Ad
Search by Term. Or Use the code. Met a coordinator today? Confirm the Identity by badge# number here, look for Navpravartak Verified Badge tag on profile.
 Search
 Code
Searching...loading

Search Results, page of (About Results)
  • By
  • Deepika Chaudhary
  • Contributors
  • Mohd. Irshad Saifi
  • Swarntabh Kumar
  • Central Delhi
  • April 11, 2018, 6:01 p.m.
  • 3577
  • Code - 62180

वर्तमान भारत में महिला सशक्तिकरण: एक खोज, एक पहल

  • Mar 27, 2018

वो रचती है,

वो हंसती है,

बन गृहिणी घर-घर बसती है।

वो भक्ति है,

वो शक्ति है,

फिर जाने क्यों पिछड़ी सी लगती है?

  

वो रचती है,वो हंसती है,बन गृहिणी घर-घर बसती है।वो भक्ति है,वो शक्ति है,<

 

वास्तविकता है, स्त्री अंतहीन किरदारों के स्वरूप में जीवन को विभिन्न आयाम प्रदान करती है। जो असीम शक्ति स्वयं के भीतर निहित किए हुए है, वही नारी आज समाज के पिछड़े वर्ग का हिस्सा बनकर रह गई है। यह सुनने में बेहद शर्मनाक सा लगता है। भारत के परिपे्रक्ष्य में देखें तो स्त्री स्वरूप सदा से ही ‘यत्र नार्यस्तु पूजयन्ते तत्र रमन्ते देवताः’ वाला रहा है। परन्तु वर्तमान में जिस प्रकार चौतरफा महिला सशक्तिकरण का नारा गुंजायमान है, उससे यही प्रतीत होता है कि कथनी एवं करनी के बीच जमीन आसमान का अंतर है।

भारतीय ऋग्वैदिक कालीन इतिहास इस तथ्य की पुष्टि करता है कि अतीत में स्त्री सम्मान को विशेष महत्व प्रदान किया जाता था। गार्गी, लोपामुद्रा, मेत्रैयी जैसी विदुषी महिलाएं प्रमाण हैं कि वैदिक काल में स्त्रियों को शिक्षा एवं विवाह सम्बंधी निर्णय लेने का पूर्ण अधिकार प्राप्त था। परन्तु सामाजिक व्यवस्था में आए परिवर्तन से पितृसत्तात्मकता बढ़ती चली गई परिणामस्वरूप स्त्रियां निरंतर पिछड़ने लगी। मुगलकाल में तो यह स्थिति और भी भयावह हो गई। पर्दा प्रथा, बाल विवाह, बहु विवाह, सती प्रथा जैसी सामाजिक कुरीतियों ने समाज में अपनी पैठ बना ली और स्त्रियां लैंगिक असमानता का खुले आम शिकार होने लगी। आधुनिक भारत में विभिन्न समाज सुधारकों जैसे - राजा राममोहन राय, स्वामी विवेकानन्द, महर्षि दयानन्द सरस्वती आदि के प्रयासों के चलते महिलाओं की दयनीय स्थिति में कुछ सुधार देखने को मिला। मुस्लिम विवाह विघटन अधिनियम (1939), दहेज प्रतिबंध अधिनियम (1961), सती प्रथा निवारण अधिनियम (1987), हिन्दु विवाह अधिनियम (1955) के माध्यम से महिलाओं में सशक्तता, समानता व सुरक्षा देने का पुरजोर प्रयत्न किया गया जो कमोबेश आज भी जारी है।

महिला सशक्तिकरण से तात्पर्य महिलाओं को राजनैतिक, शैक्षणिक, आर्थिक, सामाजिक स्तर पर सशक्त बनाना है। स्त्रियों को विकसित होने के समान अवसर उपलब्ध कराते हुए उन्हें स्वावलम्बी बनाना एवं अपने मौलिक अधिकारों के प्रति जागरूक करना महिला सशक्तिकरण का केन्द्रीय बिंदु है। सरल शब्दों में यदि महिला सषक्तिकरण की व्याख्या की जाये तो स्त्रियों को उनके जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में निर्णय लेने की स्वाधीनता प्राप्त हो, चाहे वह षिक्षा या रोजगार सम्बंधी निर्णय हो या विवाह से जुड़ी स्वतंत्रता। इन निर्णयों को किसी विशेषाधिकार की दृश्टि से न देखा जाकर किसी सामान्य मनुष्य को प्राप्त सामान्य व्यक्तिगत अधिकारों की भांति दृश्टिगोचर करना ही वास्तविक महिला सशक्तिकरण है।

