मानसून में कुछ अलग हो जाती है गंगा

मानसून आने में बेहद कम वक्त बचा है. बिहार में पिछले साल आई बाढ़ को लोग अभी भुला भी नहीं पाए हैं. ऐसे में मानसून करीब आने से लोगों में खासकर उन भुक्तभोगियों में फिर से एक डर बैठ गया है जिन्होंने पिछले वर्ष बाढ़ की त्रासदी को झेला था. जिन्होंने गंगा की विकरालता में अपना बहुत कुछ खो दिया था. बिहार में गंगा का एक अलग स्थान है. यहां के निवासी इसे गंगा मईया कहकर पुकारते हैं, इसकी पूजा करते हैं. मगर कल और आज की गंगा में बहुत फर्क आ चुका है. हमेशा पानी से भरी रहने वाली गंगा आज गर्मियों में कहीं सिकुड़ सी गई है. जगह-जगह सूखी और टीलों के रूप में तब्दील हो चुकी गंगा मानसून के समय कुछ अलग ही रूप में नजर आती है. भयंकर बाढ़ से कई इलाके प्रभावित होते हैं और हजारों करोड़ का नुकसान होता है. बहुत लोग इस बाढ़ की वजह गंगा की गाद को मानते हैं और इससे छुटकारा चाहते हैं.
नितीश कुमार ने गाद की समस्या को लेकर प्रधानमंत्री से की मुलाकात

ऐसे में बिहार के मुख्यमंत्री नितीश कुमार ने इसी सिलसिले में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात की. नीतीश कुमार ने प्रधानमंत्री से मुलाकात के दौरान गंगा में जमने वाले गाद से हर वर्ष बिहार में आने वाले बाढ़ और उससे होने वाले नुकसान पर बात की. नीतीश कुमार की मांग के बाद प्रधानमंत्री ने उन्हें यह आश्वासन दिया कि 10 जून के पहले विशेषज्ञों की टीम बिहार राज्य का दौरा करेगी और गंगा में गाद की समस्या का आंकलन करेगी. बिहार के मुख्यमंत्री का कहना था कि गंगा की गाद को निकालकर किनारे पर जमा करना समस्या का समाधान नहीं हो सकता, बल्कि इसके लिए नदी के बहाव के साथ गाद के बहने का उपाय किया जाना चाहिए.
गाद को बहने का रास्ता दिए जाने की जरुरत

मानसून के समय गंगा में आने वाली बाढ़ से बिहार के कई इलाके प्रभावित होते हैं. नीतीश कुमार ने गंगा में गाद जमने के लिए फरक्का बांध को जिम्मेदार ठहराया. उन्होंने कहा कि आज समय आ गया है जब इसकी उपयोगिता का पुनर्मूल्यांकन किया जाये. उन्होंने यहां इस बात को भी रेखांकित किया कि गंगा में गाद की समस्या से निपटने के लिए बनाई गई चितले समिति ने भी अपनी रिपोर्ट में यह सिफारिश की थी कि गाद को बहने का रास्ता देने की जरुरत है. मुख्यमंत्री ने कहा कि बिहार लगातार गंगा नदी बेसिन प्राधिकरण और अंतरराज्यीय परिषद की बैठकों में इस मुद्दे को उठाता रहा है. लेकिन अब तक इस पर कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है. मारीशस के प्रधानमंत्री के साथ भोजन पर आमंत्रित बिहार के मुख्यमंत्री ने हैदराबाद हाऊस में इसी कारण अलग से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात की और गंगा में गाद की समस्या का मुद्दा उठाया.
गर्मी के मौसम में ही हो सकता गाद का सही आंकलन
मुख्यमंत्री ने कहा कि गर्मी के मौसम के कारण गंगा में इस समय पानी बेहद ही कम हो जाता है और नदी में जमे गाद को बड़ी आसानी से देखा जा सकता है. इसके साथ ही नितीश कुमार ने यह भी कहा कि अगर एक बार बरसात शुरू हो गई तो उसके बाद गंगा का जलस्तर बढ़ जाएगा और फिर गाद का सही आंकलन नहीं किया जा सकेगा. यही वजह है कि उन्होंने प्रधानमंत्री से गाद का आंकलन के लिए 10 जून के पहले विशेषज्ञों की टीम भेजने का अनुरोध किया है. प्रधानमंत्री ने इस अनुरोध को स्वीकार करते हुए सही समय पर विशेषज्ञों की टीम भेजने का आश्वासन दिया है.
