पूर्वी काली नदी- एक परिचय
‘पूर्वी काली नदी’ उत्तर- प्रदेश की प्रमुख नदी ‘गंगा’ की एक सहायक नदी है, जो कि उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर, मेरठ, बुलंदशहर, अलीगढ़, एटा तथा फर्रुखाबाद जिलों से होकर बहती है तथा कन्नौज से कुछ पहले ही पवित्र ‘गंगा’ नदी में जाकर मिल जाती है. ‘पूर्वी काली नदी’ का उद्गम स्थल मुजफ्फरनगर जिले की खतौनी तहसील के अंतर्गत आने वाला ‘अंतवाडा गांव’ है. यह नदी 598 कि.मी. की दूरी तय करते हुए इसके किनारों पर स्थित करीब 1200 गांवों से होकर गुजरती है. यह एक ‘मानसूनी नदी’ है, इसी वजह से बरसात के मौसम में नदी में जलभराव होने के कारण इसके किनारों पर स्थित क्षेत्र बुलंदशहर व एटा बाढ़ग्रस्त हो जाते हैं. हालांकि सिंचाई विभाग इस पर कार्य कर रहा है. मुजफ्फरनगर व मेरठ में यह नदी अनिश्चित मार्ग में बहती है किन्तु बुलंदशहर से यह निश्चित घाटी में बहती है.
आखिर क्यों मैली हो गई पूरी काली नदी?
‘पूर्वी काली नदी’ आज से लगभग 50 साल पहले तक अत्यंत स्वच्छ व निर्मल जल प्रवाहित करती थी, किन्तु पिछले कुछ दशकों में इसके आस- पास स्थित गांवों, कस्बों, शहरों व उद्योगों से निकलने वाले गैर- शोधित कचरे के नदी में मिलने से इसका जल आज दूषित हो गया है. मुजफ्फरनगर से चलने के बाद पहले तीन किलोमीटर तक इस नदी का जल अत्यंत स्वच्छ रहता है, किन्तु इसके आगे खतौली से चीनी मिल का कचरा इसमें गिरने लगता है और यहीं से ‘पूर्वी काली नदी’ का दूषित सफर शुरू हो जाता है. चीनी मिल के बाद इसमें पेपर मिल, बूचड़खानों से निकलने वाले केमिकल्स व गंदगी तथा सीवर का गन्दा पानी भी मिलने लगता है. जिसके परिणामस्वरूप काली नदी आज का जल इतना दूषित व विषैला हो चुका है कि आज इसमें एक भी जलीय जीव शेष नहीं रह गया है. इसके अलावा काली नदी के किनारों पर स्थित अधिकतम गांवों में रासायनिक पदार्थों का प्रयोग कर खेती की जा रही है तथा यह भी नदी में बढ़ते प्रदूषण का एक मुख्य कारण है.
पूर्वी काली नदी में प्रदूषण का स्तर यह है कि इस नदी के जल का सेवन करने से आस- पास के क्षेत्रों के लोग कैंसर जैसे गंभीर रोगों की चपेट में आ रहें हैं, जिसमें कि आलमगीरपुर, छतनौरा, गोहरा, मुरादपुर, मतनौरा आदि गांव शामिल हैं. हाल ही में एक अमेरिकी संस्था ‘वाटर कलेक्टिव’ के संस्थापक थॉमस और शेरॉन अपनी टीम के साथ इस नदी के प्रदूषित जल से प्रभावित इन गांवों में पीड़ितों का हाल देखने आये थे. ‘वाटर कलेक्टिव’ की टीम ने न सिर्फ नदी का पीला जल देखकर चिंता व्यक्त की बल्कि नदी के जल के नमूने की जांच कर इस बात की पुष्टि की, कि नदी का जल काफी जहरीला हो चुका है.
नीर फाउंडेशन द्वारा किया गया शोध
‘वाटर कलेक्टिव’ टीम ने इन क्षेत्रों का दौरा ‘नीर फाउंडेशन’ के अध्यक्ष रमन त्यागी के साथ किया था जो कि इस नदी पर कई वर्षों से कार्य कर रहें हैं. पिछले 10 वर्षों से ‘पूर्वी काली नदी’ पर कार्य कर रही गैर सरकारी संस्था ‘नीर’ द्वारा हाल ही में इस नदी पर किये गये अध्ययन में पाया गया कि पूर्वी काली नदी के जल में काफी बड़ी मात्रा में लेड, आयरन व मेटल मौजूद है जो कि काफी हानिकारक है और भूजल को भी बुरी तरह दूषित कर रहा है. काली नदी के जल पर अध्ययन करने के लिए करने के लिए इसके किनारों पर स्थित 8 गांवों मुजफ्फरनगर, मेरठ, हापुड़, बुलंदशहर, अलीगढ़, कासगंज, फर्रुखाबाद और कन्नौज से पानी के नमूने लिए गये थे. जिसके बाद इन्हें देहरादून के जाने- माने संस्थान ‘पीपुल्स साइंस इंस्टीट्यूट’ (पीएसआई) में भेजे गये, जहां पाया गया कि नदी में बड़े स्तर पर मेटल की उपस्थिति इससे 2-3 किलोमीटर की दूरी पर स्थित गांवों के भूमिगत जल को दूषित कर रही है व उन क्षेत्रों में कई नये रोगों को जन्म दे रही है तथा यदि इस ओर शीघ्र ही ध्यान नहीं दिया गया तो यह लोगों के स्वास्थ्य के लिए और भी ज्यादा हानिकारक साबित हो सकती है.