भारत में महिलाओं की स्थिति: आंकड़ों की दृष्टि से

 

वो रचती है,वो हंसती है,बन गृहिणी घर-घर बसती है।वो भक्ति है,वो शक्ति है,<

 

प्रचलित समय में सरकार द्वारा महिला सशक्तिकरण हेतु विभिन्न परियोजनाएं चलाई जाती हैं। महिला संगठनों द्वारा बढ़-चढ़ कर धरने, रैली, प्रदर्शन इत्यादि किए जाते हैं। विभिन्न पुस्तकों, समाचार पत्रों व पत्रिकाओं में प्रतिष्ठित व्यक्तियों द्वारा महिलाओं से जुड़े मुद्दों को आये दिन उठाया जाता है। इन सभी प्रयासों को देखकर लगता है कि देश में महिला सशक्तिकरण को लेकर चेष्टाएं युद्ध स्तर पर हो रही हैं। परन्तु महिला स्थिति से जुड़े अग्रलिखित आंकड़ें एक अलग ही चित्र प्रस्तुत करते हैं:-

लिंगानुपात

भारतीय जनगणना (2011) आंकड़ों के अनुसार देश में 1000 पुरूषों पर 940 महिलाएं हैं। हरियाणा के आंकड़ें तो और अधिक चैंकाते हैं जहां 1000 पुरूषों  पर केवल 834 महिलाएं हैं, और यही हाल उत्तर भारत के लगभग सभी राज्यों जैसे राजधानी दिल्ली (871/1000), पंजाब (846/1000), राजस्थान (888/1000) और चण्डीगढ़ (880/1000) आदि का है। इसके विपरीत पिछडे़पन और गरीबी से लगातार जूझता राज्य बिहार (935/1 000) लिंगानुपात के मामले में इन राज्यों से कहीं अधिक बेहतर है। उपर्युक्त आंकड़ें कन्या भू्रण हत्या एवं गिरते लिंगानुपात को रोकने में सरकार की नीति पूर्व गर्भाधान और प्रसव पूर्व निदान तकनीक अधिनियम (1996) की ज़मीनी हकीकत दर्शाती है। 

महिला साक्षरता दर

वर्ष 2011 में हुई जनगणना के अनुसार भारत का साक्षरता दर 74.04 प्रतिशत है, जिसमें 65.46 फीसदी महिलाएं साक्षर हैं। इसके विपरीत पुरुष साक्षरता दर 82.14 प्रतिशत है, महिलाओं एवं पुरूषों की साक्षरता के मध्य 16.68 प्रतिशत का अंतर आज भी महिलाओं के प्रति असमानता का द्योतक बना हुआ है।

कामकाजी महिला दर

 

वो रचती है,वो हंसती है,बन गृहिणी घर-घर बसती है।वो भक्ति है,वो शक्ति है,<

Ad

 

जून 2016 की एसोचैम रिर्पोट के अनुसार पिछले एक दशक में महिला श्रम बल भागीदारी में 10 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई है। साल 2005 में जहां 37 फीसदी महिला श्रम बल भागीदारी थी, वहीं सन् 2014 में यह घटकर 27 फीसदी रह गयी। ब्लड बैंक आंकड़ों के अनुसार महिला श्रम भागीदारी में भारत 186 देशों में 170वें पायदान पर है। ब्रिक्स देशों में भी भारत 27 प्रतिशत महिला श्रम भागीदारी के साथ आखिरी पायदान पर है।

महिलाओं के खिलाफ अपराध

लचर कानून व्यवस्था और नैतिक मूल्य ह्रास के चलते पिछले एक दशक में महिलाओं के विरूद्ध अपराध के 2.24 मिलियन मामले दर्ज किए गये। नेशनल क्राइम रिकाॅर्ड ब्यूरो के अनुसार वर्ष 2011 से 2015 के बीच महिलाओं के खिलाफ अपराध दर 41.7 प्रतिशत से बढ़कर 53.9 प्रतिशत दर्ज किया गया।

 