केंद्र ने शुरू की कार्रवाई
मुख्यमंत्री के अनुसार प्रधानमंत्री से समस्या उठाने के बाद इस पर कार्रवाई भी होने लगी है. जल संसाधन मंत्रालय के सचिव अमरजीत सिंह और जहाजरानी मंत्रालय के अपर सचिव आलोक श्रीवास्तव ने बिहार भवन आकर मुख्यमंत्री नीतिश कुमार से इस विषय को लेकर विस्तृत चर्चा की. इस चर्चा के दौरान बिहार के मुख्य सचिव भी मौजूद थे.
मुख्यमंत्री मानते हैं गाद को बहुत बड़ी समस्या

पिछले वर्ष भी नीतीश कुमार ने 23 अगस्त, 2016 को गंगा की बदहाली के लिए फरक्का बराज को सीधे तौर जिम्मेदार ठहराते हुए प्रधानमंत्री को एक तीन पृष्ठ का पत्र सौंपा था. जिसमें उन्होंने फरक्का बराज की उपयोगिता पर प्रश्न खड़ा करते हुए कहा था कि इसके लाभ से ज्यादा नुकसान ही अधिक है. इस बार फिर नितीश कुमार ने इसे बहुत बड़ी समस्या बताया है. उन्होंने कहा कि बिहार सरकार की ओर से लगातार इस समस्या के प्रति केंद्र सरकार का ध्यान आकर्षित किया जाता रहा है.
नेपाल से आता है भारी मात्रा में गाद
आपको बता दें कि बिहार में नेपाल की नदियों से बह कर काफी मात्रा में गाद आती है. कोसी नदी के गंगा में मिलने के तुरंत बाद ही फरक्का आ जाता है, जहां बराज की वजह से पानी का प्रवाह बहुत हद तक बाधित हो जाता है और पानी तटों की तरफ फैलता है. गाद के कारण फरक्का बराज के कई फाटक पूरी तरह से जाम हो चुके हैं. बराज के पास गाद का ढेर जमा हो चुका है जिसका सीधा असर गंगा के प्रवाह पर पड़ा है. साथ ही इसका असर गंगा की सभी सहायक नदियों पर भी हुआ है.
सिर्फ गाद ही नहीं गंगा में बाढ़ आने के कई और भी कारण
विशेषज्ञों का मानना है कि गंगा में बाढ़ का कारण सिर्फ गाद ही नहीं है. इसकी दूसरी वजह है गंगा के उपर बने 181 डैम से अचानक पानी का छोड़ा जाना. सिर्फ इतना ही नहीं वनों की बेहिसाब कटाई और प्रकृति से छेड़ छाड़ के कारण समस्या बढ़ी है. समस्या सिर्फ पहाड़ों पर वनों की कटाई से ही नहीं बल्कि मैदानी क्षेत्रों में पेड़ों की कटाई के कारण से भी है. मगर फिर भी गंगा में बाढ़ की सबसे बड़ी वजह गाद ही मानी जाती है. आज गंगा में गाद इतना अधिक बढ़ गया है कि नदी ने अपनी मुख्यधार ही परिवर्तित कर दी है. ऐसे में गाद के फैलाव की वजह से गंगा में बाढ़ की समस्या है.
बाढ़ से होने वाला नुकसान सकल घरेलू उत्पाद के बराबर
वाकई आज हमें गंगा में आने वाली बाढ़ के कारणों को सिर्फ समझने की ही नहीं बल्कि उसे दुरुस्त करने की भी जरूरत है. देश में प्रतिवर्ष आने वाली बाढ़ के कारण 2.7 लाख करोड रुपए का नुकसान होता है जो कि हमारे सकल घरेलू उत्पाद 14 फ़ीसदी के बराबर है. सिर्फ इतना ही नहीं बाढ़ की तैयारियों में भी करोड़ों खर्च किए जाते हैं मगर इसे विडंबना ही कहिए कि इसके लिए अब तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है. बात सिर्फ यहीं समाप्त नहीं हो जाती बाढ़ के कारण होने वाले करोड़ों के नुकसान के बाद भी कुछ ऐसे नुकसान हैं जिसकी भरपाई कर पाना शायद ही संभव हो पाए. बाढ़ के कारण विस्थापन का दंश झेल रहे लोगों का दर्द सिर्फ वही समझ सकता है जो कि इस दर्द को झेला हो. पाई पाई कर जोड़े गए सामानों का, सहेज कर रखी गई यादों की भरपाई कोई भी मूल्य चुका कर पूरा नहीं किया जा सकता. खैर मुद्दे कई सारे हैं मगर आज जरूरत है गंगा में गाद की समस्या के दीर्घकालीन समाधान के लिए एक प्रभावी राष्ट्रीय गाद प्रबंधन नीति बनाने की.
