Ad
Search by Term. Or Use the code. Met a coordinator today? Confirm the Identity by badge# number here, look for Navpravartak Verified Badge tag on profile.
सर्च करें या कोड का इस्तेमाल करें, क्या आज हमारे कोऑर्डिनेटर से मिले? पहचान के लिए बैज नंबर डालें और Navpravartak Verified Badge का निशान देखें.
 Search
 Code
Searching...loading

Search Results, page {{ header.searchresult.page }} of (About {{ header.searchresult.count }} Results) Remove Filter - {{ header.searchentitytype }}

Oops! Lost, aren't we?

We can not find what you are looking for. Please check below recommendations. or Go to Home

जनवरी स्वास्थ्य विशेषांक - जनवरी माह में स्वास्थ्य हेतु दिनचर्या एवं आहार-विहार

भारतीय त्यौहार एवं संस्कृति.

भारतीय त्यौहार एवं संस्कृति. Opinions & Updates

ByDeepika Chaudhary Deepika Chaudhary   Contributors Kavita Chaudhary Kavita Chaudhary {{descmodel.currdesc.readstats }}

Originally Posted by {{descmodel.currdesc.parent.user.name || descmodel.currdesc.parent.user.first_name + ' ' + descmodel.currdesc.parent.user.last_name}} {{ descmodel.currdesc.parent.user.totalreps | number}}   {{ descmodel.currdesc.parent.last_modified|date:'dd/MM/yyyy h:mma' }}

भारतीय संस्कृति में हर मौसम एक उत्सव की भांति होता है, विशेषकर सर्दियां.
कोपेन के जलवायु वर्गीकरण ने

भारतीय संस्कृति में हर मौसम एक उत्सव की भांति होता है, विशेषकर सर्दियां. कोपेन के जलवायु वर्गीकरण ने हालांकि भारतीय जलवायु का विविध रूप से स्पष्टीकरण किया है..परन्तु देखा जाये तो मानसूनी और उष्णकटिबंधीय जलवायु से परिपूर्ण हमारे देश में शीतऋतु की छोटी सी अवधि भी काफी समता लिए हुए है.

वस्तुतः नवम्बर से लेकर फरवरी माह तक भारत के विभिन्न हिस्सों में कहीं कम व कहीं अधिक ठंड पड़ती है. दिसम्बर से जनवरी के मध्य उत्तर भारत में सर्वाधिक महसूस की जाने वाली ठंडक, मध्य भारत में कुछ कम और दक्षिण भारत में अनुकूल मौसम लिए हुए होती है. समग्र देश में यह नई फसल का समय होता है और साथ ही समय होता है फसलों और संस्कृति से जुड़े विभिन्न उत्सवों का भी.         

भारतीय ऋतु वर्णन के अनुसार शीत ऋतु को दो भागों में विभाजित किया गया है - हेमंत तथा शिशिर.

हेमंत ऋतु (मध्य नवम्बर - मध्य दिसम्बर) में ठंड कम व शिशिर (मध्य दिसम्बर - मध्य फरवरी) में अत्यधिक मात्रा में ठंड होती है. पृथ्वी पर पूरे वर्ष सूर्य की किरणें समान रूप से नही पड़ती परिणामस्वरूप पृथ्वी के सूर्य से दूर रहने के कारण शीत ऋतु प्रारंभ हो जाती है.

यूँ तो भारत में सर्दी की शुरुआत नवम्बर से ही हो जाती है, परन्तु ठंड का अत्यधिक प्रकोप दिसम्बर व जनवरी में ही देखने को मिलता है. शीत ऋतु में रातें बेहद लम्बी होती हैं और दिन बेहद छोटे होने लगते है. शीत ऋतु में सूर्य की स्थिति पृथ्वी से दूर होती है, जिस कारण पृथ्वी पर सूर्य की किरणें पूर्ण रूप से नही पहुँच पाती और ठंड बढ़ने लगती है.