महिला सशक्तिकरण से जुड़ी सरकारी परियोजनायें

महिलाओं को जमीनी स्तर पर सक्षम, अपने अधिकारों के प्रति अवगत और स्त्री अस्तित्व के बेहतर विकास से जुड़े संकल्पों की पूर्ति के लिए सरकार द्वारा हर वर्ष नई परियोजनाएं चलाई जाती हैं। उदाहरण के तौर पर स्वाधार गृह योजना, महिला-ए-हाॅट, राजीव गांधी राष्ट्रीय क्रेच योजना इत्यादि इनमें से कुछ मुख्य परियोजनाओं का विवरण इस प्रकार है:-

 बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ

 

वो रचती है,वो हंसती है,बन गृहिणी घर-घर बसती है।वो भक्ति है,वो शक्ति है,<

 

Ad

घटते लिंगानुपात कोे स्थिर करने के लिए सरकार द्वारा जनवरी 2015 में बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओं अभियान का क्रियान्वन किया गया। कन्याओं के अस्तित्व, शिक्षा व सुरक्षा को सुनिश्चित करने तथा लिंग परीक्षण की घटिया मनोवृति के उन्मूलन हेतू यह योजना शुरू हुई।

सुकन्या समृद्धि खाता योजना

बालिकाओं के उज्ज्वल भविश्य हेतू सरकार द्वारा दिसम्बर 2014 में सुकन्या समृद्धि खाता योजना का षुभारंभ किया गया। इसके अंतर्गत बने खातों के माध्यम से कन्याएं षिक्षा, रोजगार एवं विवाह सम्बंधी आर्थिक सहायता प्राप्त कर सकती हैं।

प्रधानमंत्री उज्जवला योजना

गरीबी रेखा के नीचे आने वाली महिलाओं को भारत सरकार द्वारा एलपीजी कनेक्शन उपलब्ध कराने की प्रधानमंत्री उज्जवला योजना मई 2016 में शुरू की गई। इसके तहत वर्तमान वित्तीय वर्ष (2016-17) में 1.5 करोड़ बीपीएल परिवारों की महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाया जाएगा।

 

वुमेन हेल्पलाइन

महिला एवं बाल विकास मंत्रालय द्वारा महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने हेतू वुमेन हेल्पलाइन स्कीम की शुरूआत अप्रैल 2015 में की गई। यह सरकार की वन स्टाॅप सेंटर योजना का ही एक भाग है, जो देश भर में जरूरतमंद महिलाओं को 24 घंटे निशुल्क हेल्पलाइन नम्बर 1091 उपलब्ध कराती है।

स्त्री सुदृढ़ीकरण की राह में अवरोध के मुख्य कारण 

सामाजिक विषमताएं

Ad

भारतीय समाज में फैली विषमताएं जैसे लैंगिक असमानता, कन्या भू्रण हत्या, दहेज प्रथा, घरेलु हिंसा आदि स्त्री को समग्र विकास करने से रोकती हैं। पुरूष प्रधान समाज व्यवस्था व परम्परा के नाम पर देवदासी प्रथा, परदा प्रथा जैसे धार्मिक ढ़ोंग भी स्त्री को पिछड़ने पर विवश करते हैं।

उचित शिक्षा का अभाव

 

वो रचती है,वो हंसती है,बन गृहिणी घर-घर बसती है।वो भक्ति है,वो शक्ति है,<

 

स्त्रियों की शिक्षा दर (ग्रामीण क्षेत्रों में 49.3 प्रतिशत से 60 प्रतिशत तथा शहरी क्षेत्रों में 71.3 प्रतिशत से 76.9 प्रतिशत होना) यह तो दर्शाती है कि स्त्री शिक्षा में वृद्धि हुई है, परन्तु आज भी शिक्षण पद्धति से जुड़ी समस्याएं जस की तस बनी हुई हैं। जिसके कारण भारतीय समाज में स्त्रियां अल्पविकसित रह जाती हैं।

 

मनोवैज्ञानिक कारण

वैचारिक रूढ़िवादिता के कारण हमारा समाज आज भी महिलाओं को पिछड़े वर्ग का नुमाइंदा मानता है। मनोवृति की इस शिथिलता के कारण स्त्रियां अपना सर्वांगीण विकास नहीं कर पाती, इसी कारण महिलाएं अंतर्निहित पूर्वाग्रह का शिकार हो जाती हैं और स्वयं को कमजोर मानते हुए चाह कर भी निज विकास नहीं कर पाती। दीर्घ स्थायी पक्षपात भी भारतीय समाज की एक विषम मनोवृति है, जिसके चलते महिलाओं को हर क्षेत्र में पुरूषों से कम आंकने की मानसिकता न केवल पुरूषों अपितु महिलाओं में भी घर कर जाती है।

