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बारिश से जलमग्न हुआ दिल्ली, जलभराव का कारण ड्रेनेज सिस्टम की अनदेखी

  • बारिश से जलमग्न हुआ दिल्ली, जलभराव का कारण ड्रेनेज सिस्टम की अनदेखी
  • Sep 5, 2016

एक मशहूर कहावत है ‘बोए पेड़ बबूल के तो आम कहां से होए’. हम सब में से अधिकांश ने देश को विकाशील से विकसित बनने का स्वपनीला ख़्वाब देखा होगा. हर स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस पर सीना चौड़ा कर भारतीय होने पर गौरवांवित होते होंगे. मगर अचानक एक जरा सी बारिश हमारे सारे भ्रम को तोड़ देती है. सारे ख़्वाब घंटों जाम में फंसने के बाद हकीकत में निकलकर बह जाते हैं. विडंबना देखिये जिस दौड़ती-भागती जिंदगी में लोगों के पास सुबह का नाश्ता करने का वक्त तक नहीं होता, सुबह-सुबह घर से निकल कर देर रात घर वापसी होती हो वहां अगर कोई घंटों जाम में फंसा रहे तो यकीन जानिए उसके पास देश के दुर्भाग्य पर रोने के अलावा कोई चारा नहीं बचता है. आप देश के किसी भी बड़े शहर में चले जाइए आपके लिए बारिश बिना पहचान के दुश्मन की तरह है. आप खुद उससे लड़ नहीं सकते वह आपको परेशान किये बिना मानेगी ही नहीं.एक मशहूर कहावत है ‘बोए पेड़ बबूल के त

बात यहां दिल्ली की करें, जिसे देश की राजधानी होने का गौरव प्राप्त है, जिसे देश की चुनिंदा मेट्रो शहरों में गिना जाता है, जहां सो कॉल्ड ‘विआईपी’ बसते हैं, जहां देश का कानून बनता है. वह एक बारिश में डूब जाए, पूरा जन जीवन अस्त व्यस्त हो जाए, जहां जजों के कमी के कारण आम जनता को सुनवाई के लिए लंबा इंतज़ार करना पड़ता हो उसका कार्य भी जब इस बारिश के कारण दिल्ली जैसे शहर में बाधक बने तो इसे क्या कहा जाना चाहिए यह आप ही तय करें. यहां बारिश सिर्फ जाम जैसी समस्या ही नहीं लाती बल्कि हमारे सांस्कृतिक विरासत को भी ध्वस्त कर देती है. जो भारत अपने ‘अतिथि देवो भव’ के लिये जाना जाता है उसकी गरिमा को कुछ देर की बारिश समाप्त कर देती है. अमेरिकी विदेश मंत्री जॉन कैरी का स्वागत भी इसी बारिश के जाम के साथ हुई और विदाई भी इसी जाम ने दी. इसे सलीके वाली भाषा में शर्मिंदगी कहते हैं.

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जिस देश की राजधानी में हम मूलभूत समस्या का समाधान नहीं उपलब्ध करवा पाते वहां हम दूसरे शहरों को स्मार्ट सिटी बनाने का ख़्वाब कैसे देखें. विषय बेहद गंभीर, सोचनीय और चिंताजनक भी है मगर सवाल की इन सब का औचित्य क्या है? यहां हर बार की बारिश में सड़कों का यही हाल होता है मगर ना ही इसकी कोई जिम्मेदारी लेता है और  ना ही इस समस्या को दुरुस्त करने का कोई उपाय किया जाता है. उदहारण के लिए मीडिया की  चार वर्षों की रिपोर्ट्स उठा कर देखें लगता है बस पानी बढ़ता जा रहा है .

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एक मशहूर कहावत है ‘बोए पेड़ बबूल के त

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अगस्त महीने का अंतिम दिन तारीख 31 अगस्त 2016 की जहां सुबह हुई बारिश ने पूरे दिल्ली का जायका बिगाड़ दिया. समय पर लोगों का ऑफिस पहुंचना तो दूर की बात यहां बड़ी-बड़ी बसें तक आधी पानी में डूब गई. मगर ऐसा तो पहले भी होता रहा है और अब ही होता रहेगा. दिल्ली के जाने माने टाउन प्लानर एके जैन के अनुसार, ' 70 साल पुराना है दिल्ली का ड्रेनेज सिस्टम. तब यहां 20 लाख की आबादी थी आज 2 करोड़ के आसपास है. इस लिहाज से ड्रेनेज की क्षमता 30 फीसदी बढ़नी चाहिए थीमगर यह तो 30 फीसदी घट ही गई है.'(Source- Aajtak)

यहां सबसे बड़ा प्रश्न क्या है? शायद इसका समाधान. और जब सरकारी महकमा खामोश हो तो हम आम लोगों को ही आगे आना होगा. मिलकर इसके समाधान की ओर कदम बढ़ाना होगा. मिलकर इस चुनौती से लड़ना होगा. हमने गुडगांव को लेकर इन समस्याओं को बड़ी बारीकी से समझने की कोशिश की है और इसके समाधान की भी तलाश की है. मगर अब बारी है हमारे मिलकर आगे बढ़ने की, एकजुट होने की. सरकारी महकमे ने जिस तरह से लापरवाही की है उसे शायद आपको भी देखना चाहिए और समझना चाहिए, इसीलिए आपके सामने हमारी एक रिसर्च रिपोर्ट जिसने बड़ी बारीकि से कमियों का आंकलन कर एक समाधान देने की कोशिश की है -


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