जनवरी माह के अंतर्गत उत्तर भारत में ठंड अपने चरम पर होती है. यदि धार्मिक दृष्टिकोण से देखा जाये तो आधी जनवरी के पश्चात मकर सक्रांति के बाद से सूर्य उत्तरायण होने लगता है, यानि ठंड का चक्र धीरे धीरे कम होने की ओर अग्रसर हो जाता है. मकर सक्रांति का उत्सव सम्पूर्ण भारत में विभिन्न नामों पोंगल (तमिलनाडु), उत्तरायण (गुजरात), लोहड़ी (पंजाब, हरियाणा और दिल्ली), बिहू (असम), सक्रांति (आन्ध्र प्रदेश, केरल, कर्नाटका) के साथ मनाया जाता है. 

आयुर्वेद के अनुसार जनवरी माह में शारीरिक संरचना -

आयुर्वेदिक उपचार शक्ति का लोहा सम्पूर्ण विश्व में माना जाता है, इसे जीवन के विज्ञान के रूप में देखा जाता है. आयुर्वेद का उद्देश्य मनुष्य के दिमाग, शरीर और आत्मा के समग्र विकास की अवधारणा को साथ लेकर चलना है. आयुर्वेद के अंतर्गत तीन दोष, वात, पित्त और कफ, हमारे मन-शरीर प्रणाली को बड़े स्तर पर नियंत्रित करते हैं. जब ये तीन दोष अपने आदर्श संतुलन में होते हैं, तो हम बेहतर महसूस करते हैं, उत्तम स्वास्थ्य का आनंद लेते हैं और प्राकृतिक सौंदर्य को प्राप्त करते हैं.

Ad

कई कारक दोषों के संतुलन को प्रभावित करते हैं, उदाहरण के लिए, हमारी दिनचर्या, आहार और मौसम. सकारात्मक सोच, नियमित व्यायाम और मेडिटेशन आपके शरीर को शांत और संतुलित रख सकती है. यदि इन तीन आयुर्वेदिक शारीरिक प्रवृतियों के आधार पर आहार-विहार और दिनचर्या रखी जाये तो बेहतर स्वास्थ्य पाया जा सकता है. 

यदि शीत ऋतु में शारीरिक प्रवृतियों की बात की जाये तो शीतकाल में जठराग्नि बहुत प्रबल रहती है. जिस कारण शरीर को पाचक क्षमता के अनुसार आहार ग्रहण करना चाहिए. क्षेम कौतूहल शास्त्र के अनुसार भी कहा गया है –

आहारान् पचतिशिखि दोषानाहारवर्जितः।

दोषक्षये पचेद्धातून प्राणान्धातुक्षये तथा।।

Ad

इससे तात्पर्य यह है कि पाचक अग्नि आहार को पचाने का कार्य करती है, जिसमें यदि उचित संतुलित मात्रा में आहार का समावेश नहीं हो तो शारीरिक दोषों (वात, पित्त, कफ) के नष्ट होने से शरीर की धातुएं भी नष्ट हो जाती है, जिससे प्राणों का नाश संभव है.

जनवरी माह में आहारचर्या –

व्यक्ति का खान पान ही उसकी जीवनशैली को निर्धारित करता है. कहा भी गया है कि “जैसा खाओगे अन्न, वैसा होगा मन”, यानि खान पान यदि सही और मौसम के अनुरूप हो तो व्यक्ति का तन-मन दुरुस्त बना रहता है. सर्दियों के मौसम को वैसे भी सेहत बनाने का मौसम माना जाता है, क्योंकि इस समय हमारी पाचन-शक्ति बढ़ी हुई होती है और कुछ खास प्रकार के आहार को दैनिकचर्या में शामिल करके अच्छा स्वास्थ्य पाया जा सकता है. बेहतर स्वास्थ्य को गति देने वाली जनवरी माह की आहारचर्या निम्न प्रकार से है –

1. मौसमी फल एवं सब्जियां :

भारतीय संस्कृति में हर मौसम एक उत्सव की भांति होता है, विशेषकर सर्दियां.
कोपेन के जलवायु वर्गीकरण ने

Ad

सर्दियों के मौसम में हरि पत्तेदार सब्जियां जैसे पालक, सरसों, मेथी, बथुआ, हरा धनिया आदि न केवल शरीर को विटामिन ए, विटामिन सी, कैल्शियम, आयरन आदि प्राप्त होता है, बल्कि इनमें एंटीऑक्सीडेंट भी पर्याप्त मात्रा में होता है, जो शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है.

