों में भी थोडा सा इजाफ़ा कर देना चाहिए, ताकि बढ़ने वाली सर्दी से लड़ने के लिए हमारा शरीर पूरी तरह तैयार हो सके. यौगिक जॉगिंग, वाकिंग, सूर्य नमस्कार और कुछ प्राणायाम ऐसी क्रियाएं हैं, जो आप घर पर ही आराम से कर सकते हैं.

यौगिक जॉगिंग, सामान्य जॉगिंग से बिल्कुल अलग है. यह योग के अंतर्गत ही आने वाली एक ऐसी क्रिया है, जो 12 एक्सरसाइज का संगम है और इसके मात्र 5-6 मिनट के अभ्यास से ही सम्पूर्ण शरीर का व्यायाम हो जाता है. यह जॉगिंग का एक ऐसा तरीका है, जिसे योग से पहले शरीर के वार्म अप के लिए उपयोग में लाया जाता है. तेज गति से कुछ समय के लिए की गयी यौगिक क्रियाएं शरीर में बेहतर रक्त संचरण बनाये रखती है, श्वसन तंत्र को स्वस्थ रखती हैं और शरीर को अंदरूनी तौर पर गर्माहट देती है.

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यदि आप शारीरिक तौर पर अधिक स्वस्थ नहीं हैं और तेज गति से की गयी एक्सरसाइज को अपनी दिनचर्या में शामिल नहीं कर सकते, तो आपके लिए सबसे बेहतर विकल्प है साधारण वाकिंग. यानि दिन में आधा घंटा सुबह और आधा घंटा शाम में की गयी चहलकदमी आपके स्वास्थ्य के लिए बेहद लाभदायक सिद्ध होती है. थायरोइड, हाई बीपी, डायबिटीज आदि के रोगियों को तो डॉक्टर विशेष रूप से वाकिंग के लिए सलाह देते हैं.

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सूर्य नमस्कार भी 12 विभिन्न यौगिक क्रियाओं का संगम है, जिससे सम्पूर्ण शरीर को ऊर्जा मिलती है. योग के इस सबसे अनूठे रूप से हमारे शरीर की सभी नसें एवं नाड़ियाँ क्रियाशील हो जाती हैं और आलस्य, ऊर्जाहीनता, थकावट जैसे विकार दूर हो जाते हैं. प्रणाम मुद्रा, हस्त उत्तानासन, पश्चिमोत्तनासन, अश्व संचालन आसन, पर्वतासन, अष्टांग नमस्कार, भुजंगासन और फिर विपरीत क्रम में इन्हीं क्रियाओं का दोहराव करते हुए प्रणाम मुद्रा तक वापस जाना. यह सब सूर्य नमस्कार का हिस्सा है.

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(नोट – स्लिप डिस्क, सर्वाइकल और कमर दर्द के रोगी योग चिकित्सक की निगरानी में ही यह क्रिया करे)

4. मौसमी रोगों से रखें स्वयं को सुरक्षित

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सर्दी के मौसम की शुरुआत हो चुकी है और वातावरणीय ताप में आने वाला यह बदलाव आपकी सेहत पर विपरीत असर डाल सकता है. धीरे-धीरे आती हुई सर्दी वायरल इन्फेक्शन को भी साथ लेकर आती है और वार करती है हमारे कमजोर प्रतिरक्षण तन्त्र पर. ऐसे में इस मौसम में स्वास्थ्य का विशेष ध्यान रखना बेहद जरूरी हो जाता है. बेहतर स्वास्थ्य के लिए आगे दी गयी कुछ सावधानियां अपनाएं...

1. सर्दियों की शुरुआत में यदि वायरल इन्फेक्शन आपको अपनी चपेट में ले, तो युहीं कोई भी एंटी बायोटिक दवा नहीं लेनी चाहिए, क्योंकि यह दवाएं बैक्टीरियाजनित रोगों से लड़ने में सहायक होती हैं ना कि वायरस से हुए रोगों में.

2. सर्दी लगने पर चिकित्सकीय सलाह के अतिरिक्त अदरक, तुलसी, काली मिर्च का काढ़ा थोड़े शहद के साथ सेवन कर सकते हैं.

3. कफ की अधिकता होने पर पानी में लौंग डालकर उबालें और स्टीम लें, सरसों के तेल में अजवायन पका कर उससे छाती पर मालिश करें और हलके गर्म कपडें पहने.

4. साफ़-सफाई का विशेष ध्यान रखें, विशेष तौर पर हाथों को रोगाणु मुक्त रखने के लिए हाथ अच्छे से कईं बार धोये. बाहर कुछ खाना पीना हो तो हैंड सेनीटाईजर से हाथ साफ़ करक ही कुछ खाएं.

5. जुकाम, खांसी अथवा बुखार की स्थिति में अधिक से अधिक आराम करें और तरल पदार्थों का सेवन अधिक करें.

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6. अस्थमा, टांसिलाइटिस, फेफड़ों के रोग इत्यादि बढती सर्दियों में बढ़ जाते हैं, क्योंकि हवा में ठंडक बढ़ने से प्रदूषक तत्त्वों का स्तर जानलेवा रूप से बढ़ जाता है. इसलिए जितना संभव हो सके धूल, धूप अथवा धुएं से स्वयं को बचाकर रखें.

7. श्वसन तंत्र के रोगियों को सुबह और शाम के समय बाहर घुमने से बचना चाहिए और यदि बाहर जाना भी पड़े तो मास्क पहनकर ही जायें.

