गंगा सहित कई नदियों ने अपनी चाल क्या बदली उत्तर भारत को इसका कुछ उत्तर ही नहीं मिल पा रहा. सबसे अधिक उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश और बिहार के कई इलाक़ों में लोग बाढ़ से बेहाल हैं. गंगा, यमुना, राप्ती, केन, घाघरा, गंडक, कोसी, कर्मनाशा आदि अपने रौद्र रुप में है. नदियों ने प्रदेश के कई जिलों में कोहराम मचा रखा है. उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के 15 से ज्यादा ज़िले बाढ़ से प्रभावित हैं तो अकेले बिहार के 38 में से 12 जिले पानी में डूबे हुए है और यह संख्या आगे बढ़ भी जाये तो कोई हैरानी की बात नहीं होगी. अब तक इन प्रदेश के सैकड़ों गांव बाढ़ के पानी से जलमग्न हो गए हैं. लोगों के घर उफनती नदियों में समा चुके हैं. लोगों के पास ना तो रहने को घर बचे हैं और ना ही खाने को अन्न. कशी के घाटों की गलियों में जहाँ नावें चल रही हैं तो दूर कहीं बिहार में लोग खुद को बचाने की कोशिश में लगे हैं. अकेले बिहार के 1115 गांव की 23.71 लाख आबादी बाढ से प्रभावित हुई है.
आखिर क्या कारण है कि 14 प्रतिशत कम बारिश के बावजूद आज नदियों ने विनाश की चादर बिछा रखी है? क्या कारण है कि जीवनदाई गंगा अपने 40 सालों के रिकॉर्ड को तोड़ विनाश की प्रतिमूर्ति बनी हुई है? आखिर ऐसा क्या हो गया की लगातार तीन वर्ष से सूखा झेल रहा बुंदेलखंड आज चौह ओर से पानी से घिरा हुआ है? कारण कई हैं मगर अकारण सरकार जगती भी तो नहीं. बाढ़ की समस्या से निपटने के लिए हमने कई एजेंसियां बना रखी है ब्रह्मपुत्र बोर्ड, गंगा बाढ़ नियंत्रण आयोग आदि. 2011 में योजना आयोग ने बाढ़ प्रबंधन के लिए कई उपाय भी बताएं थे मगर हमारे यहाँ समस्यां जब तक विकराल ना हो जाए तबतक उसपर विचार भी नहीं किया जाता.
हम
नदियों के प्रबंधन में मूलभूत गलतियां कर रहे हैं. हमारी तटबंध बनाने की नीतियों
में भी कई खामियां हैं. हमने गंगा की सहायक नदी गोमती को थेम्स बनाने की बात की.
मगर ब्रिटेन के थेम्स या अमेरिका के हडसन नदी की बात करें तो उसके तटबंधों के
प्राकृतिक स्वरुप को छेड़ने की बात तो दूर उसे छुआ भी नहीं जाता, मगर यहां नदियों
के तटबंधों से खिलवाड़ किया जाता है. सड़कों, तटबंधों से हमने नदियों का रास्ता बांध
दिया. पानी के निकासी के लिए हमने नेचुरल ड्रेनेज को भी लगभग समाप्त कर दिया. हमने
विकास के नाम पर नदियों के पूरे सिस्टम को ही बर्बाद कर दिया. हमने नदियों के
कुदरती प्रणाली की बेकार कर दिया है. नदियों में गाद रुकने से उसका तल ऊपर उठ जाता
है और पानी कम रुकता है. तल के ऊपर उठने से नदी अपना कुदरती कार्य नहीं कर पाती
है. यही कारण है कि गंगा का तल गाद के कारण ऊपर उठा और पानी बाहर की और निकल विनाश
फैला रहा है. दिल्ली आयाईटी का अध्ययन है कि हर साल गंगा का रिवरबेड बेड 5 इंच ऊपर हो रहा है. इस पर गंभीरता से
सोचने की जरुरत है. आपके चेहरे की शिकन अब भी नहीं बढती तो समझिये विनाश दूर नहीं.