गाजर, शलजम, मूली, अदरक जैसे कंदमूल शरीर को गर्माहट प्रदान करते है, इन्हें जूस अथवा सलाद के तौर पर रोजाना अपनी डाइट में शामिल करने पर बीटा केरोटिन और मैग्नीशियम जैसे तत्त्व भी शरीर को प्राप्त होते हैं. इनमें छिपा माइक्रोन्यूट्रीशन हमारे शरीर को विभिन्न संक्रामक रोगों से लड़ने की ताकत देता है. 

भारतीय संस्कृति में हर मौसम एक उत्सव की भांति होता है, विशेषकर सर्दियां.
कोपेन के जलवायु वर्गीकरण ने

फलों में मौसमी, आंवला, एवोकैडो, संतरा, अमरुद आदि फल तरह तरह की विटामिंस एवं प्रोटीन के साथ साथ एंटीऑक्सीडेंट युक्त भी होते हैं. विशेष रूप से आंवला बेहद औषधीय गुणों से युक्त है, इसमें पाए जाने वाले पोषक तत्त्व जैसे विटामिन ए-सी-ई-बी काम्प्लेक्स, कैल्शियम, आयरन, फॉस्फोरस, पोटैशियम, प्रोटीन, जिंक, केरोटिन इत्यादि से सर्दियों में शरीर को पूरे वर्ष के लिए प्रतिरोधक क्षमता मिलती है. साथ ही टमाटर का उपयोग सलाद एवं सूप के रूप में करने से लाइकोपीन एवं पोटैशियम पर्याप्त मात्रा में शरीर को प्राप्त होता है, जिससे सर्दियों में अधिक बढ़ने वाला कोलेस्ट्रॉल कम होता हैं.

भारतीय संस्कृति में हर मौसम एक उत्सव की भांति होता है, विशेषकर सर्दियां.
कोपेन के जलवायु वर्गीकरण ने

2. मिश्रित खाद्यान्नों का प्रयोग –

इस ऋतु के प्रारंभ काल चक्र में कम तापमान होने के कारण गेहूं की फसल की पैदावार अच्छी होती है, इसी कारण यह मौसम गेहूं जैसी फसलों के लिए अत्यंत उपयोगी है. जनवरी में उगने वाले अनाजों में गेहूं, जौ प्रमुख हैं तथा मुख्य तिलहनों में सरसों, राई आदि सम्मिलित हैं.

भारतीय संस्कृति में हर मौसम एक उत्सव की भांति होता है, विशेषकर सर्दियां.
कोपेन के जलवायु वर्गीकरण ने

जनवरी में गेहूं और चावल के अतिरिक्त मक्का, बाजरा, रागी जैसे अनाजों का प्रयोग करने से शरीर पुष्ट होता है. सर्दियों का मौसम इन सभी गर्म अनाजों को ग्रहण करने के लिए सर्वोत्तम है. बाजरे में प्रोटीन व् आयरन प्रचुर मात्रा में होता है तथा इसमे कैंसर कारक टाक्सिन नही बनते है. बाजरे की गरम प्रकृति के कारण इसे खाने वालों को अर्थ्राइटिस, गठिया व दमा आदि नहीं होता. मक्का एक बेहतरीन कोलेस्ट्रोल फाइटर खाद्यान्न माना गया है, जो अपने खास एंटी-ऑक्सीडेंटस के कारण दिल के मरीजों के लिए सर्दियों में बेहद उपयोगी है.