 राजनैतिक अवरोध

 

वो रचती है,वो हंसती है,बन गृहिणी घर-घर बसती है।वो भक्ति है,वो शक्ति है,<

 

महिला सशक्तिकरण हेतु संविधान की धारा 243 (डी) के संशोधित रूपानुसार ग्रामीण पंचायत चुनाव में महिलाओं के आरक्षण को 33 से 55 फीसदी तो कर दिया गया परन्तु उसका क्रियान्वन सुचारू रूप से आजतक भी नहीं हो पाया। आज भी कुछ ग्रामीण क्षेत्रों में महिला सरपंच की भूमिका केवल कागजी है वास्तविकता में वें केवल पुरूषों के हाथों की कठपुतली ही बनी हुईं हैं। इसके अतिरिक्त संसद में आज भी महिलाएं 33 प्रतिशत आरक्षण की लड़ाई लड़ रही हैं।

इन सभी के अतिरिक्त कुछ आर्थिक कारण जैसे रोजगार के अल्प अवसर, वेतनमान में अंतर, कार्यस्थल में सुरक्षा का अभाव आदि तथा भारतीय महिलाओं में स्वास्थ्य समस्याएं काफी अधिक है जो महिलाओं के विकसित स्वरूप की संकल्पना के लिए घातक बनी हुई हैं।

सशक्तिकरण की दिशा में हो एक मजबूत पहल 

शिक्षा का अर्थ हो ज्ञान का प्रसार

शिक्षा केवल डिग्री के रूप में चंद कागज के टुकड़े पाने का नाम नहीं होता अपितु एक शिक्षित व्यक्ति ज्ञान की उस गंगा के समान होता है जो निरंतर प्रेरणादायी रूप से बहती रहे। यदि भारतीय शिक्षा प्रणाली की बात करें तो यहां ए फाॅर एप्पल सब सिखा देगें परन्तु ए फाॅर आगे बढ़ना कोई नहीं सिखाता।

देश को आवश्यकता है नवली कुमारी जैसे जुझारू व्यक्तित्व की, जिन्होनें राजस्थान के एक आदिवासी गांव में महिला शिक्षा जागरूकता की लहर ला दी। नवली ने घर-घर जाकर गांव के लोगों को स्त्री शिक्षा के प्रति उत्साहित किया और सही मायनों में बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ के जुमले को सार्थक किया।

सामाजिक संरचनात्मक परिवर्तन

 

वो रचती है,वो हंसती है,बन गृहिणी घर-घर बसती है।वो भक्ति है,वो शक्ति है,<

 

भारत की पुरूष प्रधान सामाजिक प्रणाली के अंतर्गत हमेशा से ही बेटों को बेटी से सर्वोपरि माना जाता है। भारतीय समाज चाहे कितना भी शिक्षित क्यों न हो परंतु आज भी सदियों से काबिज लैंगिक भेदभाव हर दूसरे घर में दिख जाता है।

यदि महिलाओं को सशक्त बनाना है तो बेटियों को स्वयं भी आगे बढ़ना होगा। TAFE की सीईओ मल्लिका श्रीनिवासन ने अपने पिता केट्रेक्टर के बिजनेस को आगे बढ़ाया और साबित किया कि बेटी भी बेटों वाले कार्य कर सकती है। येस बैंक की बिजनेस मैनेजर राखी कपूर भी अपने पिता के पदचिन्हों पर चलते हुए उनके बैंक को नई दिषा प्रदान कर रही हैं।

उचित खेल प्रशिक्षणों द्वारा मिले नया आयाम

हमारे देश में हुनर की कोई कमी नहीं है, परन्तु उन्हें सही प्रशिक्षण न मिल पाना सबसे बड़ा कारण है, देश में महिलाओं के पिछड़ने का। देश की जनता दंगल व चक दे इण्डिया जैसी फिल्मों को देखकर ताली तो बजाती है, परन्तु जब अपने घर की बालिकाओं को प्रशिक्षण दिलाने की बात आए तो तुरन्त बजट गड़बड़ा जाता है।