“नमामि गंगे योजना” में शामिल पूर्वी काली नदी
‘नीर फाउंडेशन’ पिछले 10 वर्षों से ‘पूर्वी काली नदी’ की स्थिति में सुधार करने व इसको पुनर्जीवित करने के लिए प्रयासरत है. इस संस्था द्वारा न सिर्फ काली नदी पर शोध किया जा रहा है बल्कि इसको स्वच्छ व निर्मल बनाने के लिए भी कई प्रयास किये जा रहें हैं. इस संस्था ने ही ‘पूर्वी काली नदी’ पर सबसे पहले तकनीकी सर्वे करके भारत सरकार को दिया तथा साथ ही साथ एक दर्जन से भी अधिक देशी व विदेशी शोधार्थियों को इस नदी पर रिसर्च करने में सहयोग दिया. नीर फाउंडेशन के अथाह प्रयासों के परिणामस्वरूप प्रशासन भी इस नदी की स्थिति की ओर जागरूक हुआ व इसे ‘नमामि गंगे’ योजना में शामिल कर लिया. इसके अलावा सिंचाई विभाग ने भी काली नदी के जल को साफ व प्रदूषण मुक्त बनाने के लिए गंगा नहर का जल इस नदी में छोड़ने की योजना बनाई है. इस परियोजना में ‘नीर फाउंडेशन’ भी बढ़-चढ़ कर प्रशासन का सहयोग कर रहा है.
इस परियोजना की लागत करीब 22 करोड़ रुपये है, जिसे मुख्य अभियंता ‘गंगा सिंचाई व जल संसाधन विभाग’ द्वारा उत्तर- प्रदेश सरकार की संतुति करके भेजा गया. इस परियोजना के अंतर्गत नहर से नदी के उद्गम तक पानी छोड़ा जाएगा तथा एक बड़ा तालाब बनाया जाएगा, जिससे न सिर्फ भूमिगत जल की स्थिति में सुधार होगा बल्कि जल में प्रदूषण के स्तर में भी गिरावट आएगी, जिससे गांव वालों को स्वच्छ जल प्राप्त हो सकेगा. इस परियोजना में ‘नीर फाउंडेशन’ के साथ- साथ ‘दिल्ली टेक्निकल विश्वविद्यालय’ भी प्रशासन का सहयोग करेगा, जो कि पूर्वी काली नदी की स्थिति में सुधार को लेकर काफी गंभीर है.
वहीं पूर्वी काली नदी में दिन प्रतिदिन बढ़ रहे प्रदूषण को रोकने के लिए भी प्रशासन सक्रीय हुआ है. हाल ही में ‘नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल’ ने ‘उत्तर- प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड’ को नदी में सीवर के पानी व गंदगी को जाने से रोकने के लिए ‘सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट्स’ (एसटीपी) स्थापित करने के निर्देश दिए हैं, जिन पर कार्य भी प्रारम्भ कर दिया गया है.
ताकि बनी रह सके पूर्वी काली की अविरलता
‘नीर फाउंडेशन’ पूर्वी काली नदी के उद्धार व इसे प्रदूषण मुक्त बनाने के लिए स्थानीय स्तर पर कई कार्य कर रही है व भविष्य में करेगी. जिसके अंतर्गत गांव में जैविक कृषि को बढ़ावा देना, वाटर प्योरीफायर लगवाना, नदी के दोनों और पौधारोपण करना, अतिक्रमण हटवाना व लोगों में जागरूकता फैलाना शामिल है. हालांकि इसके लिए प्रशासन द्वारा बराबर सहयोग किया जाना भी आवश्यक है. जब प्रशासन इस ओर गंभीर होगा तभी काली नदी में गांवों, शहरों, कस्बों व उद्योगों से निकलने वाली गंदगी तथा नालों व सीवर के पानी को इसमें गिरने से रोका जा सकेगा तथा तभी काली नदी का जल पहले की भांति स्वच्छ, पवित्र, निर्मल व प्रदूषण मुक्त हो सकेगा. सिर्फ पूर्वी काली नदी ही बल्कि सरकार को मुख्य नदियों के साथ- साथ सभी सहायक नदियों की स्थिति की ओर भी समान रूप से ध्यान देना चाहिए, क्योंकि जब तक सहायक नदियां स्वच्छ नहीं होंगी तब तक ‘गंगा नदी’ को भी स्वच्छ नहीं बनाया जा सकता.