3. चीनी के स्थान पर गुड और खजूर का प्रयोग –

भारतीय संस्कृति में हर मौसम एक उत्सव की भांति होता है, विशेषकर सर्दियां.
कोपेन के जलवायु वर्गीकरण ने

आयुर्वेद के अनुसार निरोगी काया और दीर्घायु जीवन के लिए गुड का सेवन अत्याधिक उपयोगी है. गुड गन्ने से प्राप्त अनरिफाइंड शुगर के रूप में सम्पूर्ण भारत में प्रयोग किया जाता है, जिससे शरीर से एसिड कम होता है तथा पाचन शक्ति बढती है. सर्दियों में गुड और खजूर खाने से शरीर को पर्याप्त गर्मी प्राप्त होती है.

4. सूखे मेवों और तिलहनों का प्रयोग –

भारतीय संस्कृति में हर मौसम एक उत्सव की भांति होता है, विशेषकर सर्दियां.
कोपेन के जलवायु वर्गीकरण ने

जनवरी की कडकडाती सर्दी में सूखे मेवे, जिनमें बादाम, काजू, अखरोट, मुनक्के, किशमिश, फूल मखाने आदि का प्रयोग अवश्य करना चाहिए. इन्हें हल्का भुन कर दिन भर में एक मुट्ठी के जितना प्रयोग करना सर्दियों में श्रेष्ठतम माना गया है. ये सभी विशेष खनिज गुणों से भरपूर होते हैं, जिनसे हड्डियों को मजबूती, मस्तिष्क को तरावट एवं रक्त संचरण को सुगमता प्राप्त होती है.

भारतीय संस्कृति में हर मौसम एक उत्सव की भांति होता है, विशेषकर सर्दियां.
कोपेन के जलवायु वर्गीकरण ने

तिलहनों में मूंगफली, तिल, अलसी आदि के प्रयोग से भी सर्दियों में निरोगी काया का वरदान पाया जा सकता है. इनसे शरीर को गर्माहट मिलने के साथ साथ विटामिन, प्रोटीन और आयरन जैसे पोषक तत्त्व भी मिलते हैं. इनका सेवन लड्डू, गज्जक इत्यादि के रूप में आसानी से किया जा सकता है.

5. सर्दियों में तेलों का प्रयोग –

भारतीय संस्कृति में हर मौसम एक उत्सव की भांति होता है, विशेषकर सर्दियां.
कोपेन के जलवायु वर्गीकरण ने

सरसों का तेल सर्दियों के मौसम के लिए बहुत अच्छा होता है क्योंकि यह विटामिन और एंटीऑक्सीडेंट से भरपूर होता है. कैलोरी में उच्च होने के साथ ही यह हृदय रोगों और मधुमेह के लिए सर्वश्रेष्ठ है. साथ ही कोलेस्ट्रॉल कम करने के लिए भी सरसों के तेल का प्रयोग हितकर है.

इसके अतिरिक्त अलसी का तेल, ओमेगा-3 फैटी एसिड से भरपूर है, अलसी में 23 प्रतिशत ओमेगा-3 फैटी एसिड, 20 प्रतिशत प्रोटीन, 27 प्रतिशत फाइबर, लिगनेन, विटामिन बी ग्रुप, सेलेनियम, पोटेशियम, मेगनीशियम, जिंक आदि पाए जाते हैं. जिसके कारण अलसी शरीर को स्वस्थ रखती है व दीर्घायु होने में सहायता करती है.  

सर्दियों में तिल के तेल के भी अनेक फायदे होते है, यह विटामिन ई, बी कॉम्प्लेक्स, कैल्शि‍यम, मैग्नीशि‍यम, फॉस्फोरस और प्रोटीन जैसे न्यूट्रिएंट्स से युक्त होता है. यही कारण है कि तिल के तेल से हड्ड‍ियां मजबूत होती हैं. अपनी गर्म प्रकृति के कारण ये शरीर को गर्माहट प्रदान करता है, इसलिए इस तेल को सर्दियों में उपयोग करने की सलाह दी जाती है.