वर्तमान में जरूरत है कि सरकार द्वारा इस दिशा में उचित कदम उठाए जाए ताकि गली-मुहल्लों में नट का अनूठा खेल दिखाती लड़कियां ओलंपिक में पदक जीतकर देश को गौरान्वित करें। झारखण्ड की आदिवासी लड़कियों की फुटबाॅल टीम द्वारा विदेश में जाकर अपने देश का मान बढ़ाना यह साबित करता है कि उचित मार्गदर्शन व सही प्रशिक्षण स्त्री-सशक्तिकरण के नए द्वार खोल सकता है।

परंपरागत शिल्प कलाओं द्वारा विकास

विविधताओं से भरे देश में हस्त शिल्प कलाओं में अपार संभावनाएं छिपी है जो स्त्रियों को प्रगति के नए शिखर पर पहुंचा सकती है। अंतर्राष्ट्रीय बाजार में भी भारतीय हस्तशिल्प की मांग काफी अधिक है। अतः भारतीय सरकार को चाहिए कि इस दिशा की ओर विशेश ध्यान दें। महिलाओं को इन शिल्प कलाओं से सम्बंधित प्रशिक्षण दिया जाना वाकई स्त्री सुदृढ़ीकरण को पंख दे सकता है।

महिला सुरक्षा कानूनों में हो सख्ती

देश में बार-बार निर्भया, गुड़िया बलात्कार कांड न दोहराए जाएं एवं प्रत्येक स्त्री बेफिक्री से शिक्षा, व्यवस्याय व रोजमर्रा के कार्य कर आत्मनिर्भर बनें, इसके लिए आवश्यक है कि महिला सुरक्षा से जुड़े कानूनों को सही ढंग से सख्ती के साथ लागू किया जाए। देश में आॅनली वुमेन पुलिस स्टेशन बनाया जाना भी एक अच्छा विकल्प हो सकता है। महिलाएं यदि सुरक्षित रहेंगी तो देश का भविष्य भी सुरक्षित रहेगा।

 

आर्थिक स्तर पर ठोस सुधारों में हो वृद्धि

भारतीय सरकार को छोटे शहरों में महिलाओं के लिए रोजगार के नए अवसर उपलब्ध कराने एवं लघु उद्योगों को उभारने की ओर कदम बढ़ाने की आवश्यकता है। इसके साथ-साथ महिलाओं के लिए विशेष स्किल डेवलप ट्रैनिंग पर ध्यान दिया जाए, महिला ओरिऐन्टिड बैंकों की संख्या में इज़ाफा व प्राइवेट सेक्टर में समान वेतन के लिए नए कानून बनाने की पहल से भी महिलाओं को सशक्त होने में सहायता मिलेगी।

 

पुरूष वैचारिक सशक्तिकरण भी हो विचारणीय

गौरतलब है कि देश में जहां देखो वहां महिला सशक्तिकरण को मुद्दा बनाया जाता है परन्तु यह नही सोचा जाता की आवश्यकता पुरूषों के मानसिक बदलाव की भी है। यह एक ऐसा विचारणीय पक्ष है जो यदि सही मायनों में व्यवहारिकता में परिणित हो जाए तो समस्या आधे से अधिक समाप्त हो जाएगी।

एसिड अटैक का शिकार हुई लक्ष्मी आज यदि हौसले की मिसाल बनी हुई है तो इसका एक बड़ा श्रेय आलोक दीक्षित को जाता है जिन्होनें उनके कठिन संघर्ष में उनका साथ दिया। हरियाणा जहां लड़कियों की दशा बदतर है वहां जिन्द जिले के पूर्व सरपंच सुनील जागलान सेल्फी विद डाॅटर मुहिम को शुरू कर देश-विदेश के लोगों में स्त्री सशक्तिकरण की अलख जगाते हैं। देश में स्त्रियों की स्वास्थ्य दशा सुधारने व उन्हें आत्मनिर्भर बनाने के उद्देश्य से अरूणाचलम मुरूगनंतम ने सैनिटरी नैपकिन बनाने वाली मशीन का अविष्कार कर डाला इस प्रकार कह सकते हैं कि यदि पुरूषों के विचार सशक्त होंगे तो समाज में महिलाओं के प्रति सकारात्मक बदलाव अवश्य आएगा।

देश के वर्तमान परिपे्रक्ष्य में महिला सशक्तिकरण से जुड़े हर एक तथ्य को ध्यान में रखते हुए उन कारणों की खोज करनी आवश्यक है जो स्त्रियों को विकास की संकल्पना से पीछे धकेलते हैं। इससे भी कहीं अधिक जरूरी है महिलाओं को विभिन्न माध्यमों द्वारा आत्म उत्थान के प्रति जागरूक बनाया जाए। अंततः अग्रलिखित पंक्तियों द्वारा इस गंभीर विषय को एक रोचक लयबद्ध विराम देना चाहिए...

