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फेसबुक का प्रजातंत्र पर वार – इजरायल चुनावों में जनतंत्र की तुलना में अधिक सक्रिय दिखा फेसबुकतंत्र

Fake Information on Facebook – Broken democracies and Criminal Culpability on Facebook Owners, a Research

Fake Information on Facebook – Broken democracies and Criminal Culpability on Facebook Owners, a Research विदेशों में सोशल मीडिया का बढ़ता हस्तक्षेप- डेटा संप्रभुता पर खतरा

ByMrinalini Sharma Mrinalini Sharma   Contributors Deepika Chaudhary Deepika Chaudhary 40

किसी भी
लोकतांत्रिक देश की रीढ़ होते हैं स्वस्थ और निष्पक्ष चुनाव, शायद यह पंक्ति वर्तमान समय में लिख

किसी भी लोकतांत्रिक देश की रीढ़ होते हैं स्वस्थ और निष्पक्ष चुनाव, शायद यह पंक्ति वर्तमान समय में लिखने या सुनने मात्र के लिए ही रह गयी है. डिजिटल युग के अंतर्गत सोशल मीडिया की संदेहास्पद भूमिका ग्रहण की भांति लोकतंत्र पर छा जाने के लिए उतारू दिखाई देती है और वास्तव में यह लोकतंत्र को अत्याधिक प्रभावित भी कर रही है. 2016 के अमेरिकी चुनावों से प्रारंभ हुई यह डिजिटल जंग थमने का नाम नहीं ले रही है, यह जानते हुए भी कि किस प्रकार फेसबुक के जरिये अमेरिका चुनावों को प्रभावित किया गया...बिना सोचे विचारे अन्य देशों में भी फेसबुक मंच का चुनावी हस्तक्षेप लगातार देखने को मिल रहा है.

इजरायल चुनाव 2019 – लोकतांत्रिक प्रणाली पर फेसबुक का वार

फिलवक्त इजरायल फेसबुक मंच को चुनावी हथियार के रूप में प्रयोग करने का उदाहरण प्रस्तुत कर रहा है, जहां निरंतर तीन बार से प्रधानमंत्री के पद पर बनें रहने वाले इजरायली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू जमकर सोशल मीडिया का उपयोग अपनी लिकुड पार्टी के चुनावी प्रचार के लिए करते नजर आ रहे हैं. यहां तक कि चुनाव वाले दिन भी उन्होंने प्रचार के लिए फेसबुक एवं ट्विटर पर वीडियो साझा करते हुए जनता को प्रत्यक्ष तौर पर संबोधित करते हुए कहा,

"शुभ प्रभात..!!आज सुबह मैं आपके साथ व्यक्तिगत रूप से, मैसेंजर के माध्यम से बात करना चाहता हूं. आपको बस दिए गए लिंक पर क्लिक करना है, मुझे आपका इंतज़ार रहेगा.”

किसी भी
लोकतांत्रिक देश की रीढ़ होते हैं स्वस्थ और निष्पक्ष चुनाव, शायद यह पंक्ति वर्तमान समय में लिख

देखा जाए तो प्रधानमंत्री की फेसबुक आदि पर अत्याधिक सक्रियता के आलावा भी बहुत से फेक अकाउंट्स चुनावी समीकरणों में उलटफेर कर सकते हैं. इजरायली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने भी इस बार डोनाल्ड ट्रंप की राह पकड़ ली है और सोशल मीडिया के जरिए उनका जोर-शोर से प्रचार किया जा रहा है. इतना ही नहीं बल्कि ट्रम्प के बेटे डोनाल्ड जूनियर की तरह, नेतन्याहू के बेटे यायर भी चुनाव के दौरान ट्विटर पर काफी सक्रिय हो गए हैं और अपने पिता की नीतियों की आलोचना करने वाले पत्रकारों,  सेलेब्रिट्रीज यहां तक कि इज़राइल के राष्ट्रपति पर भी हमला करने से परहेज नहीं कर रहे.