6. मसालों का प्रयोग –

भारतीय संस्कृति में हर मौसम एक उत्सव की भांति होता है, विशेषकर सर्दियां.
कोपेन के जलवायु वर्गीकरण ने

सर्दियों के भोजन में जीरा, अजवाईन, हल्दी, हींग, दालचीनी, सौंठ, काली मिर्च जैसे मसालों का प्रयोग उचित है. ये खाद्य सामग्री पाचन में सुधार करने में मदद करती हैं और सर्दियों में अधिक खाने के कारण हुई एसिडिटी का सामना नहीं करना पड़ता है. साथ ही ये मसालें शरीर के तापमान को बढ़ाने में मदद करते हैं.

7. आयुर्वेदिक जड़ी-बूटियों का सर्दियों में प्रयोग –

भारतीय संस्कृति में हर मौसम एक उत्सव की भांति होता है, विशेषकर सर्दियां.
कोपेन के जलवायु वर्गीकरण ने

जनवरी माह में जब सर्दी अपने चरम पर होती है, तब कुछ खास औषधीय जड़ी-बूटियां शरीर के लिए लाभप्रद होती है. इनमें तुलसी, अश्वगंधा, ब्राह्मी, मुलहठी आदि के थोड़ी मात्रा में प्रयोग से स्वास्थ्य लाभ उठाया जा सकता है. ये औषधियां सर्दियों में होने वाली मौसमी बीमारियों से शरीर की रक्षा कर प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाती हैं. इनका प्रयोग च्यवनप्राश या हर्बल पेय के रूप में सरलता से किया जा सकता है. 

जनवरी में कैसी हो दिनचर्या –

1. अच्छी नींद की अहम भूमिका :

भारतीय संस्कृति में हर मौसम एक उत्सव की भांति होता है, विशेषकर सर्दियां.
कोपेन के जलवायु वर्गीकरण ने

किसी भी व्यक्ति के लिए स्वस्थ दिनचर्या का पालन करना बेहतर स्वास्थ्य की सबसे बड़ी कुंजी है. इसके अंतर्गत अच्छी नींद की भूमिका सर्वाधिक है, एक स्वस्थ वयस्क के लिए आमतौर पर आठ घंटे की नींद उपयुक्त बताई गयी है. परन्तु शीतऋतु में सामान्यत: रातें लम्बी और ठंडी होती हैं, जिसके चलते अधिक नींद ली जा सकती है. रात को 10 बजे तक सोना और सुबह सूर्योदय के साथ या इसके थोड़े समय बाद जगना उचित रहता है.

2. नियमित रूप से करें व्यायाम :

भारतीय संस्कृति में हर मौसम एक उत्सव की भांति होता है, विशेषकर सर्दियां.
कोपेन के जलवायु वर्गीकरण ने

सर्द मौसम में आलस्य का प्रभाव शरीर पर अधिकतम रहता है, जिसके चलते एक प्रकार की शारीरिक निष्क्रियता आ जाने से हृदय एवं फेफड़ों से जुड़े रोगों का खतरा बढ़ जाता है. अधिक आलस्य के कारण हम शरीर के प्रति लापरवाह हो जाते हैं और शारीरिक गतिविधियों के कम होने से हृदयाघात, कार्डियक अरेस्ट और मस्तिष्क से जुड़ी बीमारियों की संभावना अधिक हो जाती है. इससे बचाव के लिए नियमित रूप से 15-20 मिनट तक व्यायाम करना आवश्यक है, जिससे रक्त संचारण एवं रक्त चाप सामान्य रह सके. इनमें तेजी से चलना, साइकिल चलाना, यौगिक आसन आदि को दिनचर्या में शामिल किया जा सकता है.  