nitish kum...ase.pdf
-स्वर्णताभ
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Swarntabh Kumar 49
मानसून में कुछ अलग हो जाती है गंगा
मानसून आने में बेहद कम वक्त बचा है. बिहार में पिछले साल आई बाढ़ को लोग अभी भुला भी नहीं पाए हैं. ऐसे में मानसून करीब आने से लोगों में खासकर उन भुक्तभोगियों में फिर से एक डर बैठ गया है जिन्होंने पिछले वर्ष बाढ़ की त्रासदी को झेला था. जिन्होंने गंगा की विकरालता में अपना बहुत कुछ खो दिया था. बिहार में गंगा का एक अलग स्थान है. यहां के निवासी इसे गंगा मईया कहकर पुकारते हैं, इसकी पूजा करते हैं. मगर कल और आज की गंगा में बहुत फर्क आ चुका है. हमेशा पानी से भरी रहने वाली गंगा आज गर्मियों में कहीं सिकुड़ सी गई है. जगह-जगह सूखी और टीलों के रूप में तब्दील हो चुकी गंगा मानसून के समय कुछ अलग ही रूप में नजर आती है. भयंकर बाढ़ से कई इलाके प्रभावित होते हैं और हजारों करोड़ का नुकसान होता है. बहुत लोग इस बाढ़ की वजह गंगा की गाद को मानते हैं और इससे छुटकारा चाहते हैं.
नितीश कुमार ने गाद की समस्या को लेकर प्रधानमंत्री से की मुलाकात
ऐसे में बिहार के मुख्यमंत्री नितीश कुमार ने इसी सिलसिले में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात की. नीतीश कुमार ने प्रधानमंत्री से मुलाकात के दौरान गंगा में जमने वाले गाद से हर वर्ष बिहार में आने वाले बाढ़ और उससे होने वाले नुकसान पर बात की. नीतीश कुमार की मांग के बाद प्रधानमंत्री ने उन्हें यह आश्वासन दिया कि 10 जून के पहले विशेषज्ञों की टीम बिहार राज्य का दौरा करेगी और गंगा में गाद की समस्या का आंकलन करेगी. बिहार के मुख्यमंत्री का कहना था कि गंगा की गाद को निकालकर किनारे पर जमा करना समस्या का समाधान नहीं हो सकता, बल्कि इसके लिए नदी के बहाव के साथ गाद के बहने का उपाय किया जाना चाहिए.
गाद को बहने का रास्ता दिए जाने की जरुरत
मानसून के समय गंगा में आने वाली बाढ़ से बिहार के कई इलाके प्रभावित होते हैं. नीतीश कुमार ने गंगा में गाद जमने के लिए फरक्का बांध को जिम्मेदार ठहराया. उन्होंने कहा कि आज समय आ गया है जब इसकी उपयोगिता का पुनर्मूल्यांकन किया जाये. उन्होंने यहां इस बात को भी रेखांकित किया कि गंगा में गाद की समस्या से निपटने के लिए बनाई गई चितले समिति ने भी अपनी रिपोर्ट में यह सिफारिश की थी कि गाद को बहने का रास्ता देने की जरुरत है. मुख्यमंत्री ने कहा कि बिहार लगातार गंगा नदी बेसिन प्राधिकरण और अंतरराज्यीय परिषद की बैठकों में इस मुद्दे को उठाता रहा है. लेकिन अब तक इस पर कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है. मारीशस के प्रधानमंत्री के साथ भोजन पर आमंत्रित बिहार के मुख्यमंत्री ने हैदराबाद हाऊस में इसी कारण अलग से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात की और गंगा में गाद की समस्या का मुद्दा उठाया.
गर्मी के मौसम में ही हो सकता गाद का सही आंकलन
मुख्यमंत्री ने कहा कि गर्मी के मौसम के कारण गंगा में इस समय पानी बेहद ही कम हो जाता है और नदी में जमे गाद को बड़ी आसानी से देखा जा सकता है. इसके साथ ही नितीश कुमार ने यह भी कहा कि अगर एक बार बरसात शुरू हो गई तो उसके बाद गंगा का जलस्तर बढ़ जाएगा और फिर गाद का सही आंकलन नहीं किया जा सकेगा. यही वजह है कि उन्होंने प्रधानमंत्री से गाद का आंकलन के लिए 10 जून के पहले विशेषज्ञों की टीम भेजने का अनुरोध किया है. प्रधानमंत्री ने इस अनुरोध को स्वीकार करते हुए सही समय पर विशेषज्ञों की टीम भेजने का आश्वासन दिया है.