वहीं सूत्रों की मानें तो नेतन्याहू किसी निजी फोन का प्रयोग नहीं करते, जिसके चलते यह माना जाता है कि वो पर्सनली कोई भी ट्वीट नहीं करते. ऐसे में शोधकर्ताओं ने यह खुलासा किया है कि सोशल मीडिया जैसे फेसबुक, ट्वीटर, इंस्टाग्राम पर नेतन्याहू के समर्थन व विपक्ष के खिलाफ जारी अभियान को फेक अकाउंट्स के माध्यम से चलाया जा रहा है.

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एक नजर प्रधानमंत्री नेतन्याहू के सोशल मीडिया आंकड़ों पर

इजराइली प्रधान मंत्री बेंजामिन नेतन्याहू का सामाजिक नेटवर्क देश के अन्य किसी भी राजनेता के मुकाबले बेहद व्यापक है. फेसबुक पर उनके 2.37 मिलियन फॉलोअर्स, ट्विटर पर 1.55 मिलियन फॉलोअर्स और इंस्टाग्राम पर लगभग 6 लाख फॉलोअर्स हैं, साथ ही वह टेलीग्राम के साथ साथ अन्य सोशल मीडिया साइट्स पर भी सक्रिय है. यहां तक कि वह लिकुड पार्टी या प्रधान मंत्री कार्यालय के अन्य सामाजिक नेटवर्क चैनलों से भी जुड़े हैं.

यह आंकड़ा वास्तव में चौंकाने वाला हैं, क्योंकि यदि इजरायल में फेसबुक यूजर्स की कुल संख्या खंगाले तो यहां (दिसंबर 2018 तक) लगभग 5.8 मिलियन फेसबुक उपभोक्ता हैं.

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प्रधानमंत्री के यह सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स चुनावी अभियान के दौरान अत्याधिक सक्रियता के साथ कार्य करते हैं. यहां तक कि चुनाव के अंतिम दिन भी, जब किसी भी प्रत्याशी को वोट अपील करने की मनाही की जाती है..तब भी नेतन्याहू के द्वारा फेसबुक पर वीडियो के माध्यम से यूजर्स से वोट अपील किया जाना चुनावी संहिता को ताक पर रखने जैसा है, जिसका विरोध इजरायल में विपक्षी दलों द्वारा किया जा रहा है.

नेतन्याहू चुनावी प्रचार में सक्रिय रहे सोशल मीडिया बोट्स 

गौरतलब है कि इजरायली प्रधानमंत्री भ्रष्टाचार समेत कई गंभीर आरोपों का सामना कर रहे हैं, ऐसे में उनकी छवि को बचाना लिकुड़ पार्टी से लिए काफी चुनौतीपूर्ण है. इसी के चलते पार्टी को बढ़ावा देने के लिए व प्रधानमंत्री की एक साफ- सुथरी छवि बनाने के लिए सोशल मीडिया पर हजारों अकाउंट्स चल रहे हैं. इजरायल में वॉचडॉग के एक ग्रुप ने यह खुलासा भी किया है कि 9 अप्रैल को होने वाले चुनावों के मद्देनजर प्रधानमंत्री के प्रचार के लिए सोशल मीडिया पर एक बहुत बड़ा नेटवर्क काम कर रहा है.   

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एक्सपर्ट्स द्वारा की गई रिसर्च से पता चलता है कि सोशल मीडिया पर करीब 2.5 मिलियन इजरायली नागरिकों का ऐसा नेटवर्क चल रहा हैं, जिसके अंतर्गत चुनाव अभियान शुरु होने के बाद से 1,30,000 से अधिक ट्वीट्स और पोस्ट किए गए हैं, जबकि इजरायल की कुल आबादी ही लगभग 8.7 मिलियन है.

इसके अलावा बिग बॉट्स प्रोजेक्ट के दो शोधकर्ताओं ने इस मामले में कई बड़े खुलासे किए हैं. उनकी रिपोर्ट में पाया गया कि सोशल मीडिया पर प्रधानमंत्री के समर्थन में सैकड़ों फेक अकाउंट्स चल रहे हैं, जो कि विपक्षी पार्टी पर हमलावार हैं. वहीं इनमें से कई खातों का संचालन एक ही समय पर एक ही व्यक्ति द्वारा किया जा रहा है. हालांकि उनकी रिसर्च में कई अकाउंट्स वास्तविक भी पाए गए. वहीं उन्होंने फेक नामों से बने करीब 150 अकाउंट्स का पता लगाया, जो आक्रामक राजनीति के साथ ही विरोधी पार्टियों के लिए अमर्यादित शब्दों का प्रयोग भी कर रहे हैं. 