3. प्राणायाम से दें तन मन को आरोग्य : 

भारतीय संस्कृति में हर मौसम एक उत्सव की भांति होता है, विशेषकर सर्दियां.
कोपेन के जलवायु वर्गीकरण ने

इसके साथ ही शीत ऋतु में प्राणायाम करना अत्यंत आवश्यक है, जिससे शरीर के सभी अंगों में ऑक्सीजन की आपूर्ति सुचारू रूप से होती रहे. शुद्ध वायु के संचार से विशेषत: मस्तिष्क शांत एवं एकाग्र रहता है तथा सर्दियों में पनपने वाले अवसाद, चिंता इत्यादि से निजात मिलती है. श्वसन विज्ञान पर आधारित प्राणायाम को नियमित 15-20 मिनट अपनी दिनचर्या में सम्मिलित करने से जनवरी जैसे ठंडे माह में भी आरोग्य प्राप्त किया जा सकता है. अग्निसार क्रिया, नाड़ीशोधन (अनुलोम-विलोम), कपालभाति प्राणायाम से शरीर को सर्दियों में गर्माहट, स्फूर्ति और तनाव से मुक्ति मिलती है.

4. सूर्य किरणों से प्रकाशवान हो तन मन : 

भारतीय संस्कृति में हर मौसम एक उत्सव की भांति होता है, विशेषकर सर्दियां.
कोपेन के जलवायु वर्गीकरण ने

इसके साथ ही सूर्य की किरणों से शरीर को पोषित करना अत्याधिक महत्वपूर्ण है, सूर्य की किरणों से मनुष्य को विटामिन डी तो प्राप्त होती ही है, अपितु इससे निकलने वाली अल्ट्रा वायलेट किरणों से इम्यून सिस्टम हाइपरएक्टिव होने से रुकता है और प्रतिरोधक क्षमता भी बढती है. साथ ही सूर्य की किरणों से शरीर में मेलाटोनिन नामक हर्मोन का निर्माण होता है, जो अनिद्रा रोग को दूर करने में बेहद उपयोगी है. यदि सर्दियों में सरसों या तिल के तेल की मालिश शरीर पर करने के पश्चात सूर्यस्नान किया जाये तो यह प्रक्रिया शरीर को निरोगी बनाने में अत्याधिक प्रभावी सिद्ध होती है.   

अतः जनवरी माह, जो भारत में अत्याधिक सर्दी के साथ साथ मकर सक्रांति, लोहड़ी, पोंगल, षट्तिला एकादशी, गणतंत्र दिवस आदि सांस्कृतिक एवं राष्ट्रीय पर्वों से भी जुड़ा हुआ भी है, सम्पूर्ण विश्व में नववर्ष के प्रथम माह के रूप में देखा जाता है.  यदि भारतीय संस्कृति, परंपरा और धर्म के आधारभूत स्तम्भों के साथ जुड़कर इस माह के अंतर्गत कुछ विशिष्ट आयुर्वेदिक नियमों का पालन करके निरोगी काया का वरदान पाया जा सकता है. 

Attached Images

Related Videos
Related Audio
Leave a comment for the team.
Subscribe to this research.
रिसर्च को सब्सक्राइब करें

Join us on the latest researches that matter.

इस रिसर्च पर अपडेट पाने के लिए और इससे जुड़ने के लिए अपना ईमेल आईडी नीचे भरें.

Responses

{{ survey.name }}@{{ survey.senton }}
{{ survey.message }}
Reply

How It Works

ये कैसे कार्य करता है ?

start a research
Follow & Join.

With more and more following, the research starts attracting best of the coordinators and experts.

start a research
Build a Team

Coordinators build a team with experts to pick up the execution. Start building a plan.

start a research
Fix the issue.