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8. चिकित्सकीय सलाह के अनुसार तुलसी का काढ़ा नियमित रूप से सेवन करना भी बेहद लाभदायक होता है.

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9. ठंड में नसें सिकुड़ने से हृदय पर विपरीत प्रभाव पड़ता है, जिससे हृदय रोगियों के लिए खतरा बढ़ जाता है. नसें सिकुड़ने से ब्लड सर्कुलेशन में होने वाले बोझ का भार सीधा हार्ट पर पड़ता है जिस कारण अटैक की संभावना बढ़ जाती है.

10. हृदय रोगियों को इस मौसम में विशेष सावधानियां बरतते हुए शरीर को ढककर रखना चाहिए और ठंड से बचना चाहिए. खाने पीने में तेल, घी, नमक का सेवन कम करना उचित होगा. साथ ही बीड़ी, सिगरेट आदि नशा न करें और तली-भुनी चीजें न खाएं.

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5. जानें नवम्बर माह के पर्वों का वैज्ञानिक महत्त्व

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नवम्बर को हिन्दू कैलेंडर के अनुसार कार्तिक और अगहन माह के मिले जुले स्वरुप के तौर पर जाना जाता है. यह माह मुख्य रूप से प्रकाश और उज्ज्वलता का प्रतीक है और साथ ही यह प्रकृति के विभिन्न आयामों को सम्मान देने का सूचक भी है. तो आइयें जानते हैं इस माह में आने वाली प्रमुख पर्व और उनसे जुड़े वैज्ञानिक तथ्यों को....

1. सबसे पहले बात करते हैं दीपों के उत्सव दिवाली की, जो भारत के प्रमुख त्यौहारों में से एक है. संधिकाल के समय आने वाले इस त्यौहार की संरचना ही कुछ इस तरह की गयी है कि वर्षा ऋतु में आई नमी, सीलन और कीटाणुओं को शरद ऋतु के आते ही घर से दूर कर दिया जाए. दिवाली पर की गयी सफाई, पुताई आदि से वातावरण पूरी तरह स्वच्छ हो जाता है, साथ ही सरसों के तेल से जलाएं गए द्वीपों की रोशनी से भी सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है.

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2. गोवर्धन पूजा, जिसे गुजरात में नववर्ष की तरह भी मनाया जाता है. प्रमुखत: यह पर्व प्राकृतिक संसाधनों को सम्मान देने का पर्व है, इसी दिन भगवान श्री कृष्ण ने इंद्र देव के कोप से बृजवासियों को बचाने के लिए गिरिराज पर्वत को अपनी कनिष्का ऊँगली पर धारण किया था. उन्होंने गिरिराज पर्वत का पूजन करा कर ब्रजवासियों को कहा था कि, हमारे पर्वत धरा की असल संपत्ति हैं, जिनसे हमें जल, वनस्पति, पशुधन को चारा आदि मिलते हैं और मौसम भी नियंत्रित होता है.

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3. वहीँ छठ पूजा सूर्य उपासना से जुड़ा हुआ पर्व है, जिसमें व्रती अपने शरीर एवं मन को सौर ऊर्जा के अवशोषण के लिए तैयार करते हैं. धरती पर जीवन बनाये रखने के सबसे अहम स्त्रोत सूर्य को आदर-सम्मान देते हुए मौसमी फलों, फूलों, सब्जियों आदि को समर्पित करते हुए उनका पूजन किया जाता है. इसके साथ ही सर्दियों के आरंभ में हमारे पाचन तंत्र पर प्रभाव पड़ता है, छठ पर किये गए व्रत से हमारे पाचन तंत्र की सक्रियता बनी रहती है और शरीर निरोगी रहता है.

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4. इसी माह में आने वाली देव दिवाली नदियों और घाटों को महत्त्व देने वाला पर्व माना जाता है, जिसमें नदियों में मिट्टी के दीप प्रवाहित किया जाता है और घाटों को रोशन करते हुए जल की महत्ता को दर्शाया जाता है.

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इसी प्रकार इस माह में गोपाष्टमी, तुलसी विवाह, आंवला नवमी, देवउठनी एकादशी जैसे पर्व भी आते हैं, जो हमारी पारंपरिक भारतीय उत्सव शैली को जगजाहिर करते हैं, जिसमें पौधों, वनस्पतियों, पशुधन, फसलों आदि सभी का पूजन कर उन्हें सम्मान देते हुए सकारात्मक ऊर्जा को ग्रहण करने की संस्कृति का अनुपालन युगों से किया जाता रहा है.

स्वास्थ्यवर्धक आहार, आयुर्वेदिक जीवनशैली, योग और मैडिटेशन एवं मौसम के अनुसार थोड़ी सी सावधानी यह सब आपको स्वस्थ बनाये रखने की संजीवनी है. इसके साथ ही अच्छे विचारों से स्वयं को पोषित करते हुए खुश रहें, क्योंकि सकारात्मक विचारधारा से आपके मष्तिष्क की सेहत सुधरती है जिसका सीधा असर आपके सम्पूर्ण स्वास्थ्य पर पड़ता है. याद रखिये आपकी तंदरुस्ती आपके हाथों में है, अपनी व्यस्तम दिनचर्या से खुद के लिए कुछ पल निकाले और उत्सवों के इस माह में स्वयं को करें प्रकाशित...!!

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