विपक्ष दल ने की निष्पक्ष जाँच की मांग   

विपक्ष द्वारा इसे लिकुड़ पार्टी का चुनावी एजेंडा बताया जा रहा है, जिसके द्वारा नेतन्याहू के व्यक्तित्व को चमकाने और उनके विरोधी बेनी गैट्ज की छवि को खराब करने तथा यह दिखाने की वह मानसिक रूप से ठीक नहीं हैं, का प्रयास किया जा रहा है. इस पर एक समाचार सम्मेलन में पूर्व सेना प्रमुख गैट्ज ने कहा है कि, 

“यह काफी बड़ी मात्रा में फंडेड एक व्यापक नेटवर्क है, जो कि चुनाव को नियंत्रित करने के उद्देश्य से संचालित किया जा रहा है. इस पूरे मामले की जांच होनी चाहिए.”

इसके अलावा कई अकाउंट्स से विवादित व भड़काऊ पोस्ट भी शेयर किए गए. नेतन्याहू के फेसबुक अकाउंट पर शेयर किए गए साक्षात्कार में एक अभिनेता द्वारा इजरायल के राजनीतिक टिप्पणीकार एमोन अब्रामोविच का मजाक उड़ाने का आरोप लगा, जिनका चेहरा 1973 के योम किपुर युद्ध में एक इजरायली सैनिक के रूप में लड़ते हुए जल गया था. जिस पर जनता के आक्रोश के बाद नेतन्याहू के कर्मचारियों ने अपने फेसबुक अकाउंट से उस वीडियो को हटा दिया था. इस पर कई ऐसी पोस्ट थी, जिन्हें न सिर्फ फेसबुक से डिलीट किया गया बल्कि उसके लिए पार्टी ने माफी भी मांगी.

आइये विचार करें

अब इसे फेसबुक पर हुए प्रचार-प्रसार का नतीजा कहें या चुनावी समीकरण में फेसबुकी घुसपेंठ का परिणाम कि इस बार भी इजरायल में लिकुड पार्टी की ही सरकार बनेगी और बेंजामिन नेतन्याहू अनवरत पांचवी बार प्रधानमंत्री. हालांकि उनके समर्थकों के लिए यह हर्ष का विषय हो सकता है, परन्तु दूरगामी परिणामों पर नजर दौड़ाएं तो यह व्यवस्था कहीं न कहीं तानाशाही की ओर इशारा करती प्रतीत होती है. एक ऐसी व्यवस्था, जहां चौतरफा भ्रष्टाचार के आरोपों में घिरे व्यक्ति को बहुमत से विजय मिल रही हो, साबित करती है कि डिजिटल हेर-फेर किसी भी देश की सत्ता को पलटने की क्षमता रखती है. जनता की मानसिकता से खेल कर शासन की रुपरेखा को किसी एक व्यक्ति या दल के आधार पर चलाया जाना आज हमारी वैचारिक क्षमता के हनन का प्रदर्शन कर रहा है.

भारत भी आम चुनावों की दहलीज पर खड़ा है, ऐसे में प्रश्न उठता है कि क्या हम भी आंख मूंदकर कर फेसबुक, ट्विटर आदि पर हो रहे चुनावी प्रचार का हिस्सा बनेंगे या नेताओं-अभिनेताओं द्वारा पार्टी प्रमोशन के लिए चलाए जा रहे अभियानों को शेयर कर करके उन्हें बढ़ावा देंगे? उत्तर स्वयं से पूछें..एक प्रबुद्ध भारतीय नागरिक होने के अपने कर्तव्यों को अपनी बौद्धिकता के आधार पर समझें तो आप स्वयं जानेंगे कि क्या सही है और क्या ग़लत? सही प्रतिनिधि को चुनना सही सरकार स्थापित होने की ओर इशारा करता है और सही सरकार ही देश को सक्षम एवं प्रगतिवान बनाए रख सकती है. 

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