The team works transparently and systematically fixing the issue, building the leaders of tomorrow.

start a research
जुड़ें और फॉलो करें

ज्यादा से ज्यादा जुड़े लोग, प्रतिभाशाली समन्वयकों एवं विशेषज्ञों को आकर्षित करेंगे , इस मुद्दे को एक पकड़ मिलेगी और तेज़ी से आगे बढ़ने में मदद ।

start a research
संगठित हों

हमारे समन्वयक अपने साथ विशेषज्ञों को ले कर एक कार्य समूह का गठन करेंगे, और एक योज़नाबद्ध तरीके से काम करना सुरु करेंगे

start a research
समाधान पायें

कार्य समूह पारदर्शिता एवं कुशलता के साथ समाधान की ओर क़दम बढ़ाएगा, साथ में ही समाज में से ही कुछ भविष्य के अधिनायकों को उभरने में सहायता करेगा।

How can you make a difference?

Do you care about this issue? Do You think a concrete action should be taken?Then Follow and Support this Research Action Group.Following will not only keep you updated on the latest, help voicing your opinions, and inspire our Coordinators & Experts. But will get you priority on our study tours, events, seminars, panels, courses and a lot more on the subject and beyond.

आप कैसे एक बेहतर समाज के निर्माण में अपना योगदान दे सकते हैं ?

क्या आप इस या इसी जैसे दूसरे मुद्दे से जुड़े हुए हैं, या प्रभावित हैं? क्या आपको लगता है इसपर कुछ कारगर कदम उठाने चाहिए ?तो नीचे फॉलो का बटन दबा कर समर्थन व्यक्त करें।इससे हम आपको समय पर अपडेट कर पाएंगे, और आपके विचार जान पाएंगे। ज्यादा से ज्यादा लोगों द्वारा फॉलो होने पर इस मुद्दे पर कार्यरत विशेषज्ञों एवं समन्वयकों का ना सिर्फ़ मनोबल बढ़ेगा, बल्कि हम आपको, अपने समय समय पर होने वाले शोध यात्राएं, सर्वे, सेमिनार्स, कार्यक्रम, तथा विषय एक्सपर्ट्स कोर्स इत्यादि में सम्मिलित कर पाएंगे।
Communities and Nations where citizens spend time exploring and nurturing their culture, processes, civil liberties and responsibilities. Have a well-researched voice on issues of systemic importance, are the one which flourish to become beacon of light for the world.
समाज एवं राष्ट्र, जहाँ लोग कुछ समय अपनी संस्कृति, सभ्यता, अधिकारों और जिम्मेदारियों को समझने एवं सँवारने में लगाते हैं। एक सोची समझी, जानी बूझी आवाज़ और समझ रखते हैं। वही देश संसार में विशिष्टता और प्रभुत्व स्थापित कर पाते हैं।
Share it across your social networks.
अपने सोशल नेटवर्क पर शेयर करें

Every small step counts, share it across your friends and networks. You never know, the issue you care about, might find a champion.

हर छोटा बड़ा कदम मायने रखता है, अपने दोस्तों और जानकारों से ये मुद्दा साझा करें , क्या पता उन्ही में से कोई इस विषय का विशेषज्ञ निकल जाए।

Got few hours a week to do public good ?

Join the Research Action Group as a member or expert, work with right team and get funded. To know more contact a Coordinator with a little bit of details on your expertise and experiences.

क्या आपके पास कुछ समय सामजिक कार्य के लिए होता है ?

इस एक्शन ग्रुप के सहभागी बनें, एक सदस्य, विशेषज्ञ या समन्वयक की तरह जुड़ें । अधिक जानकारी के लिए समन्वयक से संपर्क करें और अपने बारे में बताएं।

Know someone who can help?
क्या आप किसी को जानते हैं, जो इस विषय पर कार्यरत हैं ?
Invite by emails.
ईमेल से आमंत्रित करें
The researches on ballotboxindia are available under restrictive Creative commons. If you have any comments or want to cite the work please drop a note to letters at ballotboxindia dot com.

Code# 5{{ descmodel.currdesc.id }}

ज़ारी शोध जिनमे आप एक भूमिका निभा सकते है. Live Action Researches that might need your help.