केंद्र ने शुरू की कार्रवाई
मुख्यमंत्री के अनुसार प्रधानमंत्री से समस्या उठाने के बाद इस पर कार्रवाई भी होने लगी है. जल संसाधन मंत्रालय के सचिव अमरजीत सिंह और जहाजरानी मंत्रालय के अपर सचिव आलोक श्रीवास्तव ने बिहार भवन आकर मुख्यमंत्री नीतिश कुमार से इस विषय को लेकर विस्तृत चर्चा की. इस चर्चा के दौरान बिहार के मुख्य सचिव भी मौजूद थे.
मुख्यमंत्री मानते हैं गाद को बहुत बड़ी समस्या
पिछले वर्ष भी नीतीश कुमार ने 23 अगस्त, 2016 को गंगा की बदहाली के लिए फरक्का बराज को सीधे तौर जिम्मेदार ठहराते हुए प्रधानमंत्री को एक तीन पृष्ठ का पत्र सौंपा था. जिसमें उन्होंने फरक्का बराज की उपयोगिता पर प्रश्न खड़ा करते हुए कहा था कि इसके लाभ से ज्यादा नुकसान ही अधिक है. इस बार फिर नितीश कुमार ने इसे बहुत बड़ी समस्या बताया है. उन्होंने कहा कि बिहार सरकार की ओर से लगातार इस समस्या के प्रति केंद्र सरकार का ध्यान आकर्षित किया जाता रहा है.
नेपाल से आता है भारी मात्रा में गाद
आपको बता दें कि बिहार में नेपाल की नदियों से बह कर काफी मात्रा में गाद आती है. कोसी नदी के गंगा में मिलने के तुरंत बाद ही फरक्का आ जाता है, जहां बराज की वजह से पानी का प्रवाह बहुत हद तक बाधित हो जाता है और पानी तटों की तरफ फैलता है. गाद के कारण फरक्का बराज के कई फाटक पूरी तरह से जाम हो चुके हैं. बराज के पास गाद का ढेर जमा हो चुका है जिसका सीधा असर गंगा के प्रवाह पर पड़ा है. साथ ही इसका असर गंगा की सभी सहायक नदियों पर भी हुआ है.
सिर्फ गाद ही नहीं गंगा में बाढ़ आने के कई और भी कारण
विशेषज्ञों का मानना है कि गंगा में बाढ़ का कारण सिर्फ गाद ही नहीं है. इसकी दूसरी वजह है गंगा के उपर बने 181 डैम से अचानक पानी का छोड़ा जाना. सिर्फ इतना ही नहीं वनों की बेहिसाब कटाई और प्रकृति से छेड़ छाड़ के कारण समस्या बढ़ी है. समस्या सिर्फ पहाड़ों पर वनों की कटाई से ही नहीं बल्कि मैदानी क्षेत्रों में पेड़ों की कटाई के कारण से भी है. मगर फिर भी गंगा में बाढ़ की सबसे बड़ी वजह गाद ही मानी जाती है. आज गंगा में गाद इतना अधिक बढ़ गया है कि नदी ने अपनी मुख्यधार ही परिवर्तित कर दी है. ऐसे में गाद के फैलाव की वजह से गंगा में बाढ़ की समस्या है.
बाढ़ से होने वाला नुकसान सकल घरेलू उत्पाद के बराबर
वाकई आज हमें गंगा में आने वाली बाढ़ के कारणों को सिर्फ समझने की ही नहीं बल्कि उसे दुरुस्त करने की भी जरूरत है. देश में प्रतिवर्ष आने वाली बाढ़ के कारण 2.7 लाख करोड रुपए का नुकसान होता है जो कि हमारे सकल घरेलू उत्पाद 14 फ़ीसदी के बराबर है. सिर्फ इतना ही नहीं बाढ़ की तैयारियों में भी करोड़ों खर्च किए जाते हैं मगर इसे विडंबना ही कहिए कि इसके लिए अब तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है. बात सिर्फ यहीं समाप्त नहीं हो जाती बाढ़ के कारण होने वाले करोड़ों के नुकसान के बाद भी कुछ ऐसे नुकसान हैं जिसकी भरपाई कर पाना शायद ही संभव हो पाए. बाढ़ के कारण विस्थापन का दंश झेल रहे लोगों का दर्द सिर्फ वही समझ सकता है जो कि इस दर्द को झेला हो. पाई पाई कर जोड़े गए सामानों का, सहेज कर रखी गई यादों की भरपाई कोई भी मूल्य चुका कर पूरा नहीं किया जा सकता. खैर मुद्दे कई सारे हैं मगर आज जरूरत है गंगा में गाद की समस्या के दीर्घकालीन समाधान के लिए एक प्रभावी राष्ट्रीय गाद प्रबंधन नीति बनाने की.
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-स्वर्णताभ