‘‘सुनो नारी तुम ‘कल्पना’ हो

मिलते ही परवाज़, तुम उड़ जाना

कोई कहे नारी हो, शिक्षा क्यों?

तो बन कर ‘मलाला’ तुम लड़ जाना

कोई कहे लड़की हो, सपने क्यों?

तो बन कर ‘मैरीकोम’ तुम अड़ जाना

कोई हादसा गर बना दे अपंग

तो बन ‘अरूणिमा’ तुम एवरेस्ट चढ़ जाना

कोई रोके तो पीछे पलटना नहीं

बस आगे तुम बढ़ जाना,बस आगे तुम बढ़ जाना’’

   

Leave a comment.
रिसर्च को सब्सक्राइब करें

इस रिसर्च पर अपडेट पाने के लिए और इससे जुड़ने के लिए अपना ईमेल आईडी नीचे भरें.

ये कैसे कार्य करता है ?

start a research
जुड़ें और फॉलो करें

ज्यादा से ज्यादा जुड़े लोग, प्रतिभाशाली समन्वयकों एवं विशेषज्ञों को आकर्षित करेंगे , इस मुद्दे को एक पकड़ मिलेगी और तेज़ी से आगे बढ़ने में मदद ।

start a research
संगठित हों

हमारे समन्वयक अपने साथ विशेषज्ञों को ले कर एक कार्य समूह का गठन करेंगे, और एक योज़नाबद्ध तरीके से काम करना सुरु करेंगे

start a research
समाधान पायें

कार्य समूह पारदर्शिता एवं कुशलता के साथ समाधान की ओर क़दम बढ़ाएगा, साथ में ही समाज में से ही कुछ भविष्य के अधिनायकों को उभरने में सहायता करेगा।

आप कैसे एक बेहतर समाज के निर्माण में अपना योगदान दे सकते हैं ?

क्या आप इस या इसी जैसे दूसरे मुद्दे से जुड़े हुए हैं, या प्रभावित हैं? क्या आपको लगता है इसपर कुछ कारगर कदम उठाने चाहिए ?तो नीचे कनेक्ट का बटन दबा कर समर्थन व्यक्त करें।इससे हम आपको समय पर अपडेट कर पाएंगे, और आपके विचार जान पाएंगे। ज्यादा से ज्यादा लोगों द्वारा फॉलो होने पर इस मुद्दे पर कार्यरत विशेषज्ञों एवं समन्वयकों का ना सिर्फ़ मनोबल बढ़ेगा, बल्कि हम आपको, अपने समय समय पर होने वाले शोध यात्राएं, सर्वे, सेमिनार्स, कार्यक्रम, तथा विषय एक्सपर्ट्स कोर्स इत्यादि में सम्मिलित कर पाएंगे।
समाज एवं राष्ट्र, जहाँ लोग कुछ समय अपनी संस्कृति, सभ्यता, अधिकारों और जिम्मेदारियों को समझने एवं सँवारने में लगाते हैं। एक सोची समझी, जानी बूझी आवाज़ और समझ रखते हैं। वही देश संसार में विशिष्टता और प्रभुत्व स्थापित कर पाते हैं।
अपने सोशल नेटवर्क पर शेयर करें

हर छोटा बड़ा कदम मायने रखता है, अपने दोस्तों और जानकारों से ये मुद्दा साझा करें , क्या पता उन्ही में से कोई इस विषय का विशेषज्ञ निकल जाए।

क्या आपके पास कुछ समय सामाजिक कार्य के लिए होता है ?

इस एक्शन ग्रुप के सहभागी बनें, एक सदस्य, विशेषज्ञ या समन्वयक की तरह जुड़ें । अधिक जानकारी के लिए समन्वयक से संपर्क करें और अपने बारे में बताएं।

क्या आप किसी को जानते हैं, जो इस विषय पर कार्यरत हैं ?
ईमेल से आमंत्रित करें
The researches on ballotboxindia are available under restrictive Creative commons. If you have any comments or want to cite the work please drop a note to letters at ballotboxindia dot com.

Code# 62180

More on the subject.