इस
तबाही के कई कारणों में से एक प्रमुख कारण गाद की समस्या है. गंगा के ठहरवा के
कारण उसकी सहायक नदियों की भी गाद आगे नहीं बढ़ पाएगी और उनमें भी ठहराव आने लगेगा
जिससे आने वाले समय में यह और भी तबाही ही लाएगी. नदियों में गाद की समस्या बेहद
जटिल हो चुकी है. अगर गाद मैनेजमेंट की तरफ हमारा ध्यान नहीं गया, तो जब भी बाढ़ आएगी हमें ऐसी तबाही से
दो चार होना ही होगा. चाहे फिर आप मिलिट्री ही क्यों ना उतार लें, उससे बहुत कुछ नहीं होने वाला है. बाढ़
तो आती है मगर वो इतनी विकट तबाही नहीं लाती, तबाही आ रही है हम सबकी गलतियों से, हमारे करतूतों के कारण. जब बांध बनाने होते हैं, नदियों का रास्ता रोकते हैं, तब तो कोई नहीं सुनता, तब हम सिर्फ विकास सुनना चाहते हैं.
जबकि उस विकास का असली अर्थ शायद विनाश है.
आज
समस्यां इतनी बढ़ चुकी है कि राजनीतिक वर्ग जगता दिख रहा है. इसे लेकर बिहार के
मुख्यमंत्री नितीश कुमार, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिल रहे हैं. बाढ़ से
चिंतित नितीश जी गंगा में जमा होने वाले गाद को लेकर भी बेहद चिंतित दिख रहे हैं. नितीश
कुमार ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से मुलाकात के बारे में बात करते हुए कहा कि
उन्होंने प्रधानमंत्री को राज्य में आई बाढ़ की स्थिति की विस्तार से जानकारी दी
और और गंगा नदी में जमा गाद प्रबंधन के लिए स्थायी और ठोस उपाय करने का अनुरोध
किया. मोदी जी ने आश्वासन देते हुए कहा कि उनकी मांगों पर तुरंत और सकारात्मक
कार्रवाई की जाएगी जिसमें राष्ट्रीय तलछट प्रबंधन नीति बनाना शामिल है.
नीतीश कुमार ने कहा बिहार में आज हम जो बहुत गंभीर स्थिति देख रहे हैं वह कभी नहीं हुई. इससे निजात पाने का एकमात्र रास्ता गाद की सफाई करना है. मुख्यमंत्री ने आशंका जताई कि अगर प्रभावी तरीके से नहीं निपटा गया तो स्थिति और बदतर हो जाएगी और आगामी वर्षों में राज्य को ज्यादा गंभीर नतीजे भुगतने होंगे. वर्तमान में गंगा में बाढ़ का मुख्य कारण नदी में काफी ज्यादा गाद जमा होना है जो फरक्का बांध के निर्माण के कारण हुआ है. हमें बांध के निर्माण की जरूरत का फिर से आकलन करना होगा. व्यावहारिकता में देखें तो इसने जो स्थिति पैदा की है उसमें लाभ से ज्यादा नुकसान है. इसलिए यह उपयुक्त होगा कि केंद्र बांध हटाने के बारे में गंभीरता से विचार करें.
वास्तव
में नितीश जी ने जो बात कही उसमें वास्तविकता है. 14 प्रतिशत कम बारिश के बावजूद
इस तरह गंगा ने अपना प्रलयकारी रुप दिखाया उसका मुख्य कारण गाद है. गाद के कारण
जब नदियों की गहराई कम होगी तो पानी बाहर निकलेगा ही. हमें चिंतित होने की जरुरत
है, मगर इस चिंता की दिशा समाधान के रुप में होना उतना ही जरुरी है. आज मुख्यमंत्री नितीश कुमार की
बातों पर हर राज्य के मुख्यमंत्रियों को सोचने की जरुरत है. वरना विकास के नाम पर
हमने जिस विनाश का निर्माण किया है वह कई राज्यों को डूबोने को काफी है.
हमने जिस विनाश का निर्माण किया है उसे और बेहतर से समझने के लिए आपको हमारे इस रिसर्च वीडियो को भी देखने की बेहद जरुरत है, लिंक नीचे दिए गए हैं:-